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रणजीत सिंह का जीवन परिचय

रणजीत सिंह का जीवन परिचय

रणजीत सिंह का जीवन परिचय –

रणजीत सिंह का जीवन परिचय (ranjit singh ka jivan parichay) – रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 ई. को सुकरचकिया मिसल के नेता महासिंह के यहाँ हुआ था। उस समय पंजाब में जो बारह मिसलें थी, उनमें सुकरचकिया मिसल का प्रभाव क्षेत्र काफी कम था।

रणजीत सिंह

रणजीत सिंह अपने पिता महासिंह की इकलौती संतान था, अतः लाङ प्यार के कारण उसकी बौद्धिक शिक्षा की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया गया और वह अनपढ ही रह गयी। परंतु घुङसवारी, अस्त्र-शस्त्र संचालन और युद्धकला में वह पारंगत हो गया। 1792 ई. में मानसिंह का आकस्मिक निधन हो गया और बारह वर्ष की अल्पायु में ही रणजीतसिंह सुकरचकिया मिसल का सरदार बन गया।

थोङे वर्षों तक उसकी माता राजकौर ने उसकी संरक्षिका के रूप में शासन किया। रणजीतसिंह की सास-सदाकौर कन्हैया मिसल की मुखिया थी। वह एक महत्वाकांक्षी महिला थी। उसने भी प्रारंभिक दिनों में रणजीतसिंह की सरदारी बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया था। उसके सुझाव पर सुकरचकिया तथा कन्हैया मिसलों की सेनाओं को संयुक्त कर रामगढिया मिसल पर आक्रमण किया गया।

यह अभियान असफल रहा, परंतु इससे रणजीतसिंह के ह्रदय में विजय की लालसा जाग उठी और 17 वर्ष की आयु में वह अपनी माता तथा सास की संरक्षकता से मुक्त हो गया। उसने अहलूवालिया मिसल के फतहसिंह से मैत्री संबंध स्थापित किये और फिर अपनी सत्ता के विस्तार में जुट गया। एन.के.सिन्हा का मत है कि रणजीतसिंह का उत्कर्ष राजनीतिक मैत्री तथा विवाह संबंधों की सहायता से हुआ था। उनका कथन काफी सही है।

1793 ई. में जमानशाह अफगानिस्तान का शासक बना। उसने 1795,1796 और 1798 ई. में पंजाब तथा आसपास के क्षेत्रों में आक्रमण किये। उसका विचार भारत में अफगान राज्य का विस्तार करना था। 1798 ई. के अभियान में उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसी समय अफगानिस्तान में विद्रोह उठ खङा हुआ और उसे तत्काल वापस लौटना पङा।

वापसी में उसकी 12 तोपें झेलम नदी के दलदल में फँस गयी। परंतु जमानशाह के पास इतना समय नहीं था कि वह तोपों को निकालने के लिए ठहरता। इस अवसर पर रणजीतसिंह ने तोपों को निकलवाकर उसके पास पहुँचाने का वादा किया और अपने वायदे को पूरा भी किया। जमानशाह ने प्रसन्न होकर रणजीतसिंह को राजा की उपाधि तथा लाहौर की सूबेदारी प्रदान की।

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