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पौराणिक धर्म के बारे में जानकारी

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हिन्दू-धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार पुराणों के माध्यम से संभव हुआ। पौराणिक धर्म में हमें वैदिक, अवैदिक तथा जन-साधारण के धार्मिक विश्वासों का समन्वय मिलता है। पुराण अपनी सरल एवं सुन्दर शैली में हिन्दू धर्म का सर्वाङ्गीण चित्रण प्रस्तुत करते हैं। पौराणिक धर्म का उद्देश्य वैदिक धर्म को सरल ढंग से आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करना है। शिव, विष्णु आदि वैदिक देवताओं को ग्रहण कर पुराणों ने उन्हें नवीन रूप दिया।
ब्रह्म की कल्पना ब्रह्मा के रूप में की गयी तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेव माना गया है। ये विश्व के क्रमशः कर्ता, धर्ता और संहर्ता थे। विष्णु के विभिन्न अवतारों की कल्पना हुई। परमत्त्व ईश्वर को साकार मानते हुये उन्हें अद्भुत शक्तियों से युक्त माना गया तथा उनके विभिन्न नाम और रूपों का विधान हुआ। भक्ति का पूर्ण विकास पौराणिक ध्रम में ही देखने को मिलता है। मूर्ति पूजा का प्रचलना हुआ।
देवता को पुरुष या नारी के रूप में मानकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि के द्वारा उसे पूजा करने का विधान प्रस्तुत किया गया है। वैदिक यज्ञों को सरल रूप प्रदान कर पुराणों ने उन्हें सबके लिये सुलभ बना दिया। ईश्वर की कृपा से ही मुक्ति संभव है तथा कृपा व्यक्ति को भक्ति से ही मिल सकती है, ऐसी पुराणों की दृढ मान्यता है। भक्ति के लिये गुरु के निर्देशन की भी आवश्यकता होती है। गुरु की कृपा से ही ज्ञान प्राप्त होती है।

अवैदिक विचारधारा के प्रभाव से पुराणों में अनेक प्रकार की देवियों यथा- दुर्गा, काली, चामुण्डा आदि की पूजा का विधान प्रस्तुत किया गया। साथ ही साथ इस धर्म में हमें अनेक प्रकार के बाह्याचारों के दर्शन होते हैं। व्रत, दान, तीर्थ-यात्रा, ब्राह्मणों को भोजन कराना आदि धार्मिक जीवन के अंग थे। शरीर पर भस्म पोतने तथा तिलक लगाने की प्रथा का प्रचलन भी इसी धर्म से हुआ।
ऐसी मान्यता थी, कि व्रतों के अनुष्ठान द्वारा शरीर तथा आत्मा शुद्ध होती है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। विभिन्न देवताओं से संबंधित भिन्न-भिन्न व्रतों का विधान प्रस्तुत किया गया है। पुराण वर्णाश्रम धर्म के पालन पर विशेष बल देते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिये ज्ञान के साथ-साथ वर्णाश्रम धर्म का पालन करना भी अनिवार्य बताया गया है। वायुपुराण में वर्णित है, कि जो व्यक्ति वर्णाश्रम धर्म का पालन नहीं करता उसे यमलोक के कष्ट भोगने पङते हैं।

पुराणों में जिन विभिन्न देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है, उनसे संबंधित अनेक स्वतंत्र सम्प्रदायों का हिन्दू-धर्म में विकास हुआ। विष्णु से वैष्णव, शिव से शैव, शक्ति उपासना से शाक्त आदि संप्रदायों का उद्भव हुआ, जिनकी उपासना पद्धतियाँ अलग-अलग थी। ये हिन्दू-धर्म के प्रमुख संप्रदाय है। कालांतर में इनके भी कई उप-संप्रदाय बन गये।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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