इतिहासराजस्थान का इतिहास

क्षेत्रसिंह(1364-82ई.)का इतिहास

क्षेत्रसिंह(1364-82ई.)का इतिहास

क्षेत्रसिंह – राणा हम्मीर की मृत्यु के बाद उसका बङा पुत्र क्षेत्रसिंह मेवाङ का राणा बना। उसने 1382 ई. तक शासन किया। उसके समय में दिल्ली के सिंहासन पर फीरोजशाह तुगलक (1351-88ई.) आसीन था। वह न तो एक पराक्रमी सैनिक था और न ही सुयोग्य सेनानायक।

उसने मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो जाने वाले क्षेत्रों को पुनः जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वास्तव में यह साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा रखने वाला सुल्तान नहीं था। परिणाम यह निकला कि तुगलक सल्तनत की पतनोन्मुख स्थिति का लाभ उठाकर ईडर, सिरोही, डूँगरपुर, खींचीवाङा, हाङौती और मेरवाङा के शासक भी अपने-अपने राज्यों की सीमाओं को बढाने में लग गये।

क्षेत्रसिंह

राणा क्षेत्रसिंह को अपने इन्हीं पङौसी राजपूत शासकों से अधिक संघर्ष करना पङा। शिलालेखों से पता चलता है कि उसने ईडर के राजा रणमल को पराजित किया। इसी प्रकार, उसने मालवा के स्वतंत्र राज्य के संस्थापक अमीशाह (अमीदशाह दाउद) को पराजित किया था। परंतु उस समय में अमीशाह एक सामान्य चुँगी अधिकारी मात्र था।

फिर भी डॉ.गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इससे भविष्य में होने वाले मालवा-मेवाङ के संघर्ष का सूत्रपात हो गया। क्षेत्रसिंह ने बागङ क्षेत्र को भी अपने अधीन किया। बून्दी पर क्षेत्रसिंह के अधिकार के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं। परंतु यह सत्य है कि इस अभियान में क्षेत्रसिंह ने मेवाङ की शक्ति को सुदृढ एवं संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : क्षेत्रसिंह

Related Articles

error: Content is protected !!