प्राचीन भारतइतिहास

कार्ले की गुफा कहाँ स्थित हैं

महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित भोरघाट नामक पहाैङी पर कार्ले की गुफाये खोदी गयी हैं। कलात्मक दृ्ष्टि से ये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ एक भव्य चैत्यगृह तथा तीन विहार है।

चैत्यगृह तथा विहार किसे कहते हैं ?

यह चैत्यगृह सबसे बङा और सबसे सुरक्षित दशा में है। यह मुख्य द्वार से पीछे के द्वार तक 124 फुट 3 इंच लंबा, 45 फट 5 इंच चौङा तथा 46 फुट ऊँचा है। इसके सामने का भाग स्त्री-पुरुषो की आकृतियों से सजाया गया है।मंडप को पार्श्ववीथियों से अलग करते हुए 37 स्तंभ हैं, जिनमें 15-15 मंडप के दोनों ओर पंक्तिबद्ध खङे हैं तथा शेष सात स्तूप को घेरे हंए हैं। मंडप के दोनों ओर के स्तंभ भव्य नक्काशी युक्त हैं, जबकि शेष सादे हैं।

विराट कण्ठहार जैसे शोभायमान ये स्तंभ कलात्मक सौष्ठव में अद्वितीय हैं। नक्काशी युक्त स्तंभ के आधार चौकियों पर स्थापित पूर्ण कुंभों में पिरोये गये हैं तथा ऊपर के भाग भी औधें घङों से अलंकृत हैं जो लहराती हुई पद्म पंखुङियों से आच्छादित हैं। शीर्ष भाग की चौकियों पर हाथी, घोङे आदि पर आसीन दंपत्ति मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं। कुछ में सामने ओट के रूप में दीवार बनाई गयी है। सबसे आगे विशाल स्तंभ के ऊपर चार सिंह एक दूसरे से पीठ सटाये हुए विराजमान हैं, जो अशोक के सारनाथ सिंहशीर्ष की याद दिलाता है।

इस प्रकार कार्ले चैत्य प्राचीन भारत के सर्वाधिक सुंदर तथा भव्य स्मारकों में से है।इसमें एक लेख खुदा है, जिसके अनुसार वैजयंती के भूतपाल नामक श्रेष्ठि ने संपूर्ण जंबूद्वीप में उत्कृष्ट इस शैलगृह को निर्मित करवाया था। चैत्यगृह के विलक्षण वास्तु विन्यास एवं तक्षण को देखते हुए कहा जा सकता है, कि निर्माता का यह दावा निर्मूल नहीं है।संभवतः कार्ले चैत्य का निर्माण पुलुमावी के शासनकाल (ईसा की दूसरी शती के मध्य) करवाया गया था।

कार्ले के तीन विहारों का निर्माण साधारण कोटि का है। दूसरा तथा तीसरा विहार क्रमशः त्रिभूमिक तथा द्विभूमिक है। चौथे गुहा विहार में हरफान नामक पारसीक का नाम अंकित है, जिसने इसे दान में दिया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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