1833 का चार्टर एक्ट का इतिहास क्या था
1833 के चार्टर एक्ट पर, इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति,उदारवादी नीतियों का क्रियान्वयन तथा लेसेज फेयर के सिद्धांत की छाप थी।
नियंत्रण बोर्ड के सचिव मेकाले तथा बेन्थम के शिष्य जेम्स मिल का प्रभाव 1833 के चार्टर एक्ट पर स्पष्ट रूप से प्रतिध्वनित होता है।
इस एक्ट ने कंपनी को अगले 20 वर्षों के लिए नया जीवन दिया। तथा उसे एक ट्रस्टी के रूप में प्रतिष्ठित किया।
कंपनी के वाणिज्यिक अधिकार समाप्त कर दिये गये, तथा उसे भविष्य में केवल राजनैतिक कार्य ही करने थे।
इस अधिनियम के द्वारा भारतीय प्रशासन का केन्द्रीयकरण कर दिया गया।बंगाल का गवर्नर अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
इस अधिनियम ने कंपनी के डायरेक्टरों के संरक्षण को कम किया।
परिषद गवर्नर जनरल को कंपनी के सैनिक तथा असैनिक कार्य का नियंत्रण निरीक्षण तथा निर्देशन सौंपा गया।
इस अधिनियम द्वारा भारत में दासता को अवैध घोषित किया गया।
सभी कर परिषद गवर्नर- जनरल की आज्ञा से ही लगाये जा सकते थे। इस प्रकार प्रशासन तथा वित्त की सारी शक्ति गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् में केन्द्रित हो गयी।
इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने के लिए गवर्नर-जनरल की परिषद में एक कानूनी सदस्य चौथे सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया।
सर्वप्रथम मेकाले को विधि सदस्य के रूप में गवर्नर जनरल की परिषद में सम्मिलित किया गया।
केवल परिषद गवर्नर-जनरल को ही भारत के लिए कानून बनाने के अधिकार प्राप्त थे।
भारतीय कानूनों को संचित लिपिबद्ध तथा सुधारने के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
इस अधिनियम के द्वारा कंपनी के चीनी व्यापार तथा चाय संबंधी व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
गवर्नर-जनरल को ही विधि आयुक्त नियुक्त करने का अधिकार प्रदान किया गया।
इस अधिनियम के द्वारा नियुक्तियों के लिये योग्यता संबंधी मापदंड को अपना कर, भेदभाव समाप्त कर दिया गया।
इस अधिनियम द्वारा बंगाल का गवर्नर-जनरल अब समूचे भारत का गवर्नर जनरल बन गया।
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