मध्यकालीन भारतइतिहासभक्ति आंदोलन

15वी. एवं 16वी. शताब्दियों के धार्मिक आंदोलन

प्रारंभिक मध्यकाल ( 8वी. शता ) में भारत में हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के दो समानान्तर आंदोलनों का उदय हुआ जो क्रमशः भक्ति एवं सूफी आंदोलनों के द्योतक हैं। 15 वी. तथा 16 वी. शता. में इनका पूर्ण विकास हुआ। इन दोनों ही आंदोलनों का इस्लाम के आगमन या भारत में तथाकथित मुस्लिम शासन से शायद ही कोई संबंध था। भक्ति आंदोलन के बीज उपनिषदों, भगवतगीता, भागवत पुराण आदि में मिलते हैं। तुर्की आधिपत्य के काल में जब देश का जनजीवन घुटन का अनुभव कर रहा था तब सूफी खानकाह ने सामाजिक संदेश फैलाने तथा सुधारवादी राजनीति का उन्माद पैदा करने का काम किया।

इस्लाम धर्म क्या है

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12 वी. शता. में अनेक सूफी संत भारत आकर बस गये जिनमें सबसे प्रमुख संत मुइनुद्दीन चिश्ती प्रमुख थे। इन्होंने पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में अजमेर शरीफ को अपना निवास स्थान बनाया। इन दोनों की समानांतर धार्मिक आंदोलनों की प्रमुख विशेषता यह है कि इन्होंने भारतीय समाज को सैद्धांतिक विश्वासों, कर्मकांडों, जातिवाद तथा साम्प्रदायिक घृणा और इसी प्रकार की अन्य बुराइयों से मुक्त कराया। ये दोनों ही आंदोलन लोकतांत्रिक कआंदोलन थे जिन्होंने जनभाषा में सामान्य धर्म का प्रचार किया। इन्हें न तो कोई राजनीतिक संरक्षण मिला और न ही इन पर राजनीतिक गतिविधियों का ही कोई प्रभाव पङा। प्रेम और उदारता सूफी व भक्ति आंदोलनों के मूल भाव हैं। दोनों की रहस्यवादी भावना संयुत्त रूप से व्यक्ति और समाज की वर्ग, धर्म, धन,शक्ति  और पद के अवरोधों से ऊपर उठाकर उनकी नैतिक उन्नति में योगदान दिया।

सूफीमत-

सूफीवाद इस्लाम के भीतर ही एक सुधारवादी आंदोलन के रूप में ईरान से शुरू हुआ था, जिसमें शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया गया। सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सफा शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पवित्रता अर्थात जो लोग आध्यात्मिक रूप से और आचार-विचार से पवित्र थे, वे सूफी कहलाए। 10 वी. शताब्दी में मुताजिल अथवा तुर्क बुद्धिवादी दर्शन का आधिपत्य समाप्त हुआ और पुरातनपंथी विचारधारा का जन्म हुआ जो कुरान और हदीस पर आधारित थी। इसी समय सूफी रहस्यवाद का जन्म हुआ।

सूफी सिलसिले-

चिश्ती सम्प्रदाय-

सैय्यद मुहम्मद हाफिज के अनुसार चिश्ती भारत का सर्वप्रथम प्राचीन सूफी सिलसिला है। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती सन्1192ई. में शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत में आये थे। इसके बाद में उन्होंने चिश्तियां परंपरा की नींव डाली।

सुहरावर्दी सम्प्रदाय ( 12 वीं शता. ) –

बगदाद के शिक्षक शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी  इस सिलसिले के संस्थापक थे।भारत में सुहरावर्दी सिलसिले को सुदृढ तथा लोकप्रिय बनाने का मुख्य श्रेय उसके शिष्य बहाउद्दीन जकारिया तथा जलालुद्दीन तबरीजी को है।

सुहरावर्दी का मुख्यालय मुल्तान था। इसके अतिरिक्त यह सिंध, पंजाब में भी यह फैला हुआ था। उन्होंने राजकीय पद जैसे शेख-उल-इस्लाम, सद्र-ए-विलायत आदि स्वीकार किया। चिश्तियों के विपरीत इस पंथ के संत बहुत आराम की जिन्दगी व्यतीत करते थे। वे राजनीतिक संपर्क द्वारा अपने कार्यों को अधिक उचित ढंग से करना चाहते थे। बहाउद्दीन जकारिया ने कुबाचा के विरुद्ध इल्तुतमिश को सहायता दी थी। इसी कारण इल्तुतमिश ने उसे शेख-उल-इस्लाम की उपाधि दी थी। उसने मुल्तान में खानकाह या मठ की स्थापना की।

