आधुनिक भारतइतिहासविवेकानंद स्वामी

विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलनः शिकागो सर्व-धर्म सम्मेलन

शिकागो सर्व-धर्म सम्मेलन

शिकागो सर्व-धर्म सम्मेलन(Chicago All-Religion Conference)

रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उनके बहुत से शिष्य अपने-2 घरों को चले गये। किन्तु नरेन्द्र ने अपने तीन-चार साथियों के साथ काशीपुर के निकट बारा-नगर में एक टूटे हुए मकान में रहना आरंभ किया। 1887 में प्रथम बार इस मठ को, धार्मिक रूप से स्थापित किया गया, जबकि मठ के करीब 12 सदस्यों ने वैदिक क्रियाओं के अनुसार संन्यास ग्रहण किया और अपने नाम भी बदले। उसी समय नरेन्द्र का नाम स्वामी विवेकानंद रखा गया।

संन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत भ्रमण किया और भ्रमण करते हुए वे कन्याकुमारी तक गये, जहाँ उन्हें पता लगा कि अमेरिका के शिकागो नगर में विश्व के सभी धर्मों की एक सभा हो रही है। अतः 1893 ई. में बङी कठिनाई से स्वयं के प्रयत्नों से वे अमेरिका गये। हिन्दुत्व एवं भारतवर्ष के लिये यह अच्छा हुआ कि स्वामीजी इसमें जा सके, जहाँ उन्होंने हिन्दुत्व के पक्ष में इतना ऊँचा प्रचार किया, जैसै न तो कभी पहले हुआ था और न उसके बाद से लिकर आज तक हो पाया हैं।

शिकागो नगर में होने वाले सर्व-धर्म सम्मेलन में स्वामीजी ने हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। सम्मेलन में स्वामीजी ने जिस ज्ञान,जिस उदारता,जिस विवेक और जिस वाग्मिकता का परिचय दिया, उससे वहाँ के लोग मंत्र-मुग्ध हो गये। जब उन्होंने अपने प्रथम भाषण में अमेरिकावासियों को भाइयों और बहिनो के शब्दों से संबोधित किया तो सम्मेलन में इसका भारी करतल-ध्वनि से स्वागत हुआ। इसकी सभाएँ प्रतिदिन होती थी। और उन्होंने अपने भाषण सभा के अंत में ही दिये,क्योंकि सारी जनता उन्हीं का भाषण सुनने के लिए अंत तक बैठी रहती थी। उन्होंने हिन्दू धर्म की उदारता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिन्दुत्व के शब्दकोष मे असहिष्णु शब्द ही नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि हिन्दू धर्म का आधार शोषण,रक्तपात या हिंसा नहीं है, बल्कि प्रेम है। स्वामीजी ने वेदांत के सत्य पर भी प्रकाश डाला। जब तक सम्मेलन समाप्त हुआ, तब तक स्वामीजी अपना तथा भारत का प्रभाव अमेरिका में स्थापित कर चुके थे। स्वामी जी के भाषणों क प्रशंसा में अमेरिका के समाचार पत्र द न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा , सर्व-धर्म सम्मेलन में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद है। उनका भाषण सुन लेने पर अनायास ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसे ज्ञानी देश को सुधारने के लिए धर्म -प्रचारक भेजने की बात कितनी मूर्खतापूर्ण है।

इस सम्मेलन ने स्वामी जी को विश्व प्रसिद्ध बना दिया। उन्होंने अमेरिका के अनेक नगरों की यात्राएं की, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। वे अमिरिका से पेरिस गये तथा यूरोप के कई नगरों में उन्होंने हिन्दुत्व तथा वेदांत दर्शन पर भाषण किये। वे लगभग तीन वर्ष तक विदेशों में घूमति रहे। इस अल्पावधि में उनके भाषणों,वार्तालापों,लेखों और वक्तव्यों के द्वारा यूरोप व अमेरिका मे हिन्दू धर्म और संस्कृति की प्रतिष्ठा स्थापित हुई। सितंबर,1895 में वे लंदन गये और वहाँ भी धर्म-प्रचार किया। वे पुनः अमेरिका गये तथा फरवरी, 1896 में न्यूयार्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की, जिसका लक्ष्य वेदांत का प्रचार करना था। अमेरिका में उनके बहुत से अनुयायी हो गये। वे चाहते थे कि कुछ भारतीय धर्म-प्रचारक अमेरिका में भारतीय दर्शन अर्थात् वेदांत का प्रचार करें और उनके अमेरिकी शिष्य भारत आकर विज्ञान और संगठन का महत्त्व सिखायें।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!