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स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ –

भूमि का स्थायी बंदोबस्त –1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस को भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। जब वह भारत आया, उस समय कंपनी की शासन व्यवस्था में अनेक दोष विद्यमान थे। अतः कार्नवालिस ने शासन व्यवस्था के दोषों को दूर करने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किये।

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ

स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्थाएँ

  • जमींदारों को भूमि का वास्तविक स्वामी मान लिया गया।
    जब तक जमींदार अपनी लगान की राशि चुकाता रहेगा, तब तक उसे जमींदारी से बेदखल नहीं किया जायेगा। परंतु यदि जमींदार नियमित रूप से लगान नहीं चुकायेगा, तो राज्य उसकी भूमि के कुछ भाग को लगान की वसूली के लिए बेच सकेगा।
  • चूंकि राज्य भूमि-स्वामित्व के अधिकार से मुक्त हो गया है, अतः जमीदारों से किसी अन्य प्रकार का कर वसूल नहीं किया जायेगा।
  • जमीदारों से लिया जाने वाला लगान सदा के लिये निर्धारित कर दिया गया। सरकार द्वारा यह स्पष्ट आश्वासन दिया गया कि उत्पादन बढने पर भी निर्धारित लगान की दर में कोई वृद्धि नहीं की जायेगी। न्यायालय से स्वीकृति प्राप्त किये बिना लगान की दर में वृद्धि नहीं की जा सकेगी।
  • जमींदारों से समस्त न्यायिक अधिकार छीन लिए गए।
  • जमींदार भूमि का मालिक होने के कारण भूमि को बेच या खरीद सकते थे।
  • जमींदारों और रैय्यत (किसान) के पारस्परिक संबंधों के विषय में जमींदारों को स्वतंत्र कर दिया गया। इसके साथ ही जमींदारों को आदेश दिया गया कि वे अपने किसानों को पट्टे जारी करें। किसानों को जो कर अपने जमीदारों को देना होता था, इसका उल्लेख पट्टे में होता था। यदि कोई जमींदार अपने किसानों को दिए गए पट्टे का उल्लंघन करेगा, तो किसान को उसके विरुद्ध न्यायालय में जाने का अधिकार होगा।

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ(sthaayee bandobast kee visheshataen)

  • इस व्यवस्था में कार्नवालिस ने यह घोषणा की कि 1793 ई. में निर्धारित लगान की दर में कभी परिवर्तन नहीं किया जायेगा तथा सरकार की मांग स्थायी तौर पर यही रहेगी।
  • भूमि की उपज से संबंधित तीन पक्ष थे – सरकार, जमींदार तथा किसान।
  • कार्नवालिस ने राजस्व निर्धारित करके तथा जमींदारों के अधिकारों की घोषणा करके सरकार एवं जमींदारों के हितों की तो रक्षा कर ली, परंतु किसानों के हितों की अवहेलना की गयी। उन्हें जमींदारों की दया पर छोङ दिया गया।
  • इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार भूमि को बेच तथा खरीद सकते थे और ऐसा करते समय सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं था।
  • इस व्यवस्था द्वारा समाज में एक नवीन वर्ग जमींदार वर्ग की उत्पत्ति हुई। यह वर्ग समाज का अत्यंत सम्मानित एवं प्रभावशाली वर्ग बन गया। यह वर्ग अंग्रेजों का स्वामिभक्त बन गया।

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