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कनिष्क द्वारा लडे गये युद्ध एवं उसकी विजय

कनिष्क एक महान विजेता था, जिसने कडफिसेस साम्राज्य को बहुत अधिक विस्तृत किया। उसके युद्ध तथा विजयों का विवरण इस प्रकार दिया जा सकता है-

पूर्वी भारत की विजय –

वाराणसी के पास सारनाथ से कनिष्क के शासन के तीसरे वर्ष का अभिलेख प्राप्त हुआ है। बिहार तथा उत्तर बंगाल से उसके शासन काल के बहुसंख्यक सिक्के मिलते हैं। श्रीधर्मपिटकनिदानसूत्र के चीनी अनुवाद से पता चलता है, कि कनिष्क ने पाटलिपुत्र के राजा पर आक्रमण कर उसे बुरी तरह परास्त किया तथा हर्जाने के रूप में एक बहुत बङी रकम की माँग की। परंतु इसके बदले में वह अश्वघोष लेखक, बुद्ध का भिक्षा-पात्र तथा एक अद्भुत मुर्गा पाकर ही संतुष्ट हो गया।

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स्पूनर ने पाटलिपुत्र की खुदाई के दौरान कुछ कुषाण सिक्के प्राप्त किये थे। सिक्कों का ढेर बक्सर से मिला है। वैशाली तथा कुम्रहार से भी कुषाण सिक्के मिलते हैं। बोधगया से हुविष्क के समय का मृण्मूर्तिफलक मिला है। ये सब बिहार पर कनिष्क के अधिकार की पुष्टि करते हैं।

बिहार के आगे बंगाल के कई स्थानों, जैसे – तामलुक (ताम्रलिप्ति) तथा महास्थान से कनिष्क के सिक्के मिलते हैं। दक्षिण-पूर्व में उङीसा प्रांत के मयूर – भंज, शिशुपालगढ, पुरी गंजाम आदि से कनिष्क के सिक्के मिलते हैं। किन्तु मात्र सिक्कों के प्रसार से ही कनिष्क के साम्राज्य-विस्तार का निष्कर्ष निकाल लेना युक्तिसंगत नहीं लगता । सिक्के व्यापारिक प्रसंग में भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाये जाते थे।

तथापि पूर्वि उत्तर प्रदेश तथा बिहार पर कनिष्क का अधिकार सुनिश्चित है। हाल ही में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ.के.के.सिनहा तथा वी.पी. सिंह के निर्देशन में बलिया जिले के खैराडीह नामक स्थान पर खुदाई की गयी है, जिसके परिणामस्वरूप एक अत्यंत समृद्धिशाली कुषाणकालीन बस्ती का पता चला है। घाघरा नदी के तट पर स्थित यह नगर एक प्रमुख व्यापारिक स्थल रहा होगा।

इससे भी पूर्वी उत्तर प्रदेश पर कुषाणों का आधिपत्य प्रमाणित होता है। और यह कनिष्क के काल में ही संभव हुआ होगा।

कौशांबी तथा श्रावस्ती से प्राप्त बुद्ध प्रतिमाओं की चरण-चोटियों पर उत्कीर्ण अभिलेखों में कनिष्क के शासन-काल का उल्लेख मिलता है। कौशांबी से कनिष्क की एक मुहर भी मिली है। इन प्रमाणों से ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि उसने इन प्रदेशों की विजय की थी।

चीन के साथ युद्ध-

चीनी तुर्किस्तान (मध्य एशिया) के प्रश्न पर कनिष्क तथा चीन के बीच युद्ध छिङ गया। चीनी स्रोतों से पता चलता है, कि 73 ईस्वी से 94 ईस्वी के बीच चीन का प्रसिद्ध सेनापति पानचाऊ अपने हनवंशी नरेश के आदेशों पर चीनी तुर्किस्तान की विजय के लिये प्रस्तुत हुआ।

