प्राचीन भारतइतिहासवैदिक काल

आरण्यक साहित्य

आरण्यक हिन्दु धर्म के सर्वोच्च धर्म ग्रंथ हैं।

सायण के अनुसार इनका नामकरण का कारण यह है कि  इनकी रचना एकांत (अरण्य-जंगल) में हुई और इनका अध्ययन भी एकांत में किया गया है।अतः इनका नाम आरण्यक पङा।

आरण्यकों कि विशेषताएँ-
  • आरण्यक ब्राह्मण ग्रंथों के अंतिम भाग हैं।
  • इनमें मंत्रों की रहस्यात्मक शक्ति और जादुई प्रभाव का उल्लेख है।
  • आरण्यकों में तपस्या पर बल दिया गया है।
  • इनमें ज्ञान और चिंतन को प्रधानता दी गई है।
  • आरण्यकों में यज्ञ-अनुष्ठान पद्ति, याज्ञिक मंत्र, पदार्थ तथा फल आदि में आध्यात्मिकता का संकेत दिया गया है। अतः हम कह सकते हैं कि वही आरण्यक हैं जो मनुष्य को आध्यात्मिक बोध की ओर झुका कर सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाते हैं।
आरण्यक ग्रंथों का विभाजन- 

प्रत्येक वेद का एक या एक से अधिक आरण्यक होते हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।

  • ग्वेद  के आरण्यक –
    • ऐतरेय आरण्यक
    • कौषीतकि आरण्यक(शांखायन )
  • सामवेद के आरण्यक-
    • तावलकर आरण्यक(जैमिनीयोपनिषद)
    • छान्दोग्य आरण्यक
  • यजुर्वेद के आरण्यक-
    • शुक्ल यजुर्वेद -वृहदारण्यक
    • कृष्ण यजुर्वेद-तैतिरीय आरण्यक, मैत्रायणी आरण्यक
  • थर्ववेद के आरण्यक-
    • कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है, लेकिन गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री  उपलब्ध है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!