इतिहासराजस्थान का इतिहास

मोकल का इतिहास

मोकल का इतिहास

मोकल (1397-1433ई.) – राणा बनते समय मोकल की आयु केवल बारह वर्ष की ही थी। अतः लाखा का बङा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना और उसने कुशलतापूर्वक मोकल के नाम पर मेवाङ का शासन चलाया। कुछ दिनों तक सभी काम ढंग से चलते रहे।

परंतु धीरे-धीरे हंसाबाई और चूण्डा के संबंधों में तनाव पैदा हो गया। हंसाबाई को संदेह होने लगा कि कहीं अवसर मिलने पर चूण्डा मेवाङ के सिंहासन को हस्तगत न कर ले। अंत में जब स्थिति असहनीय हो गयी तो चूण्डा मेवाङ छोङकर माण्डू में सुल्तान की सेवा में चला गया। इस घटना के संबंध में हंसाबाई और उसके भाई रणमल की भूमिका के संबंध में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है।

मोकल

मेवाङ के ख्यातकार तथा वीर-विनोद के लेखक श्यामलदास के अनुसार माण्डू जाते समय चूण्डा राघवदेव के अलावा अपने अन्य सभी भाइयों को अपने साथ ले गया। राघवदेव को मोकल की सुरक्षा के निमित्त छोङ गया था। संभव है कि वह राघवदेव को मेवाङ दरबार में सिसोदियों के हितों की रक्षा तथा रणमल के बढते हुए प्रभाव को रोकने के लिये छोङ गया हो।

चूण्डा के जाने के बाद रणमल की स्थिति सर्वोपरि हो गयी। इसमें कोई संदेह नहीं कि रणमल ने महाराणा की निष्ठापूर्वक सेवा की और महाराणा के विरुद्ध उठने वाले विद्रोहों का दमन किया। परंतु उसके बढते हुए प्रभाव से सिसोदिया सामंत घबरा उठे और उन्हें ऐसा लगा कि मेवाङ पर राठौङ सत्ता स्थापित होनो जा रही है।

अतः उन्होंने हर संभव उपाय से रणमल को कमजोर बनाने के प्रयास शुरू कर दिये। इस पर रणमल को भी अपने नेतृत्व में राठौङ सैनिकों की एक शक्तिशाली सेना खङी करनी पङी, जिसका व्यय मेवाङ राज्य को उठाना पङा।

उधर मारवाङ में रणमल के पिता चूण्डा की मृत्यु हो गयी और राठौङ सरदारों ने रणमल के छोटे भाई कान्हा को नया राजा घोषित कर दिया। रणमल ने अपना उत्तराधिकार प्राप्त करने का प्रयास किया, परंतु उसे सफलता नहीं मिली। इस अवसर पर राणा मोकल की तरफ से उसे किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली।

संयोगवश कान्हा की जल्दी ही मृत्यु हो गयी और मारवाङ के सिंहासन के लिये राठौङों में गृह-युद्ध छिङ गया। इस बार राणा मोकल ने रणमल को सैनिक सहायता दी और मेवाङ की सहायता से रणमल मारवाङ के सिंहासन पर बैठने में सफल रहा। उसने मंडौर को अपना केन्द्र बनाकर अपनी शक्ति को सुदृढ बनाना शुरू किया।

रणमल के चले जाने के बाद मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने मेवाङ के गागरोण दुर्ग पर आक्रमण किया। दुर्ग का रक्षक अचलदास खींची, जो मोकल का संबंधी भी था, लङता हुआ मारा गया और गागरोण पर मालवा का अधिकार हो गया।

इसी प्रकार, नागौर के मुस्लिम शासक फिरोजखाँ से भी मोकल का संघर्ष हुआ, जिसमें मेवाङ को पराजय का सामना करना पङा। परंतु मेवाङ के शिलालेखों के आधार पर डॉ.गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि 1428 ई. के आसपास मोकल ने नागौर के फिरोजखाँ को रामपुरा के युद्ध में परास्त किया और सांभर देश को रौंद डाला तथा गुजरात के अहमदशाह को पराजित किया। उसने जहाजपुर के किले के घेरे में भी विजय प्राप्त की और हाङों के मानमर्दन में सफलता प्राप्त की।

परंतु डॉ.शर्मा के इस निष्कर्ष के विरुद्ध अन्य साक्ष्यों से जानकारी मिलती है कि बून्दी के हाङाओं ने भी मेवाङ की सीमाओं का अतिक्रमण किया और माण्डलगढ तक का क्षेत्र अधिकृत कर लिया। गोडवाङ के क्षेत्र में सिरोही के शासक ने अव्यवस्था फैला रखी थी। इस प्रकार, मोकल के शासनकाल में मेवाङ के प्रभुत्व एवं प्रभाव में कमी आने लग गई थी। ऐसी स्थिति में गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने मेवाङ पर आक्रमण कर दिया।

सुल्तान ने डूँगरपुर, केलवाङा और देलवाङा के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। महाराणा मोकल उसका सामना करने के लिये सेना सहित चित्तौङ से रवाना हुआ। जब वह जीलवाङा क्षेत्र में गुजरात के सुल्तान का आक्रमण रोकने के लिए पङाव डाले हुये था तो उसके दो चाचाओं – चाचा और मेरा, जो महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध संतान थे, ने महाराणा मोकल की हत्या कर दी।

मोकल की हत्या में भी अलग-अलग विवरण मिलते हैं। नैणसी आदि ख्यातकार घटना का विवरण इस ढंग से प्रस्तुत करते हैं। जिससे रणमल की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो। मेवाङ के ख्यातकार भी अलग-अलग विवरण देते हैं।

जो भी हो, मोकल को अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत से संघर्ष नहीं करना पङा, परंतु उसके भग्नावशेषों पर उदित नये प्रान्तीय राज्यों के साथ निरंतर संघर्ष करना पङा और इस संघर्ष में वह अपने पैतृक राज्य के अधिकांश भाग को सुरक्षित रखने में सफल रहा।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : मोकल

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