उसने खोतान, काश्गर, कच्छ की विजय की तथा पामीर के उत्तर-पूर्व में चीनी आधिपत्य कायम किया। 88 ईस्वी में यू-ची नरेश (कनिष्क) ने 70 हजार अश्वारोहियों की एक विशाल सेना सुंग-लिन् पर्वत के पार चीनियों से युद्ध के लिये भेजी।चीनी इतिहासकार युद्ध का कारण यह बताते हैं, कि कनिष्क ने चीनी सेनापति के पास अपना दूत भेज कर हन राजकुमारी से विवाह की माँग की। पान-चाऊ ने उसकी सेना को परास्त कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। कनिष्क की इस असफलता का संकेत एक भारतीय अनुश्रुति में भी किया गया है, जिसके अनुसार उसने यह घोषित किया था, कि मैंने उत्तर को छोङकर अन्य तीन क्षेत्रों को जीत लिया है।

परंतु ऐसा प्रतीत होता है, कि कनिष्क ने शीघ्र ही अपनी पराजय का बदला ले लिया। हुएनसांग हमें बताता है, कि गंधार प्रदेश के राजा कनिष्क ने प्राचीन काल में सभी पङोसी राज्यों को जीत कर एक विस्तृत प्रदेश पर शासन किया।सुंग-लिन पर्वत के पूर्व में भी उसका अधिकार था। यहाँ सुंग-लिन के पूर्व के प्रदेश से तात्पर्य चीनी तुर्किस्तान से ही है, जिसमें यारकंद, खोतान तथा काशगर सम्मिलित थे।

प्रो. बेली को खोतान से एक पांडुलिपि मिली है, जिसमें बहलक (बैक्ट्रिया) के शासक चंद्र कनिष्क का उल्लेख हुआ है। इससे भी कनिष्क का खोतान पर अधिकार प्रमाणित होता है। चीनी तुर्किस्तान के अतिरिक्त बैक्ट्रिया, ख्वारिज्म तथा तुखारा पर भी उसका अधिकार प्रमाणित होता है।

चीनी तुर्किस्तान के अतिरिक्त बैक्ट्रिया, ख्वारिज्म तथा तुखारा पर भी उसका अधिकार था। चीनी स्रोतों से विदित होता है, कि पार्थिया के शासक ने कनिष्क के ऊपर आक्रमण किया, किन्तु कनिष्क ने उसे पराजित कर दिया।

पश्चिमोत्तर प्रदेशों की विजय-

कनिष्क के शासन काल के 11वें वर्ष का अभिलेख सुई बिहार से मिला है। इससे यह प्रमाणित होता है, कि अपने शासन के 11 वें वर्ष में उसने निचली सिंधु घाटी को जीत लिया था। इसी वर्ष का एक लेख जेद्दा (उन्द-पेशावर) से मिला है।

कपिशा में कनिष्क के अधिकार की पुष्टि हुएनसांग करता है। काबुल के वार्दाक से शक संवत् (151 तिथि वाला) हुविष्क का एक लेख मिला है, जो अफगानिस्तान के ऊपर कुषाण सत्ता को प्रमाणित करता है। यह विजय भी कनिष्क के समय में ही की गयी होगी। कल्हण की राजतरंगिणी से पता चलता है, कि उसका कश्मीर पर अधिकार था। इसके अनुसार उसने यहाँ कनिष्कपुर नामक नगर बसाया था।

दक्षिण भारत –

साँची से कनिष्क संवत् 28 का एक लेख मिला है। यह वासिष्क का है, तथा बौद्ध प्रतिमा पर खुदा हुआ है। वासिष्क की किसी भी उपलब्धि का ज्ञान हमें नहीं है। उसका शासन मात्र 4 वर्षों का था। अतः कहा जा सकता है, कि यह भू-भाग कनिष्क द्वारा ही विजित किया गया होगा।

साँची लेख में वासु नामक किसी राजा का उल्लेख मिलता है। यह संभवतः कनिष्क के समय में मालवा का उपराजा रहा होगा। ऐसा निष्कर्ष निकलता है, कि दक्षिण में कम से कम विध्यपर्वत तक कनिष्क का साम्राज्य विस्तृत था। साँची के एक अन्य लेख में वास नामक किसी राजा का उल्लेख मिलता है, वह संभवतः कनिष्क के समय में मालवा का उपराजा था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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