गुप्त नरेश नरसिंहगुप्त बालादित्य का इतिहास
नरसिंह बालादित्य बुधगुप्त का छोटा भाई था। यह बुधगुप्त के बाद शासक बना। ऐसा प्रतीत होता है,कि इस समय गुप्त साम्राज्य तीन राज्यों में बंट गया था। मगध वाले क्षेत्र में नरसिंहगुप्त राज्य करता था, मालवा क्षेत्र में भानुगुप्त तथा बंगाल के क्षेत्र में वैन्यगुप्त ने अपना स्वतंत्र शासन स्थापित कर लिया था।
भितरी मुद्रालेख में नरसिंहगुप्त की माता का नाम महादेवी चंद्रदेवी मिलता है। भानुगुप्त तथा वैन्यगुप्त के साथ उसके संबंध के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है।
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नरसिंहगुप्त इन दोनों से अधिक शक्तिशाली था। अतः मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग में उसने अपना अधिकार सुदृढ कर लिया। उसकी सबसे बङी सफलता हूणों को पराजित करना है।
हूण नरेश मिहिरकुल बङा क्रूर एवं आततायी था। हुएनसांग के विवरण से पता चलता है,कि उसने मगध के राजा बालादित्य पर आक्रमण किया,किन्तु पराजित हुआ और बंदी बना लिया गया। बालादित्य ने अपनी माता के कहने में आकर उसे मुक्त कर दिया। राजनैतिक दृष्टि से उसका यह कार्य अत्यंत मूर्खतापूर्ण कहा जायेगा।
हुएनसांग ने जिस बालादित्य का उल्लेख किया है, उसके समीकरण के विषय में मतभेद है। संभवतः वह नरसिंहगुप्त बालादित्य ही है।
नरसिंहगुप्त की धनुर्धारी प्रकार की मुद्रायें मिलती हैं। मुद्राओं के मुखभाग पर राजा धनुष-बाण लिये खङे हैं। गरुङध्वज की आकृति है तथा जयति नरसिंहगुप्तः मुद्रालेख उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर कमलासन पर बैठी लक्ष्मी तथा बालादित्यः अंकित है।
नरसिंहगुप्त बौद्धमतानुयायी था। उसने बौद्ध विद्वान वसुबंधु की शिष्यता ग्रहण की थी। उसने अपने राज्य को स्तूपों तथा विहारों से सुसज्जित करवाया था। हुएनसांग, परमार्थ तथा आर्यमंजूश्रीमूलकल्प के लेखक ने उसके बौद्ध – प्रेम का उल्लेख किया है। उसी के काल में वसुबंधु का निधन हुआ था।
नालंदा मुद्रालेख में नरसिंहगुप्त को परमभागवत कहा गया है।
Reference : https://www.indiaolddays.com