पंचतंत्र की रचना किसने की
पंचतंत्र एक प्रसिद्ध कथा-संग्रह है, जिसमें प्राचीन काल की अनेक कथाओं का संकलन किया गया है। इसके संकलनकर्त्ता विष्णु शर्मा गुप्तकाल की विभूति थे। कहा जाता है, कि इसकी रचना अमरकीर्ति नामक राजा के मूर्ख पुत्रों को शिक्षा देकर विद्वान बनाने के उद्देश्य से की गयी थी। इसकी कथायें सदाचार एवं नीतिपरक हैं।
पंचतंत्र में पाँच तंत्र (भाग) हैं – मित्रभेद, मित्रलाभ, संधि-विग्रह, लब्ध-प्रमाण एवं अपरिक्षितकारक। प्रत्येक तंत्र में एक मुख्य कथा तथा उसकी पुष्टि के निमित्त कई गौण कथायें दी गयी हैं। इसकी भाषा सरल तथा भाव स्पष्ट हैं। कथानक गद्य में है, किन्तु उपदेशात्मक सूक्तियों को पद्य में लिखा गया है। इसके पद्य रामायण, महाभारत तथा प्राचीन नीति ग्रंथों से लिये गये हैं। विष्णु शर्मा ने इन कथाओं के माध्यम से अत्यल्प समय में ही मूर्ख राजकुमारों को सदाचार सम्पन्न एवं नीति-निपुण बना दिया था। पंचतंत्र की कथायें इस समय उसके चार विभिन्न संस्करणों में मिलती हैं –
- पह्लवी अनुवाद जो मूलतः उपलब्ध नहीं है, किन्तु उसके विषय में हम सीरिआई तथा अरबी अनुवादों से जानते हैं।
- गुणाढ्य की वृहत्कथा में संकलित संस्करण।
- तंत्राख्यायिका तथा उससे संबंधित जैन आख्यान।
- दक्षिणी पंचतंत्र जिसके प्रतिनिधि नेपाली पंचतंत्र तथा हितोपदेश हैं। उपर्युक्त संस्करणों में तंत्राख्यायिका को आधुनिक पंचतंत्र का प्रतिनिधि माना जाता है। पंचतंत्र का मूलरूप हमें इसी में मिलता है। इसका उद्देश्य मुख्यतः राजनीति की शिक्षा देना है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं अन्य प्राचीन राजनीति संबंधी ग्रंथों के उद्धरण इसमें प्राप्त होते हैं। इसका संग्रह ईसा की तीसरी-चौथी शता. में किया गया प्रतीत होता है।
पंचतंत्र की लोकप्रियता विश्वव्यापी है। इसका अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में भी किया जा चुका है। यूरोप, एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीपों के कथानकों पर इसका व्यापक प्रभाव दिखाई देता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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