इतिहासगुर्जर-प्रतिहारप्राचीन भारत

गुर्जर-प्रतिहार शासक महीपाल

महीपाल (Mahipal)

महेन्द्रपाल की मृत्यु के बाद प्रतिहार वंश के उत्तराधिकारी का प्रश्न विवादग्रस्त है। महेन्द्रपाल के दो पत्नियाँ थी, जिनसे दो पुत्र-भोज द्वितीय तथा महीपाल थे। महेन्द्रपाल के बाद कुछ समय के लिये भोज द्वितीय ने शासन किया। किन्तु दो वर्षों बाद ही उसका सौतेला भाई महीपाल गद्दी पर अधिकार के लिये संघर्ष करने लग गया। महीपाल को चंदेल वंश के शासक हर्षदेव ने सहायता दी तथा भोज द्वितीय को पराजित कर महीपाल गुर्जर-प्रतिहार वंश की राजगद्दी पर बैठ गया।

एक बार फिर राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय के अधीन राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों पर प्रहार किया तथा कन्नौज नगर को नष्ट कर दिया। लेकिन इंद्र तृतीय के दक्कन वापस लौट जाने के बाद महीपाल को अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिला।

पाल वंश के शासक गोपाल द्वितीय तथा राज्यपाल दोनों ही महीपाल के समकालीन थे।

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अरब यात्री अल-मसूदी, जो 915-16 ईस्वी में भारत आया था, ने कन्नौज के राजा की शक्ति तथा उसके संसाधनों का उल्लेख किया है, जिसका राज्य पश्चिम में सिंध तक तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट सीमा तक था। अरब यात्री ने राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों के संघर्ष की पुष्टि की है, तथा प्रतिहारों की महत्त्वपूर्ण सेना का उल्लेख किया है।

ऐसा प्रतीत होता है, कि महीपाल की सफलताओं के बावजूद राष्ट्रकूटों के आक्रमण से प्रतिहारों को जो आघात पहुँचा उससे वे संभल नहीं सके। महीपाल के समय में ही प्रतिहार-साम्राज्य का विघटन प्रारंभ हो गया। चंदेल, परमार तथा चेदि लोगों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।ऐसे संकेत मिलते हैं, कि उसके शासन के अंत में कालंजर तथा चित्रकूट के दुर्गों पर से महीपाल का अधिकार जाता रहा। संभव है, कि उसकी मृत्यु (945 ई.) हो गयी थी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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