हमीदुद्दीन नागौरी इस सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे।

कादिरी सम्प्रदाय-

यह इस्लाम में प्रथम रहस्यवादी पंथ था। इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने की। भारत में इस सिलसिले की शुरुआत सैय्यद मुहम्मद जिलानी ने की। इस सिलसिले के सबसे प्रसिद्ध संत शेख मीर मुहम्मद मियाँ मीर थे। शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह कादिरी सिलसिले का अनुयायी  था और उसने लाहौर में मियाँ मीर से भेंट की थी। जब मियाँ मीर की मृत्यु हो गई तो दारा मुल्तान शाह बदख्शी नामक उसके उत्तराधिकारी का शिष्य बन गया।

शत्तारी सिलसिला-

लोदी काल में शाह अब्दुल्ला ने शत्तारी सिलसिले की स्थापना की। मुहम्मद गौस ( ग्वालियर ) इस सम्प्रदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे। मुगल शासक हुमायूँ तथा तानसेन मुहम्मद गौस से अत्यधिक प्रभाभित थे। शत्तारी संतों ने हिन्दू और मुसलमानों के धार्मिक विचारों तथा रीतियों में साम्य दिखलाकर उन्हें निकट लाने का यथेष्ट प्रयत्न किया। इस पंथ के सूफियों ने सुहरावर्दियों की भाँति लौकिक सुविधाओं से पूर्ण आरामदायक जिन्दगी व्यतीत की।

नक्शबंदी सिलसिला-

अकबर के शासनकाल ( 1556-1605 ई. ) में छः प्रमुख सिलसिलों में अंतिम नक्शबंदी सिलसिला की स्थापना ख्वाजा बाकी विल्लाह ने की थी। शेख अहमद सरहिन्दी इस सिलसिले के प्रसिद्ध संत थे जो मुजहीद आलिफसानी के नाम से प्रसिद्ध थे।

अकबर एवं जहाँगीर के समकालीन शेख अहमद सरहिन्दी ने ईश्वर के साथ एकत्व ( वजहद-उल-वजूद ) के रहस्यवादी दर्शन ुपर आक्षेप किया तथा उसे अस्वीकार कर दिया। उसके स्थान पर उसने प्रत्यक्षवादी दर्शन  ( वजहद – उल – शुद ) का प्रतिपादन किया। शेख अहमद सरहिन्दी ने कहा कि मनुष्य और परमात्मा का संबंध दास और मालिक का संबंध है। वे मुजहिद अर्थात इस्लाम के पुनरुद्धारक  या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। सूफियों में यह सबसे अधिक कट्टरवादी सिलसिला था। इन्होंने अकबर की उदार नीतियों का प्रतिकार किया।

दो उपसंप्रदाय फिरदौसी तथा इत्तारी सुहरावर्दी के रूप में बिहार और बंगाल में सक्रिय थे। सूफी विचारधारा से प्रेरित ऋषि आंदोलन कश्मीर में शेख नुरूद्दीन  ऋषि द्वारा चलाया गया।

भक्ति आंदोलन-

सूफी आंदोलनों की अपेक्षा भक्ति आंदोलन अधिक प्राचीन है। उपनिषदों में इसकी दार्शनिक अवधारणा का पूर्ण प्रतिपादन किया गया है। भक्ति आंदोलन हिन्दुओं का सुधारवादी आंदोलन था। इसमें ईश्वर के प्रति असीम भक्ति, ईश्वर की एकता, भाई चारा, सभी धर्मों की समानता तथा जाति व कर्मकांडों की भर्त्सना की गई है। वास्तव में भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में 7 वी. शता. से 12वी. शता. के मध्य हुआ, जिसका उद्देश्य नयनवार तथा अलवार संतों के बीच मतभेद को समाप्त करना था। इस आंदोलन के प्रथम प्रचारक शंकरचार्य माने जाते हैं। शंकराचार्य के उपरांत बारह तमिल संतों ने जो संयुक्त रूप से अलवार के नाम से प्रसिद्ध थे, ने भक्ति को काफी लोकप्रिय बनाया।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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