प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल कान्यकुब्ज(कन्नौज)
उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जनपद में स्थित कान्यकुब्ज अथवा कन्नौज नामक स्थान प्राचीन भारत का एक अति प्रसिद्ध नगर था। पुराणों के अनुसार इस नगर की स्थापना पुरूरवा के कनिष्ठ पुत्र अमावसु के द्वारा की गयी थी। इसका एक नाम ‘महोदय’भी मिलता है। महाभारत को कान्यकुब्ज को विश्वमित्र के पिता गाधि की राजधानी कहा गया है। दूसरी शता. ईसा पूर्व से लेकर पाँचवीं शता. ईस्वी तक कन्नौज का उल्लेख कई ग्रन्थों में मिलता है।
यूनानी लेखक भी इस नगर से परिचित थे। चीनी यात्री फाहियान लिखता है कि यहाँ दो बौद्ध विहार तथा एक स्तूप थे। ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्तकाल तक यह कोई महत्वपूर्ण नगर नहीं था।
कन्नौज की महत्ता 7वीं शता. ईस्वी से बढ़ी। पहले यह मौखरिवंश की राजधानी थी तथा फिर हर्षवर्धन ने उत्तरी भारत में अपना विशाल साम्राज्य स्थापित कर लेने के बाद कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। इस समय से कन्नौज ने पाटलिपुत्र का स्थान ग्रहण कर लिया तथा यह महत्वपूर्ण राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। हर्षचरित में कन्नौज को कुशस्थल भी कहा गया है। हर्ष के समय में इस नगर की महती उन्नति हुई तथा यह भारत का विशाल एवं समृध्दिशाली नगर बन गया।
चीनी यात्री हुएनसांग इस नगर के ऐश्वर्य का वर्णन करता है। यहाँ कई बौद्ध विहार तथा मन्दिर थे। यह पाँच मील लम्बा तथा डेढ़ मील चौड़ा था। यहाँ शिव और सूर्य के प्रसिद्ध मन्दिर थे। महाराज हर्ष ने कन्नौज में सभी धर्मौं की विशाल सभा का आयोजन करवाया। इसकी अध्यक्षता हुएनसांग ने की तथा इसकी समाप्ति के बाद महायान बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया।
हर्ष की मृत्यु के बाद कन्नौज पर अधिकार करने के लिए तत्कालीन भारत की तीन प्रमुख शक्तियों – गुर्जर-प्रतिहार, पाल तथा राष्ट्रकूट – में त्रिकोणात्मक संघर्ष छिड़ा जिसमें अन्ततोगत्वा प्रतिहारों की विजय हुई। प्रतिहार शासन में कन्नौज पुनः एक विशाल साम्राज्य की राजधानी बन गया। इस समय यहाँ अनेक हिन्दू मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। इसके अवशेष आज भी कन्नौज तथा उसके आस-पास से मिलते है। प्रतिहार शासन के पश्चात् कन्नौज का गौरव व महत्व भी समाप्त हो गया और महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यहाँ भारी लूट-पाट की गयी। फलस्वरूप यह नगर उजाड़ हो गया। तत्पश्चात् गहड़वाल वंश के शासक चन्द्रदेव ने 1085ई. में पुन कन्नौज में एक सुव्यवस्थित शासन स्थापित किया। इस वंश के अन्तिम राजा को हटाकर मुहम्म्द गौरी (1163ई.) ने वहाँ अपना अधिकार जमा लिया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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