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पंजाब का उत्थान

पंजाब का उत्थान

पंजाब का उत्थान –

पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता और सिक्खों का उत्थान

मुगल शासकों के अत्याचारों का सामना करने, सिक्खों को एकता के सूत्र में बाँधने तथा उन्हें सैनिक शक्ति के रूप में संगठित करने का कार्य उनके दसवें तथा अंतिम गुरु गोविन्दसिंह ने किया। उन्होंने खालसा की स्थापना की, जिसका गठन प्रजातांत्रिक पद्धति पर किया गया था। अब गुरु का पद समाप्त कर दिया गया और ग्रंथ साहब (सिक्ख धर्म का पवित्र ग्रंथ) सिक्ख संप्रदाय के मार्गदर्शक माने जाने लगे।

पंजाब का उत्थान

औरंगजेब की मृत्यु के बाद सिक्खों को पंजाब के मुगल सूबेदारों और बाद में अफगानिस्तान के शासकों से जबरदस्त संघर्ष करना पङा।

18 वीं सदी के मध्य में मुगलों की केन्द्रीय सत्ता काफी कमजोर हो चुकी थी और वह पंजाब के लोगों के जान-माल की हिफाज करने में सर्वथा असमर्थ थी। इस समय पंजाब में चारों ओर अव्यवस्था फैली हुई थी। नादिरशाह के आक्रमण से उत्पन्न अव्यवस्था का अंत भी न हो पाया था कि अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण शुरू हो गये।

धीरे-धीरे पंजाब, सरहिन्द, पेशावर, मुल्तान, काश्मीर और सिन्ध के प्रांत पर अफगान विजेताओं ने अपना अधिकार जमा लिया। परंतु अफागनों का यह अधिकार स्थायी न रह सका। अफगान शासकों की निर्बलता के कारण यहाँ अस्थिरता उत्पन्न हो गयी। इन परिस्थितियों ने सिक्खों को अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित करने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया।

नादिरशाह के आक्रमण के बाद सिक्खों में अपने जान-माल की सुरक्षा स्वयं करने का विचार उत्पन्न हुआ। 1745 ई. में उन्होंने अपने आपको 100-100 व्यक्तियों के छोटे-छोटे दलों में संगठित कर लिया। प्रत्येक दल का एक नेता होता था और दल के सभी सदस्य नेता के आदेश का पालन करते थे। विभिन्न दल समानता तथा बंधुत्व की भावना के आधार पर मिल जुलकर कार्य करते थे। 1748 ई. में सभी दलों ने मिलकर दल खालसा का संगठन किया।

दल खालसा में सम्मिलित सभी दलों को पुनः 11 जत्थों में विभाजित किया गया, जो बाद में मिसलों के नाम से विख्यात हुए। दल खालसा में एकता कायम रखने की दृष्टि से एक समिति का गठन किया गया, जिसमें सभी मिसलों के नेताओं को सम्मिलित किया गया। यह समिति का गठन किया गया, जिसमें सभी मिसलों के नेताओं को सम्मिलित किया गया।

यह समिति दल खालसा के कार्यों का संचालन करती थी। दल खालसा ने अपने लोगों को विदेशी आक्रांताओं की लूट खसोट तथा मुगल अधिकारियों के अत्याचारों से सुरक्षा देने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप पंजाब का किसान वर्ग तेजी के साथ सिक्ख संप्रदाय में सम्मिलित होता गया।

दल खालसा ने लोगों के जान-माल की सुरक्षा का दायित्व अपने ऊपर ले लिया था। इसके लिए नियमित आय की आवश्यकता हुई और परिणामस्वरूप राखी प्रथा शुरू की गयी। इस प्रथा के अन्तर्गत जिस गाँव की सुरक्षा का दायित्व दल खालसा अपने ऊपर लेता था, उस गाँव के लोगों को अपनी आय का 1/5 भाग दल खालसा को देना पङता था। इसे जमादारी प्रथा भी कहा जाता था।

