प्राचीन भारतवैदिक काल

ऋग्वेद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

ऋग्वेद इस वेद में होता या होतृवर्ग के पुरोहित यज्ञ कुण्ड में अग्नि का आघान कर वेदमंत्रों द्वारा देवताओं का आह्वान करते थे।   ऋग्वेद आर्यों का सर्वाधिक पवित्र तथा प्राचीन ग्रन्थ है,

जिसमें 1028 सूक्तों का संकलन किया गया है, इसमें बालखिल्य सूक्त भी सामिल हैं जिनकी संख्या 11 है। इसके प्रत्येक सूक्त में 3से लेकर 100 तक मंत्र हैं।इस वेद में 10मंडल,1028सूक्त तथा 3शाखाएँ हैं।

ऋग्वैदिक काल की (1500-1000ई.पू.)जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती है। वेदों की संख्या 4 है-ऋग्वेद, सामवेद , यजुर्वेद तथा अथर्ववेद

ऋग्वेद की रचना संबंधी मत- 

  • तिलक के अनुसार ऋग्वेद की रचना 6000 ई.पू.में हुई।
  • मैक्समूलर – 1200-1000 ई.पू.(सबसे निकटतम मत)
  • विंटर नित्स- 3000ई.पू.
  • मान्य मत – 1500-1000 ई.पू.

ऋग्वेद की तीन शाखाएँ-  

  1. साकल शाखा- इसमें 1017 मंत्र हैं(वर्तमान में उपलब्ध)
  2. वाष्कल शाखा- 57 मंत्र हैं।
  3. बालखिल्य शाखा- 11 मंत्र हैं।

ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ- 

  • ऐतरेय ब्राह्मण –

ऐतरेय ब्राह्मण में पंचजनों में देव, मनुष्य, गन्धर्व, अप्सरा, पितरों की गणना की गई है। सर्वप्रथम राजा की उत्पत्ति का सिद्धांत ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। तथा चारों वर्णों के कर्मों की जानकारी भी इसी ब्राह्मण में मिलती है।

  • कौषितकी ब्राह्मण

ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है , आयुर्वेद के रचनाकार धनवंतरि थे।

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ऋग्वेद के मंडल- 10 मंडलों में से 2 से 7 वाँ मंडल सबसे प्राचीन हैं और इन्हें गौत्र-मंडल भी कहा जाता है क्योंकि इनकी रचना गौत्र विशेष के ऋषियों द्वारा की गई थी। 1तथा 10 वाँ मंडल सबसे नये मंडल हैं। 

  • 2रा मंडल की रचना –  गृत्समद भार्गव
  • 3रा मंडल की रचना – विश्वामित्र (इस मंडल में तीन मंत्रों की रचना 3 राजाओं द्वारा की गई है। अजमीढ, पुरमीढ, त्रासदस्यु)
  • 4था मंडल की रचना – वामदेव
  • 5वाँ मंडल की रचना – अत्रि
  • 6वाँ मंडल की रचना – भारद्वाज
  • 7वाँ मंडल की रचना – वशिष्ठ
  • 8वाँ मंडल की रचना – कण्व  अंगिरस

7वाँ मंडल शिक्षा से संबंधित है।

9वाँ मंडल सोम (वनस्पति के देवता) को समर्पित है अतः इस मंडल को सोममंडल कहा जाता है।

10वाँ मंडल के पुरुषसूक्त में प्रथम बार चतुरवर्ण (ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र )का उल्लेख हुआ है।  इसी मंडल में विवाह सूक्त में  वैदिक कालीन विवाह प्रणाली  का उल्लेख भी मिलता है।

