महाजनपद काल प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाइयों को कहते थे। उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में भी इनका उल्लेख कई बार हुआ है।
महाजनपद काल को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे – सूत्रकाल/ बुद्ध युग/ द्वितीयनगरीकरण की शुरुआत।
16 महाजनपद हैं।15 महाजनपद नर्मदा के उत्तर में स्थित हैं। 16वाँ महाजनपद अस्सक / अश्मक गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। महाजनपद काल के कारण द्वितीय नगरीकरण का प्रारंभ हुआ।
अंगुत्तर निकाय,महावस्तु(बौद्ध ग्रंथ), भगवती सूत्र(जैन ग्रंथ) ये दोनों धर्म ग्रंथ16 महाजनपदों का उल्लेख करते हैं।
अंगुत्तर निकाय में गांधार तथा कंबोज का उल्लेख हुआ है।
महावस्तु में सिबी, दर्शन नामक महाजनपदों का उल्लेख किया गया है।
बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में सबसे पहले व प्रमाणित 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
16 महाजनपद-
काशी-
काशी की राजधानी वाराणसी थी। इसे बनारस भी कहा गया है। वाराणसी के शासक अश्वसेन(पाशर्वनाथ के पिता- 23 वें तीर्थंकर) थे। यह क्षेत्र सूतीवस्त्र व घोङों के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था।कोसल महाजनपद ने इसे जीत लिया था।
रामकथा से संबंधित प्राचीनतम ग्रंथ दशरथ – जातक के अनुसार दशरथ, राम का संबंध काशी से था।
कोसल-
कोसल की दो राजधानियाँ थी। श्रावस्ती और कुशावती। यहाँ के प्रसिद्ध शासक प्रसेनजित थे जो बुद्ध के समकालीन थे। प्रसेनजित ने अपनी बहिन कोसल देवी का विवाह बिंबिसार से कराया तथा काशी दहेज में दिया।काशी की आय 1लाख स्वर्ण मुद्रा दान में दी। (मुद्रा प्रणाली प्रारंभ हुई) तथा भूराजस्व का आंकलन मुद्रा में होने लगा। प्रसेनजित की पुत्री वजिरा का विवाह अजातशत्रु से हुआ। कोसल महाजनपद के एक अन्य प्रसिद्ध शासक विदुधान भी हुए हैं।
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अंग-(पूर्वी बिहार)
अंग की राजधानी चंपा (पुराणों में इसे मालिनी कहा गया है)थी। चंपा के वास्तुकार महागोविंद थे। अंग के शासक ब्रह्मदत्त थे जिसे पराजित कर बिंबिसार ने अंग जीता था।
वत्स-
वत्स की राजधानी कोशांबी थी। कुरुवंश के शासक निचक्षु ने कोशांबी को राजधानी बनाया । आगे चलकर यहाँ पौरवंश का शासन स्थापित हुआ।
मल्ल-
मल्ल नामक महाजनपद की दो राजधानियाँ थी-पावा और कुशीनारा (कुशीनारा में बुद्ध की मृत्यु हुई थी)। यह गणतंत्र था।
वज्जि-
वज्जि का शाब्दिक अर्थ होता है- पशुचारक समूह (समुदाय)यह गणतंत्र था।
वज्जि में 8 समूह थे-
वैशाली के लिच्छवी, कुण्डग्राम के ज्ञातृक, मिथिला के विदेह, रामग्राम के कौलिय, उग्र, भोग, मोरव्य, इक्ष्वाकु।
अजातशत्रु ने महात्मा बुद्ध के वैशाली में उपस्थित होने के समय आक्रमण किया। लंबे संघर्ष के बाद अजातशत्रु ने मंत्रियों (सुनीध तथा बर्षकार)की सहायता से वज्जी समूहों में फूट डलवाई एवं वज्जि समूहों को जीत लिया।
सूरशेन(मथुरा)-
पुराणों के अनुसार सूरशेन का शासक यदुवंश का शासक अवंतिपुत्र(बुद्ध समकालीन, बुद्ध का शिष्य) था, जो कि अवंति के शासक चंडप्रद्योत की पुत्री का पुत्र था।
कुरु (दिल्ली, हरियाणा)-
इंद्रप्रस्थ यहाँ की राजधानी थी। यहाँ का शासक उदयन था । आरंभ में यहांँ राजतंत्र था जो आगे चलकर गणतंत्र में बदल गया। अर्थशास्त्र तथा पुराणों में इस महाजनपद को राजशब्दोपजीविह कहा गया है।
चेदि (बुंदेलखंड)-
यहाँ की राजधानी सोथीवती (सुक्तिमती) थी। यहाँ का शासक कृष्ण का फुफेरा भाई शिशुपाल था।