इस प्रथा की शुरूआत के साथ ही सिक्ख मिसलों के नेताओं के राजनीतिक अधिकार भी आरंभ किये गये। धीरे-धीरे संपूर्ण पंजाब के भिन्न-भिन्न भागों में अपने – अपने राज्य स्थापित कर लिये। धीरे-धीरे संपूर्ण पंजाब में 12 छोटे छोटे सिक्ख राज्य (मिसलें) स्थापित हो गये।

इस समय सिक्खों के सामने दो महत्त्वपूर्ण समस्याएँ थी। वे अफगान आक्रमण से पंजाब को सुरक्षित रखना चाहते थे और पंजाब में मुगल सत्ता की पुनर्स्थापना भी उन्हें पसंद न थी। पंजाब के स्थानीय मुगल अधिकारी भी मौजूदा स्थिति का लाभ उठाकर अपने लिए स्वतंत्र राज्यों की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे।

इस प्रकार की स्थिति में सिक्खों को जो सफलता मिली, उसका एक कारण उनका दृढसंकल्प तथा संकट के समय एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करना था। दूसरा कारण उनकी गतिशील घुङसवार सेना थी।

एक अन्य कारण सिक्खों द्वारा छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग था और अंतिम कारण दल खालसा के प्रति निष्ठा की भावना तथा अफगानों एवं मुगलों से प्रतिशोध लेने की इच्छा थी। उनकी मिसल व्यवस्था ने भी उनको एक लचीली संघीय व्यवस्था के अन्तर्गत समान धर्म और समान राजनीतिक आवश्यकता से प्रोत्साहित कर एकता के सूत्र में बाँधने का काम किया।

परंतु समय के साथ-साथ सिक्क नेताओं में आपसी झगङे भी उठ खङे हुए और वे अब आपस में भी लङने लगे। परिणामस्वरूप वे एक शक्तिशाली संघ की स्थापना न कर सके और आगे चलकर रणजीतसिंह को अपनी शक्ति बढाने का अवसर मिल गया।

रणजीतसिंह और पंजाब

काबुल के शासक जमनशाह (अब्दाली का पुत्र) ने रणजीत सिंह को उसकी महत्त्वपूर्ण सैन्य सेवाओं के लिए 1798 में राजा की उपाधि प्रदान की और लाहौर की सूबेदारी सौंपी।

रणजीत सिंह का प्रारंभिक जीवन – रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 ई. को हुआ। उनके पिता महासिंह सिक्खों की सुकरचकिया मिसल के नेता थे। इकलौती संतान और लाङ-प्यार में पलने के कारण रणजीत सिंह की शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन घुङ-सवारी, युद्ध कला और हथियार चलाने में वह प्रवीण हो गया।

1799 से 1805 के बीच रणजीत सिंह ने भंगी मिसल के अधिकार से लाहौर और अमृतसर को छीन कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया…अधिक जानकारी

रणजीतसिंह एक विजेता के रूप में

जब रणजीत सिंह केवल 12 वर्ष का था, तो उसके पिता का देहान्त हो गया। उसकी माता ने रणजीत सिंह को गद्दी पर बैठा दिया और संरक्षिका के रूप में स्वयं ने शासन की बागडोर अपने हातों में ले ली। 16 वर्ष की आयु में उसका विवाह मेहताबकौर नामक कन्या से हुआ। 17 वर्ष की आयु में उसने स्वतंत्रतापूर्वक शासन करना शुरू कर दिया।

रणजीत सिंह एक बहुत महत्वाकांक्षी शासक था। वह विजयें प्राप्त करके अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए बहुत इच्छुक था। उसकी सैनिक शक्ति बहुत सीमित थी और उसके छोटे से राज्य के साधन भी बहुत कम थे, किन्तु इन सब कमियों की चिन्ता न करते हुए उसने साहस, पराक्रम और कूटनीतिज्ञता के बल पर लगभग 19 वर्ष की आयु में अपना विजय अभियान प्रारंभ कर दिया।

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