इतिहासमध्यकालीन भारत

महमूद गजनवी के आक्रमणों का उद्देश्य क्या था

महमूद गजनवी के आक्रमणों का उद्देश्य – महमूद को इस्लाम का योद्धा माना जाता है और यह कहा जाता है कि उसने भारी धार्मिक कट्टरता का परिचय दिया किंतु यह विचारधारा सही नहीं है। वास्तव में महमूद एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था। उसके आक्रमणों का उद्देश्य धन प्राप्ति था, जिससे मध्य एशिया में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जा सके। प्राचीन काल से ही भारत में मंदिर हिंदुओं के सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे। मूर्तियों के साथ-साथ इन्हीं मंदिरों में सोना, चाँदी, हीरा-जवाहरात और खजाना आदि रखा जाता था। महमूद ने इन मंदिरों का धन संबंधी महत्व अच्छी तरह समझ लिया था। यह सच है कि मंदिरों के धन ने ही उसकी वित्तीय व्यवस्था को सुरक्षित किया और यही धन सेना को सुगठित और शक्तिशाली बनाने में लाभदायक सिद्ध हुआ। प्रोफेसर हबीब के मतानुसार यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यूरोप के कैथोलिक चर्च के समान हिंदू मंदिर भी कभी-कभी किसी शक्तिशाली और अत्याचारी को कोई अपवित्र कार्य करने के लिये अवश्य आकर्षित करते थे। किंतु महमूद के आक्रमण को धर्मयुद्ध कहना एक बुनियादी भूल होगी। बल्कि यह कहना कठिन होगा कि उसने खजाना लूटने के लिये भारी हमले किए। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि शांति के समय मंदिरों पर किसी प्रकार का आक्रमण न हुआ। केवल लङाई के समय अपने मुस्लिम भाइयों की सहानुभूति और सहायता करने के लिए महमूद ने मंदिरों को तहस-नहस किया तथा धन लूटकर ले गया। प्रोफेसर हबीब तथा निजामी ने पुष्ट प्रमाणों से यह सिद्ध किया है, कि इस्लामी कानून में भी ऐसा कोी सिद्धांत नहीं है, जो विध्वंस के कार्य को उचित समझे या उसे बढावा ही दे।

महमूद गजनवी के आक्रमणों का उद्देश्य क्या था

इस प्रकार महमूद के भारतीय हमले धन प्राप्त करने के लिये एक साधनमात्र थे, जिनका उद्देश्य था मध्य एशिया में तुर्की-फारसी साम्राज्य की स्थापना। यह सिद्ध हो चुका है कि महमूद ने भारत में कोई स्थायी राज्य बनाने का लक्ष्य नहीं रखा, क्योंकि वह लगातार गजनी लौटता रहा। उसने ध्यानपूर्वक विजयी इलाकों का बंदोबस्त कभी नहीं किया। साथ ही उसने जीते हुए इलाकों को अपने राज्य में नहीं मिलाया। पंजाब तक का संपन्न राज्य उसने अपने राज्य में देर से (सन् 1021-1022में) मिलाया। मध्य एशिया का विशाल साम्राज्य भारतीय धन से संगठित हो सकता था। इस भांति भारत पर किए गए महमूद के आक्रमण आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं।

सन् 1000 से पहले ही भारत पर अनेक आक्रमण किए जा चुके थे, जैसे यूनानियों, कुषाणों, शकों, हूणों, अरबों आदि के आक्रमण। कालांतर में उनके अवशेषों को भारतीय संस्कृति और सामाजिक संगठनों ने अपने में खपा लिया। किंतु अनेक कारणों से महमूद के आक्रमण अत्यंत महत्त्वपूर्ण थे। इसका प्रधान कारण यह है कि इन्हीं के द्वारा मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिये मार्ग प्रशस्त हुआ। पंजाब एवं मुल्तान विजय से भारतीय राजनीतिक स्थिति में बङा परिवर्तन हुआ। अब इन क्षेत्रों पर तुर्कों का स्थायी अधिकार था। पंजाब के सीमांत प्रदेशों की महत्त्व प्रतिष्ठा भारत के इतिहास पर अधिक थी। इन आक्रमणों से भावी विजेताओं, विशेषकर मुहम्मद गोरी का कार्य सुगम हो गया।

इस्लाम धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले तुर्क थे। आगे चलकर यह धर्म भारतीय राजनीति और समाज के लिये प्रभावशाली सिद्ध हुआ। महमूद के आक्रमण के समय एक बहुत बङा विद्वान अलबरूनी भारत आया, जिसकी पुस्तक किताबुलहिंद तत्कालीन इतिहास को जानने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसमें भारतीय गणित, इतिहास, भूगोल, खगोल, दर्शन आदि की समीक्षा की गई है। धीरे-धीरे लाहौर फारसी संस्कृति का केंद्र बन गया। पंजाब प्रांत से अनेक धर्मप्रचारक, व्यापारी, विद्यार्थी भारत में फैलने लगे। भारत में तुर्क-फारसी प्रशासनिक संस्थाओं का गठन हुआ। महमूद और उसके उत्तराधिकारी मसूद ने हिंदुओं को बङी संख्या में रोजगार दिया। मसूद की आधी सेना में हिंदू ही थे। इनमें सेवंद राय और तिलक के नाम प्रमुख हैं जो उच्च पदों पर थे। भारत से वह अनेक कारीगर ले गया जिन्होंने अपनी कला कृतियों द्वारा महमूद के नाम को तत्कालीन मुस्लिम जगत में प्रतिष्ठित कर दिया और मध्य एशिया को भारत की सांस्कृतिक देन से लाभान्वित किया।

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