सिक्खों की पराजय के कारण
सिक्खों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
सिक्खों की पराजय के कारण (sikkhon ki parajay ke karan) – रणजीत सिंह की मृत्यु के दस वर्षों के अंदर ही शक्तिशाली और विशाल सिक्ख साम्राज्य का अंत हो गया।

- रणजीत सिंह का जीवन परिचय
- रणजीत सिंह और अंग्रेजों के संबंध
- रणजीत सिंह एक विजेता,राजनीतिज्ञ, साम्राज्य निर्माता एवं प्रशासक के रूप में
- रणजीत सिंह और पंजाब(1792-1839ई.)
- महाराजा रणजीतसिंह का शासन तंत्र कैसा था
- महाराजा रणजीतसिंह का राज्य विस्तार
सिक्खों की पराजय और अंग्रेजों की विजय के निम्नलिखित कारण थे-
अयोग्य उत्तराधिकारी
रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी अयोग्य और अत्यन्त साधारण स्तर के थे, जो पंजाब के लङाकू और शक्तिशाली सिक्ख सरदारों पर नियंत्रण रखने में असमर्थ रहे।
पंजाब में फूट
रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब फूट, वैमन्सय, षङयंत्र और गृह कलह का शिकार बन गया। गद्दी के लिए षङयंत्रण और संघर्ष होने लगे तथा कई उत्तराधिकारियों की हत्या कर दी गयी। पंजाब में कोई सर्वमान्य नेता नहीं रहा।
- पंजाब का उत्थान
- पंजाब का उत्थान एवं विलय
- आधुनिक पंजाब का इतिहास
- पंजाब पर अंग्रेजों की ललचाई दृष्टि के कारण
सेना का हस्तक्षेप
सेना के उच्च अधिकारी शासन प्रबंध में हस्तक्षेप करने लगे और सत्ता पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए षङयंत्रों का सहारा लेने लगे।
दयनीय आर्थिक दशा
रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिक्ख राज्य की राजनीतिक व आर्थिक दशा शीघ्रता से बिगङ गयी, जिसका कुप्रभाव सैनिक शक्ति पर भी पङा।
अंग्रेजी सेना
अंग्रेजों की सेना और तोपों की संख्या सिक्खों की अपेक्षा कहीं अधिक थी तथा उनकी सेना अधिक अनुशासित और संगठित भी थी।
सिक्ख सेनापतियों का विश्वासघात
युद्ध के पहले और युद्ध के दौरान अनेक सिक्ख सेनापतियों ने अपने राज्य के विरुद्ध विश्वासघात किया और सिक्खों की सैनिक तैयारियों और व्यूह रचना के समाचार वे अंग्रेजों को देते रहे।
अंग्रेजी राज्य की सम्पन्नता
1845 ई. तक भारत में अंग्रेजी राज्य अत्यंत शक्तिशाली और साधन संपन्न हो चुका था जिसका सामना अपेक्षाकृत बहुत छोटा सिक्ख राज्य नहीं कर सकता था।
अन्य रियासतों की तटस्थ नीति
पंजाब की अन्य सिक्ख रियासतें तथा गैर सिक्ख जातियाँ युद्ध में तटस्थ रहीं या उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया।
सिक्खों की आंतरिक कमजोरी
सिक्खों का राज्य विस्तार बहुत तेजी से हुआ था और आंतरिक दृष्टि से अभी तक कमजोर ही था। साधारण जनता का समर्थन भी था और आंतरिक दृष्टि से अभी तक कमजोर ही था। साधारण जनता का समर्थन भी सिक्ख प्राप्त नहीं कर सके थे।
निष्कर्ष
इस प्रकार 1849 तक पंजाब के पतन के बाद संपूर्ण भारत अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। अब आसाम से लेकर सुलेमान पर्वत तक और हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक, संपूर्ण भारत में अँग्रेजों का झंडा फहराने लगा। पश्चिम में ब्रिटिश साम्राज्य की सीमायें अफगानिस्तान को छूने लगी और पूर्व में बर्मा से मिलने लगी।
1757 से साम्राज्य विस्तार के लिए किया गया अभियान 1849 में पंजाब की विजय से सफलतापूर्वक समाप्त हो गया। सिक्खों का शौर्य और उनका साहस भी भारत को गुलामी की बेङियों में बंधने से न रोक सका।
