आधुनिक भारतइतिहास

सहवास-वय विधेयक क्या था

सहवास-वय विधेयक (Sahavāsa-vaya vidhēyaka) –

19 वी. शता. में समाज सुधार हेतु दो विचारधाराएँ प्रचलित थी। कुछ समाज सुधारकों का विचार था कि ब्रिटिश सरकार की सहायता से कानून बनवा कर समाज की प्रचलित कुरीतियों को दूर किया जाये, क्योंकि उनके मतानुसार राजनीतिक प्रगति के लिए समाज सुधार आवश्यक है। इस विचारधारा के प्रबल समर्थक महादेव गोविंद रानाडे थे। इसके अतिरिक्त दूसरे कुछ लोग राजनीतिक स्वाधीनता के बाद ही समाज सुधार को संभव मानते थे। दूसरी विचारधारा के प्रबल समर्थक बाल गंगाधार तिलक थे।

भारतीय पुनर्जागरण का स्वरूप कैसा था

महाराष्ट्र के समाज सुधारकों में महादेव गोविंद रानाडे का नाम उल्लेखनीय है। वे प्रार्थना समाज के प्रमुख नेता थे। बंबई का प्रार्थना समाज बंगाल के ब्रह्म समाज से कई प्रकार से भिन्न था। प्रार्थना समाज ने ईसाई मिशनरियों से साँठ-गाँठ नहीं की थी। महाराष्ट्र के समाज सुधार आंदोलन की विशेषता यह थी कि उसने प्राचीन परंपराओं को सुरक्षित रखते हुए उनके दोषों को दूर करने का प्रयास किया। इसलिए महाराष्ट्र में यह आंदोलन काफी सफल रहा।

प्रार्थना समाज की स्थापना किसने की थी?

इसने बंगाल के समाज सुधार आंदोलन की भाँति अपनी प्राचीन परंपराओं का तिरस्कार नहीं किया, बल्कि उन दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया, जो प्राचीन परंपराओं में घुस गये थे।रानाडे का समाज सुधार से अभिप्राय से अभिप्राय विधवा विवाह,स्रियों की शिक्षा, बाल विवाह का निषेध तथा जाति-पाँति के भेदभाव को समाप्त करना था।

उनका कहना था कि हमारी सामाजिक स्थिति, राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति से जुङी हुई है।यदि हम राजनीतिक प्रगति चाहते हैं तो सामाजिक प्रगति आवश्यक है, क्योंकि समाज सुधार के बिना राजनीतिक स्वाधीनता संभव नहीं है। वे इस सिद्धांत में आस्था रखते थे कि सुधारों की योजना लागू करते समय अतीत से नाता नहीं तोङना चाहिए और दीर्घकाल से बनी हुई आदतों तथा प्रवृतियों को ध्यान में रखना चाहिये, क्योंकि सच्चे सुधारक को किसी साफ स्लेट पर नहीं लिखना है, बल्कि उसका काम तो अधिकांशतः अपूर्ण वाक्य को पूरा करना होता है।

इन विचारों के कारण ही वे 19 वर्ष की आयु में ही विधवा विवाह संघ के सदस्य बन गये। 1887 में उन्होंने राष्ट्रीय समाज सुधार समिति की स्थापना की।

इसका अधिवेशन प्रतिवर्ष देश के अलग-2 क्षेत्रों में होता था। रानाडे के समाज सुधार समिति को राष्ट्रीय आधार दिया। उन्होंने नारी जाति के उत्थान के लिए विशेष प्रयत्न किये। उनका कहना था कि नारी जाति पर किये गये जुल्मों से हामारा भारतीय समाज अपमानित हुआ है। वे सुधारों की ऐसी पद्धति अपनाने पर जोर दे रहे थे, ताकि समाज का तत्कालीन स्वरूप सुरक्षित रहे, लेकिन समाज प्रगति की ओर अग्रसर भी हो।

तिलक और महाराष्ट्र के समाज सुधारकों में मुख्य रूप से दो बातों पर मतभेद था। तिलक राजनीतिक स्वाधीनता के समक्ष सामाजिक सुधारों को गौण समझते थे। वे इस से सहमत नहीं थे कि हमारी सामाजिक रूढिवादिता के कारण राजनीतिक पराधीनता हुई है। उन्होंने श्रीलंका,बर्मा और आयरलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ सामाजिक स्वतंत्रता होते हुए भी राजनीतिक पराधीनता थी।

तिलक सरकार द्वारा समाज सुधार किये जाने के विरोधी थे, जबकि रानाडे सामाजिक सुधारों को प्रथम आवश्यकता मानते थे तथा सरकारी अधिनियमों द्वारा समाज सुधार करने के पक्षपाती थे।

तिलक के उक्त विचारों के विरुद्ध मलाबारी,गुजराती,पारसी तथा बंगाली नेता सरकारी सहायता से कानून बनवाकर समाज सुधार चाहते थे। उन्हें समाज में बाल विवाह की प्रथा, सबसे बङी बुराई दिखाई दे रही थी। इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार को इस संबंध में कानून बनाने को कहा तथा सहवास-वय को लङकियों के लिए न्यनतम 12 वर्ष करने का सुझाव दिया।

ब्रिटिश सरकार ने 1890-91 में सहवास-वय विधेयक प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार लङकियों के लिए सहवास-वय न्यूनतम 12 वर्ष निर्धारित कर दी। तिलक ने इस विधेयक का घोर विरोध किया, क्योंकि बाल-विवाह पर रोक सरकार द्वारा लगाई गई थी। उनका कहना था कि इस प्रकार के प्रतिबंध स्वयं समाज द्वारा लगाये जायें तथा सरकार हमारे सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप न करे। किन्तु विधेयक के समर्थकों ने इंग्लैण्ड की संसद के सदस्यों पर दबाव डालकर यह अधिनियम पारित करा दिया।

किन्तु इस अधिनियम का समाज पर कोई प्रभाव नहीं पङा और बाल विवाह पूर्व की भाँति संपन्न होते रहे। फिर भी इस अधिनियम के पारित होने से लोगों में राजनीतिक जागृति अवश्य उत्पन्न हो गयी तथा विदेशी सत्ता के प्रति लोगों में संदेह उत्पन्न हो गया। अतः सरकार ने अब कानून पास करके समाज सुधार के प्रयत्न छोङ दिये।

Related Articles

error: Content is protected !!