संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवियों में माघ की भी गणना की जाती है। उनका समय लगभग 675ई. निर्धारित किया गया है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना शिशुपालवध नामक महाकाव्य है। इसमें कुल बीस सर्ग तथा 1650 श्लोक हैं। इसकी कथा महाभारत से ली गयी है। इस ग्रंथ में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर चेदि नरेश शिशुपाल की कृष्ण के द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है।
माघ वैष्णवमतानुयायी थे। उनकी इच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से शैव भारवि से आगे बढ जाने की थी तथा इसके निमित्त उन्होंने काफी प्रयत्न भी किये। उन्होंने अपने ग्रंथ की रचना किरातार्जुनीय पद्धति पर किया है। किरात की भाँति शिशुपालवध का आरंभ भी श्री शब्द से होता है तथा जिस प्रकार भारवि ने प्रत्येक सर्ग के अंत में लक्ष्मी शब्द का प्रयोग किया है, उसी प्रकार माघ ने भी अपने काव्य के प्रत्येक सर्ग के अंत में श्री शब्द प्रयुक्त किये हैं।
माघ अलंकृत काव्य शैली के आचार्य हैं तथा उन्होंने अलंकारों से सुसज्जित पदों का प्रयोग कुशलता से किया है। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करने भी वे दक्ष हैं। चतुर्थ सर्ग में रैवतक पर्वत का मनोहारी वर्णन मिलता है। भारतीय आलोचक माघ में कालिदास जैसी उपमा, भारवि जैसा अर्थ गौरव तथा दंडी जैसा पदलालित्य, इन तीन गुणों को देखते हैं – “माघे संति त्रयो गुणाः”। वे नवीन चमत्कारिक उपमाओं का सृजन करते हैं। माघ राजनीति, व्याकरण, काव्य शास्त्र, दर्शन, संगीत आदि के प्रकाण्ड पंडित थे तथा उनके ग्रंथ में ये तो सभी विशेषतायें स्थान-स्थान पर देखने को मिलती हैं। राजनीति तथा शासन संबंधी अनेक विवरण शिशुपालवध में मिलते हैं।
व्याकरण-संबंधी उनका ज्ञान तो अगाध है। पद्यों की रचना में उन्होंने नये-नये शब्दों का चयन किया है। उनका काव्य शब्दों का विश्वकोश प्रतीत होता है। माघ के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है, कि शिशुपालवध का नवां सर्ग समाप्त होने पर कोई नया शब्द शेष नहीं बचता है – नवसर्गगते माघे नवशब्दों न विद्यते। उनका शब्द – विन्यास विद्वतापूर्ण होने के साथ-साथ मधुर एवं सुन्दर भी है।
एक सामान्य घटना को लेकर उन्होंने एक विशालकाय काव्य हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया है तथा उसमें भी यह विशेषता है, कि कथानक में कहीं भी व्यक्तिक्रम नहीं आने पाया है। अर्थ की गंभीरता भी उनके काव्य में दिखाई देती है। माघ की कविता में ललित विन्यास भी देखने को मिलता है। इस प्रकार माघ बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। कालांतर के कवियों ने उनकी अलंकृत शैली का अनुकरण किया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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