इतिहासप्राचीन भारतवैदिक काल

उत्तर वैदिकः धार्मिक स्थिति

धर्म ः
  • इस काल में उत्तरी दोआब ब्राह्मणें के प्रभाव के कारण आर्य संस्कृति का केन्द्र बन गया था।
  • ऋग्वैदिक काल के दो प्रमुख देवता इंद्र और अग्नि का अब पहले जैसा महत्व नहीं उनके स्थान पर उत्तर वैदिक काल में प्रजापति जो देवकुल में सृष्टि के निर्माता थे को सर्वोच्च स्थान मिला।
  • विष्णु को सर्व संरक्षक के रूप में पूजा जाता था।
  • ऋग्वैदिक काल में पूषण देवता को पशुओं का देवता माना जाता था , लेकिन उत्तर वैदिक काल में पूषण देवता को शूद्रों का देवता माना जाने लगा।
  • इस काल में देवताओं के प्रतीक के रूप में कुछ वस्तुओं की भी पूजा प्रचलित हुई अर्थात् कुछ प्रतीक  चिन्हों की पूजा होने लगी थी।
  • इस काल में बहुदेववाद, वासुदेव सम्प्रदाय तथा षडदर्शनों (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा तथा उत्तर मीमासां) का आरंभ हुआ।
  • उत्तरवैदिक काल में उपासना की पद्दति में यज्ञ एवं कर्मकांड प्रमुख हो गये । हालांकि इस काल में भी आर्य भौतिक सुखों की कामना हेतु देवताओं से यज्ञ तथा प्रार्थनाएँ करते थे।
  • यज्ञों में बङी मात्रा में कर्मकाण्ड बढा एवं मंत्रों के शुद्ध उच्चारण पर बल दाया गया।
  • यज्ञों में बङी मात्रा में पशुबली दी जाने लगी, जिसमें वैश्य वर्ण असंतुष्ट हुआ।
  • इस काल में यज्ञ का महत्व इतना बढ गया कि देवताओं को भी यज्ञ के अधीन माना गया । तथा देवता और पृथ्वी की उत्पत्ति भी यज्ञ से बताई गई। यज्ञ की महत्ता बढ गई थी।
  • पुरुष प्रधान समाज के तत्व प्रबल होने के साथ-2 देवियों का महत्व कम हुआ, क्योंकि समाज में पुरुष प्रभाव के तत्व प्रबल हो रहे थे। यहाँ तक कि इस काल में इंद्र , अग्नि, वरुण जैसे देवताओं का महत्व भी कम हो गया। तथा प्रजापति, विष्णु , यक्ष, गंधर्व, दिगपाल  जैसे अर्द्ध देवता प्रमुख देवताओं के सहायक के रुप में स्थापित हुये।
  • वैदिक काल (ऋग्वैदिक +उत्तरवैदिक ) में धर्म के स्वरुप में परिवर्तन निम्न रूप से हुआ-

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मैक्समूलर ने कहा है कि- (अवसर विशेष पर एक देवता सर्वोच्च हो जाता है तथा अन्य गौण हो जाते हैं इसे हीनोथिज्म कहा गया है।

उत्तरवैदिक काल(बढते मानसिक विकास का सूचक)

सर्वोच्चता के प्रति लोगों की आस्था नहीं रही।

एकेश्वरवाद

आरण्यक/उपनिषद में कहा गया है कि देवता एक ही हैं अर्थात् (ब्रह्म)-सर्वोच्च देवता परम आत्मा।

एकतत्ववाद-

उपनिषदों में कहा गया है कि एक ही तत्व है जिससे ब्राह्म , देवता , मनुष्य , सृष्टि, पेङ-पौधे, अजीव की उत्तपति हुई। कण-2 में भगवान है।

प्रमुख धार्मिक पुरोहित-

होता- मुख्यतः प्रार्थना करने वाले इन पुरोहितों ने ऋक संहिता का पुनर्सृजन किया।

उदगाता- सामवेद का गायन करने वाले पुरोहित ।

अघ्वर्यु – यजुर्वेद का मंत्रोचार करने वाला पुरोहित ।

ब्रह्मा-इन सभी यज्ञों को विधि पूर्वक सम्पन्न करवाने वाला पुरोहित ।

Referencehttps://www.indiaolddays.com/

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