आधुनिक भारतइतिहास

1935 ई. के अधिनियम में संघीय योजना

1935 ई. के अधिनियम में संघीय योजना

1935 ई. के अधिनियम में संघीय योजना (Federal Planning in the Act of 1935 AD)

1935 ई. के अधिनियम में एक अखिल भारतीय संघ स्थापित करने की योजना प्रस्तावित की गयी थी। इस प्रस्तावित संघ में 11 गवर्नरों के प्रांत, छः चीफ कमिश्नरों के प्रांत और ऐसी देशी रियासतों को शामिल करना था, जो संघ में सम्मिलित होने की स्वीकृति दे।

11 गवर्नर के प्रांत थे – बंबई, मद्रास, बंगाल, बिहार, उङीसा, असम, उत्तरप्रदेश, सिन्ध, पंजाब, मध्य प्रांत और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत। चीफ कमिश्नर के प्रांत थे – कुर्ग, अजमेर-मेरवाङा, ब्रिटिश बलूचिस्तान, दिल्ली, पंथ पिपलोदा और अंडमान-निकोबार। प्रस्तावित संघ की सदस्यता प्रांतों के लिए अनिवार्य थी जबकि भारतीय देशी रियासतों के लिए ऐच्छिक थी। ऐसी देशी रियासतें जो संघ में शामिल होना चाहती थी उन्हें एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करना होता था, जिसमें देशी रियासत को उन विषयों का विवरण देना होता था, जो संघ को हस्तांतरित किये जाने थे अथवा जिन विषयों के संबंध में संघ को हस्तक्षेप करने का अधिकार होता था।

ऐसे हस्तक्षेप का क्षेत्र अतिरिक्त सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करके बढाया जा सकता था, जिस पर ब्रिटिश ताज से स्वीकृति माँगी जाती थी, लेकिन पुनः इसमें कटौति नहीं हो सकती थी। एक बार सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद कोई भी देशी रियासत संघ से अलग नहीं हो सकती थी।

देशी रियासतों के संघ में सम्मिलित होने की इस प्रक्रिया की सबसे विचित्र बात यह थी कि प्रत्येक देशी रियासत को स्वयं यह तय करना था कि वह संघ में सम्मिलित होगी या नहीं और यदि संघ में सम्मिलित होगी तो संघ को हस्तांतरित किये जाने वाले विषय कौन-कौन से होंगे। इस प्रकार एक रियासत द्वारा संघ को प्रदान किये गये विषय निश्चित रूप से वही नहीं होते थे, जो दूसरे राज्य के होते थे।

इस प्रकार देशी रियासतों में एक सी शासन व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकती थी। इस अधिनियम के पूर्व ब्रिटिश भारत में एकात्मक सरकार थी, जिसमें प्रांतीय सरकारों को केन्द्र से प्राप्त अधिकारों के आधार पर कार्य करना था, वहाँ नई व्यवस्था में केन्द्र और प्रांतों पर ब्रिटिश ताज का पूरा अधिकार हो गया। इसके बाद प्रांत, केन्द्र से अलग कर दिये गये और उन्हें स्वतंत्र ईकाई बना दिया गया, फिर वे पुनः एक संघ में आबद्ध कर दिये गये, चाहे उन्होंने इसे पसंद किया या नहीं ।

अखिल भारतीय संघ के गठन की घोषणा ब्रिटिश सम्राट द्वारा उस समय होनी थी, जब दोनों सदनों के प्रतिनिधियों की ओर से एक निवेदन प्रस्तुत कर सकता था जबकि – 1.) भारत की कुल देशी रियासतों में से कम से कम आधी रिायसतें संघ में शामिल होने की स्वीकृति दे, और 2.) यदि संघ में शामिल होने वाली रियासतें राज्य सभा के लिए कम से कम 52 सदस्य चुनने की अधिकारिणी हो। संघ की स्थापना के लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गयी। देशी रियासतों को इस संबंध में निर्णय लेने के लिए 20 वर्ष का समय दे दिया गया।

इससे स्पष्ट है कि इस अवधि के बाद यह योजना समाप्त हो जायेगी।

दुर्भाग्य की बात है कि देशी रिायसतों के किसी भी शासक ने संघ में सम्मिलित होना उचित नहीं समझा। वस्तुतः वे प्रगतिशील तत्वों वाले भारत से जुङने से डरते थे। प्रभुसत्ता का मामला भी उनकी इच्छा के अनुकूल तय नहीं हुआ, क्योंकि वे अपनी प्रभुसत्ता, संघ को सौंपने को तैयार नहीं थे। इसलिए वे इसमें सम्मिलित नहीं हुए और अखिल भारतीय संघ नहीं बन सका। 11 सितंबर, 1939 ई. को गवर्नर जनरल ने संघ के निर्माण संबंधी धारा को निलंबित किये जाने की घोषणा कर दी। वैसे संघीय योजना में प्रस्तावित रिजर्व बैंक की स्थापना 1935 ई. में हो गयी तथा संघीय न्यायालय ने 1 अक्टूबर, 1937 ई. को अपना कार्य आरंभ कर दिया।

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