अश्मक (एम.पी.)-
अश्मक गोदावरी नदी के तट पर बसा हुआ था। यहाँ की राजधानी पतिना/पोतना थी।यहाँ का शासक अरुण था।शासक अरुण ने कलिंग पर आक्रमण किया (बौद्ध ग्रंथ चुल्लकलिंग से इसकी जानकारी मिलती है।)अश्मक कोअवंती ने को जीत लिया था।
पांचाल (यू. पी.)-
पांचाल की दो राजधानियाँ थी-पहली/ उत्तरी राजधानी अहिच्छत्र, दूसरी /दक्षिणी राजधानी कांपिल्य थी । पांचाल महाजनपद को कोसल ने जीत लिया था।
कंबोज (पाक.)-
यहाँ की राजधानी राजपुर/हाटक थी । यहाँ के शासक सुदक्षिण तथा चंद्रवर्धन थे। ईरानी शासकों (डेलिस-I/ दाराबहु)ने कंबोज को जीत लिया था।
गांधार (पाक. रावल पिंडी पेशावर)-
यहाँ की राजधानी तक्षशिला थी। गांधार के अन्य नगर जो प्रसिद्ध थे वे हैं-पुष्कलावती , पुष्कलावती का शासक पुष्कासीरिन था (बिम्बिसार का समकालीन, मगध दरबार में दूतमंडल भेजा)।
मत्स्य (पूर्वी राजस्थान)-
यह महाजनपद अलवर, जयपुर, भरतपुर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इस महाजनपद को अवंति ने जीता था।
अवंति-
अवंति की दो राजधानियाँ थी, उज्जैन(उत्तरी क्षेत्र) तथा महीष्मती(दक्षिणी क्षेत्र)। यहाँ का शासक चंडप्रद्योत (बिम्बिसार, बुद्ध, प्रसेनजित का समकालीन)था।
चिकित्सा के लिए बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को चंडप्रद्योत के दरबार में भेजा था।
जबअवंति को मगध शासक शिशुपाल ने मगध में मिलाया था,तब अवंति का शासक अवंतिवर्धन था।
वत्स महाजनपद को भी मगध का अंग बना लिया था।
बुद्ध ने धर्म प्रचार के लिए अनेक क्षेत्रों की यात्राएं की लेकिन अवंति नहीं जा पाये।
मगध (बिहार)-
मगध की राजधानी गिरिव्रज/राजगृह थी। यहाँ की दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र थी । पाटलीपुत्र को उदयन ने स्थापित किया था।
मगध में कई वंशों ने शासन किया जो निम्नलिखित हैं-
हर्यंक वंश – इस वंश में कई राजाओं ने शासन किया था-
बिम्बिसार(544-492 ई.पू.)-
पुराणों के अनुसार मगध का प्रथम शासक -शिशुनाग था। लेकिन इतिहास में बिम्बिसार को ही मगध का प्रथम शासक माना गया है।
बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों के माध्यम से राजनैतिक शक्ति के विस्तार की योजना बनाई।
बिम्बिसार के गांधार के शासक (पुष्कासरीन), अवंति के शासक (चंडप्रद्योत)से राजनैतिक संबंध थे।
बिम्बिसार ने मगध साम्राज्यवाद की शुरुआत की। उसने सर्वप्रथम ब्रह्मदत्त को पराजित कर अंग को मगध में मिलाया।
बिम्बिसार ने”श्रेणिक”, “क्षेत्रीय बिम्बिसार” की उपाधि प्राप्त की।
बौद्ध धर्म मको संरक्षण दिया। बुद्ध को बेलूवन विहार दान में दिया।
जैन धर्म भी बिम्बिसार को जैन धर्म का संरक्षक मानते हैं।
422 ई.पू. में उसकेही पुत्र अजातशत्रु ने बिम्बिसार की हत्या की। (जैन ग्रंथ अजातशत्रु को पितृहंता का दोषी नहीं मानते हैं)
अजातशत्रु (492- 460 ई.पू.)-
अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति बनाए रखी। इसने वज्जि संघ को सुनीध,वस्सकार मंत्रियों की सहायता से जीता।
इसने कोसल शासक प्रसेनजित पर आक्रमण कर उसकी पुत्री वजिरा से विवाह किया एवं काशी को पुनः प्राप्त किया , आगे चलकर अजातशत्रु ने प्रसेनजित को हराकर उसके बाद के सभी शासकों को हराकर संपूर्ण कोसल को जीत लिया।
अजातशत्रु ने कुणिक की उपाधि धारण की। वज्जिसंघ के विरुद्ध महाशिलांकटक, रथमूसल जैसे युद्धास्रों का उपयोग किया।
यह शासक धार्मिक रूप से उदार शासक (बौद्ध तथा जैन दोनों ही इसे अपना संरक्षक मानते हैं, लेकिन ज्यादा साक्ष्य बौद्ध धर्म से संबंधित हैं)था।
