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मौर्य सम्राट अशोक का साम्राज्य विस्तार

अशोक के अभिलेखों के आधार पर हम निश्चित रूप से उसकी साम्राज्य सीमा का निर्धारण कर सकते हैं। उत्तर पश्चिम में दो स्थानों से उसके शिलालेख प्राप्त हुए हैं-

  1. पेशावर जिले में स्थित शाहबादगढी
  2. हजारा जिले में स्थित मानसेहरा।

इन स्थानों के अतिरिक्त कंदहार के समीप शरेकुला तथा जलालाबाद के निकुट काबुल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित लघमान से अशोक के अरामेइक लिपि के लेख मिले हैं। इन अभिलेखों के प्राप्त-स्थानों से यह स्पष्ट होता है कि उसके साम्राज्य में हिन्दुकुश, एरिया (हेरात), आरकोसिया (कंदहार) तथा जेड्रोसिया शामिल थे।

इन प्रदेशों को सेल्युकस ने चंद्रगुप्त मौर्य को दिया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग कपिशा में अशोक के स्तूप का उल्लेख करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अशोक के साम्राज्य में अफगानिस्तान का एक बङा भाग सम्मिलित था। चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

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उत्तर में कालसी (उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले में स्थित) से उसका शिलालेख मिला है।रुमिनदेई तथा निग्लीवा के स्तंभ लेखों से पता चलता है, कि उत्तर में हिमालय क्षेत्र का एक बङा भाग (नेपाल की तराई) भी उसके साम्राज्य में स्थित था।

दक्षिण की ओर कर्नाटक राज्य के ब्रह्मगिरि (चित्तलदुर्ग जिला), मास्की (राजयचूर जिला), जटिगं-रामेश्वरम् (चित्तलदुर्ग जिला),सिद्धपुर (ब्रह्मगिरि से एक मील पश्चिम में स्थित) से उसके लगुशिलालेख मिलते हैं। इनसे उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा कर्नाटक राज्य तक जाती है। द्वितीय शिलालेख में अशोक अपनी दक्षिणई सीमा पर स्थित चोल, पाण्डय, सतियपुत्त, केरलपुत्त तथा ताम्रपर्णि के नाम बाताता है।

चोल राज्य में तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली तथा तंजोर का क्षेत्र था। पाण्ड्य राज्य में मदुरा, रामनाद तथा तिरुनेवेल्ली के जिले शामिल थे। केरलपुत्त राज्य में दक्षिण मालाबार क्षेत्र था। सतियपुत्त की पहचान संदिग्ध है। ताम्रपर्णि से तात्पर्य लंका से है। इन सभी के साथ अशोक का मैत्रीपूर्ण संबंध था। इससे स्पष्ट धुर दक्षिण के भाग को छोङकर ( जो चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्त तथा केरलपुत्त के अधिकार में था) संपूर्ण भारत अशोक के अधिकार में था।

तेरहवें शिलालेख में अशोक के समीपवर्ती राज्यों की सूची इस प्रकार मिलती है-

  • योन,
  • कंबोज,
  • गंधार,
  • रठिक,
  • भोजक,
  • पितनिक,
  • आंध्र,
  • नाभक,
  • नाभपम्ति,
  • पारिमिदस।

इनमें योन अथवा यवन, कंबोज तथा गंधार प्रदेश उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर स्थित थे। भोज – बरार तथा कोंकण में तथा रठिक या राष्ट्रिक महाराष्ट्र में निवास करते थे।

पितिनिक पैठन में तथा आन्ध्र राज्य कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच स्थित था।नाभक अथवा नाभपमिस राज्य पश्चिमी सीमा प्रांत के बीच कहीं बसा था।

पारिमिदस के समीकरण के विषय में विवाद है।रायचौधरी इसे विन्ध्यक्षेत्र में तथा भंडारकर बंगाल के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित बताते हैं।

पश्चिम में काठायावाङ में जूनागढ के समीप गिरनार पहाङी तथा उसके दक्षिण में महाराष्ट्र के थाना जिले के सोपारा नामक स्थान से उसके शिलालेख मिलते हैं।

बंगाल की खाङी के समीप स्थित कलिंग राज्य को अशोक ने अपने अभिषेक के 8वें वर्ष जीता था। उङीसा के दो स्थानों- से भी अशोक के अभिलेख मिलते हैं।

  1. धौली,
  2. जौगढ

बंगाल में ताम्रलिप्ति से प्राप्त स्तूप उसके वहां आधिपत्य की सूचना देता है। ह्वेनसांग हमें बताता है, कि समतट, पुण्ड्रवर्धन, कर्णसुवर्ण आदि में भी अशोक के स्तूप थे। इन सभी अभिलेखों की प्राप्ति स्थानों से यह स्पष्ट हो जाता है, कि उसका साम्राज्य उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत (अफगानिस्तान) से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक तथा पश्चिम में काठियावाङ से लेकर पूर्व में बंगाल की खाङी तक विस्तृत था।

कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी से पता चलता है, कि उसका कश्मीर पर भी अधिकार था। इसके अनुसार उसने वहां धर्मारिणी विहार में अशोकेश्वर नामक मंदिर की स्थापना करवायी थी। कल्हण अशोक को कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक बताता है। उसके साम्राज्य की उत्तरी सीमा हिमालय पर्वत तक जाती थी। इस प्रकार वह अपने समय के विशालतम साम्राज्यों में से एक था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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