प्राचीन भारतइतिहासवैदिक काल
पंच महायज्ञ एवं पंच ऋण
पंच महायज्ञ हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बताये गए हैं। धर्मशास्त्रों ने भी हर गृहस्थ को प्रतिदिन पंच महायज्ञ करने के लिए कहा है। नियमित रूप से इन पंच यज्ञों को करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है। इन महायज्ञों के करने से ही मनुष्य का जीवन, परिवार, समाज शुद्ध, सदाचारी और सुखी रहता है।
देवयज्ञ/ब्रह्म यज्ञ-
इस यज्ञ मेंअनुष्ठान करवाया जाता है।
पितृ यज्ञ-
पूर्वजों के प्रति श्राद्ध, तर्पण करना।
- ऋषि यज्ञ-
वेदों का अध्ययन, दान देना।
- भूत यज्ञ-
समस्त जीवों को बलि प्रदान करना यह बलि अग्न में न डालकर चारों दिशाओं में खुले में रखी जाती है। जैसे- पक्षियों के लिये अनाज, चीटियों के लिये अनाज।
- नृ यज्ञ/अतिथि / मानव यज्ञ-
अतिथि सत्कार । गौतम धर्मसूत्र में कहा गया है कि- अतिथि न केवल आपके घर में भोजन करता है, बल्कि आपके पापों का भी भक्षण करता है।
Reference : https://www.indiaolddays.com/