विद्वानों ने उपनिषद(upanishad) शब्द की व्युत्पत्ति उप+ नि + षद के रूप में मानी है। इसका अर्थ है कि जो ज्ञान व्यवधान रहित होकर निकट आये , जो ज्ञान विशिष्ट तथा संपूर्ण हो तथा जो ज्ञान सच्चा हो वह निश्चित ही उपनिषद(upanishadकहलाता है। अर्थात् वह ज्ञान जो गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया गया हो। उपनिषदों की भाषा संस्कृतहै तथा ये गद्य – पद्य दोनों में हैं। इनकों वेदांत भी कहा गया है, क्योंकि ये वेदोंके अंतिम भाग हैं। उपनिषदों में आत्मा तथा अनात्मा के तत्वों का निरुपण किया गया है, जो वेद के मौलिक रहस्यों का प्रतिपादन करता है। इनमें ज्ञान से संबंधित समस्याओं पर विचार किया गया है। उपनिषद(upanishad) भारत के अनेक दार्शनिक , जिन्हें ऋषि कहा जाता है, के अनेक वर्षों के गंभीर चिंतन – मनन का परिणाम हैं।
उपनिषदों(upanishad) से संबंधित महत्वपूर्ण बातें-
उपनिषद(upanishad) हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण श्रुति ग्रंथ हैं।
इनमें परमेश्वर, परमात्मा – ब्रह्मा तथा आत्मा के स्वभाव और संबंध का दार्शनिक तथा ज्ञानपूर्वक वर्णन काया गया है।
ब्रह्मा, जीव तथा जगत् का ज्ञान प्राप्त करना ही उपनिषदों (upanishad)की मूल शिक्षा है।
उपनिषद(upanishad) समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदांत हों या फिर सांख्य या जैन – बौद्ध धर्म ग्रंथ।
उपनिषदों(Upanishads) का दारा शिकोह ने फारसी में अनुवाद करवाया था।
ईश्वर एवं आत्मा के संबंधों की बात उपनिषद में की गई है। परमज्ञान, पराविद्या, सर्वोच्च ज्ञान (इस लोक से बाहर की बात ) भी की गई है।
उपनिषद(upanishad) भारतीय दर्शन का मूल स्रोत हैं।
उपनिषद(upanishad) की रचना 1000ई. पू. – 300 ई.पू. के लगभग हुई।
शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है , उनको प्रमाणित माना गया है।
यह उपनिषद (upanishad) अन्य उपनिषदों में सबसे अधिक विशाल है, इसके प्रधान प्रवक्ता महर्षि याज्ञवलक्य हैं।
इषोपनिषद-
निष्काम कर्म सिद्धांत का प्रथम प्रतिपादन ।
महर्षि याज्ञवलक्य-
महर्षि याज्ञवलक्य ने विदेह के राजा जनक के दरबार में हुए शास्तार्थ में अनेक ब्रह्मणवादी विद्वानों को पराजित किया था। इनकी दो पत्नियां मैत्रेयी और कात्यायनी थी।