प्राचीन भारतइतिहासगुप्त काल

गुप्त नरेश बुधगुप्त का इतिहास

कुमारगुप्त द्वितीय के बाद बुधगुप्त गुप्त साम्राज्य का शासक बना। नालंदा से बुधगुप्त की मुहर प्राप्त हुई है, जिसके आधार पर उसको पुरुगुप्त का पुत्र माना गया है। उसकी माता का नाम चंद्रदेवी ता। गुप्त संवत् 157 अर्थात् 477 ईस्वी का उसका सारनाथ से लेख मिला है। यह उसके शासन काल की प्रथम ज्ञात तिथि है।

मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित उसका एरण स्तंभ लेख मिला है। उत्तरी बंगाल के दामोदरपुर तथा पहाङपुर से उसके ताम्रपत्र मिलते हैं। इसमें गुप्त संवत् की तिथियाँ दी गयी हैं। दामोदरपुर ताम्रपत्र में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराज कहा गया है।

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बुधगुप्त की रजत मुद्राओं पर उसके शासन-काल की अंतिम तिथि गुप्त संवत् 175 अर्थात् 495 ईस्वी उत्कीर्ण मिलती है। अतः हम कह सकते हैं,कि बुधगुप्त ने 477 ईस्वी से 495 ईस्वी तक शासन किया था।

स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारियों में बुधगुप्त सबसे शक्तिशाली राजा था, जिसने एक विस्तृत प्रदेश पर शासन किया। स्वर्ण मुद्राओं पर उसकी उपाधि श्रीविक्रम मिलती है। उसके अभिलेखों से उसके कुछ प्रांतीय पदाधिकारियों की जानकारी प्राप्त होती है।

एरण अभिलेख से पता चलता है,कि पूर्वी मालवा में मातृविष्णु उसका सामंत था। इसी लेख के अनुसार सुरश्मिचंद्र अंतर्वेदी (गंगा यमुना दोआब) का शासक था।

दामोदरपुर ताम्रपत्र के अनुसार ब्रह्मदत्त पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति का शासक था।

बुद्धगुप्त के अभिलेखों तथा सिक्कों के प्रसार से यह स्पष्ट हो जाता है,कि उसने मालवा से बंगाल तक के भू-भाग पर शासन किया। बलभी के मैत्रक नरेश भी उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। मैत्रक नरेश द्रोणसिंह का 502 ईस्वी का लेख मिला है, जिसमें वह अपने को परमभट्टारक महाराजाधिराज का तत्पादानुध्यात बताता है।

बुद्धगुप्त बौद्धमतानुयायी था। उसने नालंदा महाविहार को धन दान में दिया था। वह अंतिम महान गुप्त सम्राट था, जिसने हिमालय से लेकर नर्मदा नदी तक तथा मालवा से लेकर बंगाल तक के विस्तृत भू भाग पर शासन किया। महात्मा बुद्ध एवं बैद्ध संघ।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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