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पंजदेह का संकट क्या था

पंजदेह (अब तुर्कमेनिस्तान का सेरहेताबत) भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित एक गाँव तथा जिला है। यह मर्व नगर से 100 मील साँचा:मील की दूरी पर दक्षिण में स्थित है। इतिहास में पंजदेह अपने सामरिक महत्त्व के कारण काफी प्रसिद्ध था।

लार्ड डफरिन के काल में घटित होने वाली पंजदेह की घटना के कारण रूस तथा इंग्लैण्ड पुनः एक बार युद्ध के समीप आ पहुँचे थे। बर्लिन कांग्रेस (1878 ई.) में रूस की कूटनीतिक पराजय हो गयी थी।तथा तुर्की और भूमध्यसागर में रूसी हितों को बङी हानि पहुँची।

अतः रूस ने अब अपना विस्तार मध्य एशिया की ओर करना आरंभ कर दिया । लार्ड रिपन के काल में रूस ने मर्व पर अधिकार कर लिया जो अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित था। तुर्किस्तान में स्थित रूसी सेनापति क्षेत्रीय विजय की लालसा से अभिभूत थे।

उनमें से एक ने घोषणा की कि, तुर्किस्तान में हमारी स्थिति अत्यंत भीषण है तथा अंग्रेजों का संदेह निराधार नहीं है। रूस द्वारा 15 हजार सेना हिन्दुकुश के पार भेज देने से, भारत विद्रोह के लिए उठ खङा होगा। भारतीय सेना व्यवस्था स्थापित करने में इतनी व्यस्त हो जायेगी कि उत्तर-पश्चिमी सीमा के द्वार तुरंत खुल जायेंगे।

यदि हम अपने इस अभियान में सफल हो जाते हैं तो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य ध्वस्त हो जायेगा तथा इंग्लैण्ड पर इसका कितना दुष्प्रभाव पङेगा, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। अंग्रेज स्वयं इस बात को जानते हैं कि सीमांत क्षेत्र से खदेङ दिये जाने से इंग्लैण्ड में सामाजिक क्रांति हो जायेगी।

दूसरी ओर रूसी समाचार पत्र भी रूस द्वारा मर्व पर अधिकार करने से संतुष्ट नहीं थे। वे चाहते थे कि बीच में पङने वाले पंजदेह के क्षेत्र पर अधिकार किया जाये तथा आगे बढकर हेरात पर अधिकार करके दक्षि्ण – पूर्व की खिङकी तक पहुँच जाय। यहाँ से वे भारतीय सागर तक पहुँच सकते हैं और अपना ऐतिहासिक कार्य पूर्ण कर सकते हैं।

लार्ड रिपन के काल में रूस निरंतर मध्य एशिया की ओर बढ रहा था, जिससे इंग्लैण्ड में उत्तेजना बढने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो रूस और इंग्लैण्ड के मध्य गंभीर संघर्ष हो जायेगा। किन्तु यह संघर्ष किसी तरह टल गया।

रूस ने उत्तर-पश्चिमी अफगानिस्तान से अपनी सीमाएँ रेखांकित करने के लिए एक संयुक्त आयोग का प्रस्ताव किया। इस पर रिपन ने इस कार्य के लिए एक भारतीय अधिकारी सर पीटर लम्सडेन को ब्रिटिश शिष्टमंडल का नेतृत्व करने की घोषणा की और अफगानिस्तान के अमीर से भी अपना एक अधिकारी भेजने का निमंत्रण भेजा।

रिपन ने यह सब इस आशा से किया था कि रूस सचमुच सहयोग करने का इच्छुक है। किन्तु रूस वास्तव में इस मामले में देरी करना चाहता था। उसकी इच्छा तुर्कमान कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करने की थी।इसलिए उसने रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जनरल जेलेन्वाय को सौंपा। किन्तु चूँकि वह बीमार था और उसे इस कार्य पर जाने में कुछ समय लगा। संयुक्त आयोग की पहली बैठक अक्टूबर,1884 ई. में हुई। इसके एक माह बाद ही लार्ड डफरिन भारत में गवर्नर- जनरल बनकर आ गया।

लार्ड डफरिन के भारत पहुँचने के बाद रूस ने यह माँग की कि पंजदेह को अफगानिस्तान के अमीर से स्वतंत्र कराया जाना चाहिए। किन्तु अंग्रेजों ने कहा कि अफगान सीमा का मामला संयुक्त आयोग के जिम्मे छोङ दिया जाना चाहिए।

