इतिहासराजस्थान का इतिहास

महाराणा लाखा (लक्षसिंह)का इतिहास

महाराणा लाखा(1382-1397ई.)- महाराणा लाखा के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को अनेक उतार-चढाव देखने पङे। 1388 ई. में फीरोज तुगलक की मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के बाद तुगलक सल्तनत तेजी से विघटित होने लग गई। 1398-99 में अमीर तैमूर के आक्रमण से तुगलक सल्तनत धराशाही हो गयी।

तैमूर के एक प्रतिनिधि खिज्रखाँ ने दिल्ली में एक नये राजवंश सैयदवंश की नींव रखी जिसने 1414 से 1451 ई. तक शासन किया। सैयद सुल्तानों को अपनी आंतरिक समस्याओं तथा सल्तनत के अस्तित्व को कायम रखने के लिये इतना अधिक परिश्रम करना पङा कि वे राजपूताने की ओर विशेष ध्यान नहीं दे पाये।

महाराणा लाखा का साम्राज्य विस्तार

इस प्रकार की अनुकूल परिस्थितियों में महाराणा लाखा ने भी राज्य विस्तार की नीति को जारी रखा। लाखा ने मेरों को पराजित करके बदनौर प्रदेश को अपने अधीन किया। उसने बून्दी के राव वीरसिंह हाङा को मेवाङ का प्रभुत्व मानने के लिये विवश किया। जहाजपुर, मेरवाङा और शेखावाटी क्षेत्र तथा वैराट को जीता।

महाराणा लाखा

ख्यातों के अनुसार महाराणा लाखा ने आमेर के निकट सांखला राजपूतों को पराजित करके उपर्युक्त क्षेत्रों में अपने प्रभाव का विस्तार किया था। उसने डोडिया राजपूतों को कई जागीरें प्रदान कर मेवाङ उमराव बनाया। इससे मेवाङ की सैनिक शक्ति का विकास हुआ।

मेवाङ के ख्यातकार राणा लाखा और दिल्ली सुल्तान गियासुद्दीन द्वितीय के संघर्ष का उल्लेख करते हैं। यह संघर्ष बदनौर के निकट हुआ जिसमें सुल्तान पराजित हुआ। पराजित सुल्तान ने काशी, गया और प्रयाग जैसे तीर्थ स्थानों पर हिन्दुओं के लिये जाने वाले तीर्थ कर को रद्द करने का वचन दिया परंतु इसके बदले में राणा को विपुल मात्रा में स्वर्ण तथा घोङे सुल्तान को भेंट में देने पङे।

अन्य साक्ष्यों से इस घटना की पुष्टि नहीं होती है। परंतु गुजरात और मालवा के मुस्लिम शासकों के साथ उसे स्वयं संघर्ष करना पङा । इस समय गुजरात में जफर खाँ अपनी शक्ति को सुदृढ करने में लगा हुआ था और 1396 ई. में उसने माण्डलगढ हस्तगत करने में सफलता नहीं मिली और वह आसपास के क्षेत्रों को लूटकर वापिस लौट गया। इसी प्रकार, राणा लाखा की सतर्कता के कारण मालवा के मुस्लिम अधिकारी भी मेवाङ को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचा पाये।

नोट

(अधिकांश विद्वानों ने राणा लाखा के शासन का समय 1382 से 1421ई. तथा मोकल का 1421 से 1433 ई. माना है। परंतु यह युक्ति संगत प्रतीत नहीं होता। डॉ. उपेन्द्रनाथ डे ने लाखा का शासनकाल 1382 से 1397 ई. तथा मोकल का 1397 ई. तथा 1433 ई. निर्धारित किया है, जो अधिक तर्कसंगत लगता है।)

महाराणा लाखा के समय में जावर में चाँदी की खान निकल आयी जिससे राज्य को काफी मुनाफा रहा। इसलिये लाखा ने मेवाङ में कई किलों का निर्माण करवाया। इसके साथ उसने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया। उसी के शासनकाल में उदयपुर की पिछोला झील का बाँध बनवाया गया था। उसके निर्माण कार्यों से स्पष्ट है कि उसके समय में मेवाङ की आर्थिक स्थिति पुनः काफी अच्छी हो गयी थी।

वृद्ध महाराणा लाखा ने हंसा के साथ विवाह किया और लाखा के बङे पुत्र चूण्डा को प्रतिज्ञा करनी पङी कि यदि हंसाबाई के पुत्र हुआ तो वह मेवाङ के सिंहासन पर अपने अधिकार का त्याग कर देगा और हंसाबाई का पुत्र ही मेवाङ का राणा बनेगा। इस विवाह के तेरह महीने बाद हंसाबाई ने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम मोकल रखा गया।1397 ई. में लाखा की मृत्यु के बाद मोकल मेवाङ का राणा बना। लाखा के शासनकाल में मेवाङ को दिल्ली सल्तनत के किसी बङे आक्रमण का सामना नहीं करना पङा।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : महाराणा लाखा

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