ऋग्वेद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य- 

  • ऋग्वेद के सूक्तों के पुरुष रचियताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि प्रमुख हैं।
  • सूक्तों के स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, शची, कांक्षावृत्ति, पौलोमी आदि प्रमुख हैं।
  • ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 95 सूक्त में पुरुरवा,ऐल और उर्वसी का संवाद है।
  • इस वेद में आर्यों के निवास स्थल के लिए सभी जगह सप्त सिन्धवः शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है।
  • ऋग्वेद में कुछ अनार्यों  जैसे -कीकातास, पिसाकास, सीमियां आदि के नामों का उल्लेख हुआ है।
  • ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था।
  • ऋग्वेद में वाय शब्द का प्रयोग जुलाहा तथा ततर शब्द का प्रयोग करघा के अर्थ में हुआ है।
  • इस वेद लगभग 25 नदियों का उल्लेख किया गया है जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिंधु का वर्णन अधिक है, तथा सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है तथा सरस्वती का उल्लेख भी कई बार हुआ है।
  • ऋग्वेद में सूत, रथकार तथा कर्मार नामों का उल्लेख हुआ है, जो राज्याभिषेक के समय पर उपस्थित रहते थे। इन सभी की संख्या राजा को मिलाकर 12 थी।
  • ऋग्वेद में 33 देवी देवताओं का उल्लेख है । इस वेद में अग्नि को आशीर्षा, अपाद, घृतमुख, घृत पृष्ठ, घृत-लोम, अर्चिलोम तथा वभ्रलोम कहा गया है।
  • “असतो मा सद् गमय” वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। सूर्य से संबंधित देवी सावित्री को सम्बोधित “गायत्री मंत्र” ऋग्वेद में उल्लेखित है।
  • ऋग्वेद के एक मंडल में केवल एक ही देवता की स्तुती में श्लोक हैं, वह सोम देवता है।
  • ऋग्वेद के 9वें मंडल में सोम रस की प्रशंसा की गई है। इसी वेद में गाय के लिए अहन्या शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • इस वेद में हिरण्यपिण्ड का वर्णन किया गया है। इस वेद में तक्षन् अथवा त्वष्ट्रा का वर्णन किया गया है। आश्विन का वर्णन भी ऋग्वेद में कई बार हुआ है। आश्विन को नासत्य (अश्विनी कुमार) भी कहा गया है।
  • ऋग्वेद में इंद्र को सर्वमान्य तथा सबसे अधिक शक्तिशाली देवता माना गया है। इन्द्र की स्तुती में ऋग्वेद में 250 ऋचाएँ हैं।
  • इस वेद के 7वें मंडल में सुदास तथा दस राजाओं के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है,जो कि पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लङा गया , इस युद्ध में सुदास की जीत हुई ।
  • ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं के उदाहरण मिलते हैं , जो दीर्घकाल तक या फिर आजीवन अविवाहित रहती थी । इन कन्याओं को अमाजू कहा जाता था।
  • इस वेद में कपङे के लिए वस्त्र, वास तथा वसन शब्दों का उल्लेख किया गया है।  इस वेद में भिषक् को देवताओं का चिकित्सक कहा गया है।
  • ऋग्वेद में अनार्यों के लिए अव्रत(व्रतों का पालन न करने वाला), मृद्धवाच(अस्पष्ट वाणी बोलने वाला), अनास(चपटी नाक वाले) कहा गया है।
  • ऋग्वेद में जन का उल्लेख 275 बार तथा विश का 170 बार उल्लेख किया गया है।
  • ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीले होने के कारण पंचजन्य कहा गया – ये थे-पुरु, यदु, अनु, तुर्वशु तथा द्रहयु। इस वेद में केवल हिमालय पर्वत तथा इसकी एक चोटी मुजवंत का उल्लेख हुआ है।
  • ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख 24 बार हुआ है। इस वेद में सूर्या, उषा तथा अदिति जैसी देवियों का वर्णन किया है।
  • इस वेद में बहुदेववाद, एकेश्वरवाद, एकात्मवाद का उल्लेख है।
  • ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्म का वर्णन है।

ऋग्वेद में उल्लेखित नदियाँ-

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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