अजातशत्रु के समय प्रथम बौद्ध संगीति – राजगृह (सप्तपर्णीगुफा)में हुई थी।
भरहुत स्तूप की वेदिका पर अजातशत्रु को बुद्ध की वंदना करते हुये दिखाया है।
राजगृह में अजातशत्रु ने महात्मा बुद्ध के अवशेषों पर स्तूप बनवाया था।
उदयन-
इसने पाटलीपुत्र (कुसुमपुर) की स्थापना कर इसे राजधानी बनाया। उदयन जैन धर्मावलंबी था।
नागदशक (हर्यंक वंश का अंतिम शासक)-
जनता द्वारा इसको हटाकर वाराणसी के मगध गवर्नर शिशुपाल को नया शासक बनाया। तथा शिशपाल ने नागवंश की स्थापना की।
नागवंश-
नागवंश के कई राजाओं ने मगध महाजनपद पर शासन किया था।
शिशुनाग-
शिशुनाग ने अवंती को जीता था।वैशाली को दूसरी राजधानी बनाया था।
कालाशोक-
कालाशोक को पुराणों में काकवर्ण कहा गया है। कालाशोक के समय में दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
नंद वंंश-
महापद्मनंद (उग्रसेन) ने नंदवंश की स्थापना की थी। महापद्मनंद महानंदिन तथा शूद्र महिला से उत्पन्न माना जाता है तथा नंद वंश स्थापित हुआ। इसने सर्वक्षत्रांतक की उपाधि धारण की। महापद्मनंद दूसरा परशुराम कहलाता है।
महापद्मनंद शूद्र वर्ण का था। इसके समय में मगध का साम्राज्य पश्चिम में पंजाब तक फैला हुआ था।
इसने कलिंग पर आक्रमण किया तथा जैन तीर्थंकर शीतलनाथ की मूर्ति पाटलिपुत्र लाया।
कलिंग में नहर का निर्माण करवाया था। (खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है)
महापद्मनंद के 8 पुत्र थे , इसका 8 वां पुत्र घनानंद था। यूनानी इतिहासकारों ने घनानंद को अग्रमीज/जेंद्रमीज कहा है।
इसी के समय भारत पर अलेक्जेण्डर का आक्रमण हुआ । अलेक्जेण्डर (मकदूनिया)का शासक था।
महाजनपद काल को जानने के लिए पुरातात्विक तथा साहित्यिक दोनों ही स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है-
पुरातात्विक स्त्रोत-
NBPW (उत्तरी काले पॉलिसदार मृदभांड)
आहत सिक्के/ पंचमार्क सिक्के – 500 ई.पू. के लगभग पुराने सिक्के जो दूसरी शता. ई.पू. तक के प्राप्त हुये हैं। भारत में प्रचलित प्राचीन मुद्रा तथा मुद्रा प्रणाली की शुरुआत हुई। प्रारंभ में चांदी के आहत सिक्के सर्वाधिक थे, ताँबे , काँसे के सिक्के भी प्राप्त हुये हैं।
आहत सिक्के धातु के टुकङे पर चिन्ह विशेष ठप्पा मारकर (पीटकर) बनाए जाते थे। आहत सिक्कों पर चिन्हों के अवशेष भी मिलते हैं जैसे – मछली, पेङ, मोर, यज्ञ वेदी, हाथी, शंख, बैल, ज्यामीतीय चित्र (वृत्त, चतुर्भुज, त्रिकोण ), खरगोश।
इन सिक्कों का कोई नियमित आकार नहीं था। ये राजाओं द्वारा जारी नहीं किए गए माने जाते हैं , बल्कि व्यापारिक समूहों से संबंधित माने गए हैं।
अधिकांश आहत सिक्के पूर्वी यू.पी.(इलाहाबाद, शाहपुरा) तथा बिहार(मगध) से मिले हैं।
खारवेल का हाथी गुंफा अभिलेख – (1 शता. ई.पू.)
साहित्यिक स्रोत –
I.देशी साहित्य II.विदेशी साहित्य
I.देशी साहित्य –
बौद्ध धर्म – सुत्तपिटक, विनयपिटक, अंगुतर निकाय, महावस्तु।
जैन धर्म – भगवती सूत्र, कल्प सूत्र, औषाइयान, औपपाधिक सूत्र, आगम, आवश्यक चूर्णी।
ब्राह्मण – वेदांग(शिक्षा, व्याकरण, ज्योतिष, निरुक्त, कल्प, छंद, ), पुराण।
II.विदेशी साहित्य –
हेरोडोटस की हिस्टोरिका
हिकेटियस की ज्योग्रोफी
नियार्कस का विवरण
अनासीक्रीटीस का विवरण – सिकंदर की जीवनी
केसियस का विवरण
ऊपर जितने भी विद्वानों के नाम दिये गये हैं वे सभी विद्वान सिकंदर के समकालीन थे।
प्लूटार्क, जस्टिन, कर्टियस का विवरण। ये सभी विद्वान सिकंदर के बाद के काल में आये थे लेकिन इन्होंने सिकंदर के बारे में भी विवरण दिया है।