इतिहासप्राचीन भारत

वेदांग के बारे में जानकारी

वैदिक साहित्य अत्यन्त विशाल तथा कठिन था और इसे समझ सकना सामान्य बुद्धि के परे था। अतः आगे चलकर वेद के अर्थ को सरलता से समझने तथा वैदिक कर्मकाण्डों के प्रतिपादन में सहायता देने के निमित्त एक नवीन साहित्य की रचना हुई, जिसे वेदांग कहा जाता है। इसकी संख्या छः है, जिनका ज्ञान वेद के यथार्थ ज्ञान के लिये अत्यावश्यक है – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष

वेदांग का विवरण निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षा – सायण के अनुसार जो स्वर, वर्ण आदि के उच्चारण के प्रकार का उपदेश देती है, वह विद्या शिक्षा है। इस प्रकार स्पष्ट है, कि वैदिक मंत्रों के शुद्ध-शुद्ध उच्चारण तथा शुद्ध स्वर क्रिया की विधियों के ज्ञान के निमित्त जो साहित्य लिखा गया, उसे शिक्षा कहा जाता है। इसे वेद रूपी पुरुष की नाक कहा गया है। प्राचीन युग में वेद मंत्रों के शुद्ध उच्चारण तथा स्वरों के ज्ञान का बङा महत्त्व था। पाणिनीय शिक्षा में वर्णित है, कि स्वर अथवा वर्ण से हीन मंत्र मिथ्या प्रयुक्त होने के कारण सही अर्थ का प्रतिपादन था। पाणिनीय शिक्षा में वर्णित है, कि स्वर अथवा वर्ण से हीन मंत्र मिथ्या प्रयुक्त होने के कारण सही अर्थ का प्रतिपादन नहीं करता, अपितु वाग्वज्र बनकर यजमान का ही नाश कर डालता है। वैदिक शिक्षा संबंधी प्राचीनतम् साहित्य प्रतिशाख्य हैं। बाद में इसी आधार पर याज्ञवल्क्य शिक्षा, नारद शिक्षा, पाणिनीय शिक्षा आदि कई ग्रंथों की रचना की गयी।
  2. कल्प – वैदिक यज्ञों की व्यवस्था तथा गृहस्थाश्रम के लिये उपयोगी कर्मों के प्रतिपादन करने के निमित्त कल्प नामक वेदांग का प्रणयन हुआ। छोटे-छोटे वाक्यों में सूत्र बनाकर सभी महत्त्वपूर्ण विधि-विधानों को प्रस्तुत किया गया। सूत्र ग्रंथों को ही कल्प कहा जाता है। इनकी रचना वैदिक साहित्य के अत्यन्त विस्तृत हो जाने के कारण यज्ञीय नियमों को व्यावहारिक उपयोग के लिये संक्षिप्त बनाने के उद्देश्य से की गयी थी। कल्पसूत्र मुख्यतः चार प्रकार के हैं – श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र, धर्मसूत्र,शुल्व सूत्र
  3. व्याकरण – शब्दों की मीमांसा करने वाले शास्त्र को व्याकरण कहा गया है। इसका संबंध भाषा-संबंधी समस्त नियमों से है। इसे वेदरूपी पुरुष का मुख बताया गया है। प्राचीन शास्त्रों में व्याकरण की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। वैदिक साहित्य की रक्षा, नये पदों की कल्पना, साहित्य का सरलतापूर्वक अध्ययन, वैदिक शब्दों के विषय में उत्पन्न संदेहों के निवारण आदि की दृष्टि से व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है।
    व्याकरण की सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वप्रमुख रचना महर्षि पाणिनि की अष्टाध्यायी है। इसमें आठ ध्याय तथा लगभग 400 सूत्र हैं। यह संस्कृत का अत्यन्त वैज्ञानिक ग्रंथ है, जिसकी जोङ का दूसरा ग्रंथ संसार की किसी भाषा में नहीं है। पाणिनी का समय ईसा पूर्व पाँचवी शताब्दी का है। इसके बाद ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में कात्यायन ने संस्कृत में प्रयुक्त होने वाले नये शब्दों की व्याख्या करने के लिये वार्त्तिक लिखे। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पतंजलि ने पाणिनीय सूत्रों पर महाभाष्य लिखा। इन तीनों वैयाकरणों के नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इसके बाद सातवीं शती में जयादित्य और वामन द्वारा अष्टाध्यायी पर काशिका नामक टीका लिखी गयी।
  4. निरुक्त – वेद के कठिन शब्दों का संकलन निघण्टु नामक ग्रंथ में हुआ है। इन्हीं की व्याख्या करने के लिये यास्क ने निरुक्त की रचना की थी। इसमें कुल मिलाकर चौदह अध्याय हैं। वैदिक शब्दों की व्याख्या के साथ ही साथ निरुक्त में व्याकरण, भाषा-विज्ञान,साहित्य, इतिहास आदि से संबंधित कुछ विवरण भी प्राप्त होते हैं।
  5. छंद – वैदिक मंत्र अधिकांशतः छंदों में बद्ध हैं। अतः उनके ठीक ढङ्ग से उच्चारण तथा पाठ के लिये छंदों का ज्ञान आवश्यक है। पाणिनीय शिक्षा में छंदों को वेदों का पैर बताया गया है। छंद के आधार बिना वेद चलने में असमर्थ हैं। प्रधान छंदों के नाम संहिताओं तथा ब्राह्मणों में मिलते हैं। छंदशास्त्र पर स्वतंत्र ग्रंथ पिङ्गलमुनि का छंदसूत्र है। इसमें वैदिक तथा लौकिक दोनों ही छंदों का विवेचन किया गया है।
  6. ज्योतिष – यज्ञों से अभीष्ट फल प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक था, कि उनका अनुष्ठान शुभ समय तथा मुहूर्त में किया जाय। ग्रहों तथा नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन करके यह समय पता किया जाता था। इस अध्ययन ने ज्योतिष नामक वेदांग को जन्म दिया।
    ज्योतिष की सर्वप्राचीन रचना मगधमुनि कृत वेदांग ज्योतिष है। इसमें कुल 44 श्लोक हैं। इसमें कहा गया है, कि जो ज्योतिष को जानता है वही यज्ञों का यथार्थ ज्ञाता है। वेदांग ज्योतिष के दो ग्रंथ हैं, जो ऋग्वेद तथा यजुर्वेद से संबंधित हैं। इन्हें क्रमशः आचार्य ज्योतिष तथा याजुष ज्योतिष कहा जाता है। कालांतर में इन पर की भाष्य लिखे गये।
    वेदांग ज्योतिष ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का मूलाधार है।
References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!