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अधीनस्थ अलगाव की नीति से क्या तात्पर्य है?

अधीनस्थ अलगाव की नीति (subordinate isolation policy)-

लार्ड हेस्टिंग्ज की अधीनस्थ अलगाव की नीति (adheenasth alagaav kee neeti ) राज्यों को अधीन करके उन्हें अन्य राज्यों से अलग कर देने की नीति थी, क्योंकि देशी राज्यों में पारस्परिक संबंध स्थापित हो जाने से कंपनी को खतरा था।

सुरक्षित घेरे की नीति (1757-1813) surakshit ghere kee neeti

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अहस्तक्षेप तथा सीमित उत्तरदायित्व की नीति को अपनाया। पङौसी राज्यों की सीमाओं की सुरक्षा का उत्तरदायित्व कंपनी ने अपने ऊपर ले लिया, किन्तु राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। दूसरी ओर कंपनी ने यह भी प्रयास किया कि भारतीय राज्यों को एक-दूसरे के साथ संबंध स्थापित करने से रोका जाय। प्लासी के युद्ध की विजय के फलस्वरूप कंपनी निश्चित रूप से एक भारतीय शक्ति बन गयी। किन्तु अभी तक न तो उसमें महत्वाकांक्षा जागृत हुई थी और न राज्यों पर सर्वोच्चता स्थापित करने की शक्ति ही थी…अधिक जानकारी

ब्रिटिश सर्वोच्चता (British supremacy)-

1947 तक भारत कुछ राजनीतिक कारणों से दो भागों में बंटा हुआ था। एक भाग को ब्रिटिश भारत कहा जाता था तथा दूसरे भाग को भारतीय भारत अथवा भारतीय देशी राज्य कहा जाता था।

ब्रिटिश भारत पर अंग्रेजों का शासन था तथा दूसरा भाग देशी राजाओं के अधीन था। ये नरेश निरंकुश शासकों की भाँति अपने-अपने राज्यों पर शासन करते रहे। ब्रिटिश भारत एक राजनीतिक इकाई था, परंतु देशी रियासतें एक राजनीतिक इकाई नहीं थी। ये देशी रियासतें एक समान नहीं थी तथा किसी एक क्षेत्र में न होकर देश के विभिन्न भागों में बिखरी हुई थी।

देशी राज्यों के प्रति कंपनी की नीति – ईस्ट इंडिया कंपनी ने देशी राज्यों के प्रति जो नीति अपनाई, उसे दो भागों में बाँटा गया है – 1.) 1757 से 1813 ई. तक एवं 2.) 1813 से 1857 ई. तक ।

1757 से 1813 ई. तक की अवधि में कंपनी ने हस्तक्षेप न करने और कम से कम जिम्मेदारी निभाने की नीति अपनाई तथा दूसरी अवधि में कंपनी ने अधीनस्थ अलगाव की नीति अपनाई…अधिक जानकारी

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