अप्रैल,1885 तक संयुक्त आयोग के सदस्यों के बीच बातचीत टूटने की स्थिति में पहुँच गई, क्योंकि रूस निरंतर आक्रामक कार्यवाही किये जा रहा था। 30 मार्च को रूसी सैनिकों ने पंजदेह पर आक्रमण करके वहाँ से अफगान सैनिकों को खदेङ दिया।

यह अंग्रेजों के लिए चुनौती थी। इंग्लैण्ड में ग्लेडस्टोन ने इसे गंभीर स्थिति बताते हुए आवश्यक सैनिक तैयारी आरंभ कर दी। परंतु दोनों ही पक्ष युद्ध करने के पक्ष में नहीं थे।

लार्ड डफरिन ने बङी चतुराई से काम लिया और उसने अमीर से यह कहलवा दिया कि पंजदेह अफगानिस्तान का अंग नहीं है।

यद्यपि अंग्रेजों ने अमीर को आश्वासन दिया था कि हर कीमत पर पंजदेह पर अफगानिस्तान के अधिकार का समर्थन किया जायेगा। किन्तु इस घटना से अमीर को यह स्पष्ट हो गया कि अफगानिस्तान के लिए रूस या ब्रिटेन कोई युद्ध का खतरा मोल लेना नहीं चाहते।

संयुक्त आयोग में अफगानिस्तान के उत्तरी सीमा के निर्धारण हेतु वार्ता चलती रही।अंततः इस आयोग ने परोपमिसस पर्वत के उत्तर में स्थिति हरीरूड और आक्सस घाटी के दक्षिण के बीच सीमा रेखा खींच दी।

किन्तु वास्तविक बिन्दु पर समझौता नहीं हो सका।अतः रूस, फारस और अंग्रेजों के बीच बातचीत जारी रही। 17 जुलाई, 1887 को सेण्टपीटर्सबर्ग में एक समझौते पर हस्ताक्षर हो गये। आक्सस के किनारे-2 सीमा का निर्धारण हो जाने से अंग्रेजों ने सोचा कि रूसियों की हेरात की ओर प्रगति रुक गई है।

इससे छः वर्षों तक शांति बनी रही जो बाद में पामीर पर दोनों पक्षों के दावे को लेकर भंग हुई। इसके लिए 1895 ई. में एक दूसरा समझौता हुआ, जिसके द्वारा अफगानिस्तान ने पंजदेह के उत्तर के क्षेत्रों में अपना अधिकार त्याग दिया और बुखारा ने आक्सस के दक्षिण में स्थित दरवाजे पर अपना अधिकार त्याग दिया। इसके बाद इस मामले को लेकर रूस और ब्रिटेन के बीच कोई झगङा नहीं हुआ, किन्तु पारस्परिक विरोध और अधिक उग्र हो गया।

किन्तु अफगानिस्तान संबंधी झगङा समाप्त हो गया। अल्फ्रेड लॉयल ने लिखा है कि हिन्दुकुश और आक्सस के किनारे-2 ब्रिटिश और रूसी अधिकारियों द्वारा गाङे गये सीमा के खंभों ने पहली बार दो एशियायी देशों की लगातार बढती साम्राज्यवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया।

1885 ई. में अफगानिस्तान के अब्दुर रहमान(अमीर) ने भारत की यात्रा की और लार्ड डफरिन ने उससे रावलपिंडी में भेंट की। इस अवसर पर वायसराय ने अमीर का ध्यान हेरात की कमजोर किलेबंदी की ओर आकर्षित किया तथा इसे शक्तिशाली बनाने के लिए इंग्लिश रॉयल इंजीनियर्स को भेजने का प्रस्ताव किया। किन्तु अमीर ने यह कहते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया कि इसे उसके देश की जनता अपनी स्वाधीनता का हनन समझेगी। लार्ड डफरिन ने भी इस पर अधिक जोर नहीं दिया तथा अमीर प्रसन्न होकर लौटा।

यदि ये युद्ध होता तो निश्चित रूप से दो शक्तियों के बीच अफगानिस्तान ही युद्ध का मैदान बन जाता और उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ता, किंतु अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान की बुद्धिमानी से युद्ध टल गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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