भागवत अथवा पांचरात्र धर्म में वासुदेव विष्णु (कृष्ण) की उपासना के साथ ही साथ तीन अन्य व्यक्तियों की भी उपासना की जाती थी। इनके नाम इस प्रकार हैं –
- संकर्षण (बलराम)- ये वसुदेव के रोहिणी से उत्पन्न पुत्र थे।
- प्रद्युम्न – ये कृष्ण के रुक्मिणी से उत्पन्न पुत्र थे।
- अनिरुद् – ये प्रद्युम्न के पुत्र थे।
उपर्युक्त चारों को चतुर्व्यूह संज्ञा दी गयी है। वासुदेव के समान इनकी भी मूर्तियाँ बनाकर भागवत मतानुयायी पूजा किया करते थे। महाभारत के नारायणीय खंड में इनका विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। वायुपुराण में इन चारों के साथ साम्ब (कृष्ण के जाम्बवती से उत्पन्न पुत्र) को मिलाकर इन्हें पंचवीर कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है, कि चतुर्व्यूह की कल्पना ईसा पूर्व दूसरी शती के पहले की है।
इसका प्राचीनतम उल्लेख ब्रह्मसूत्रों में मिलता है। मथुरा के समीप मोरा से प्राप्त प्रथम शती के एक लेख से पता चलता है, कि तोषा नामक महिला ने वासुदेव के साथ-साथ उक्त चार व्यक्तियों की मूर्तियों को एक मंदिर में स्थापित करवाया था। सभी के पूर्व भागवत् विशेषण का ही प्रयोग मिलता है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में पंचवीरों की प्रतिमायें बनाने के नियम दिये गेय हैं। अर्थशास्त्र में भी संकर्षण के उपासकों का उल्लेख मिलता है।
लगता है, कि कृष्ण के समान अन्य चारों ने भी नये सिद्धांतों का प्रतिपादन किया तथा धर्माचार्य के रूप के प्रतिष्ठित हुए। बाद में उसने देवत्व का आरोपण कर दिया गया। वासुदेव कृष्ण को परमत्त्व मानकर अन्य चारों को उन्हीं का अंश स्वीकार किया गया। संकर्षण, अनिरुद्ध तथा प्रद्युम्न को क्रमशः जीव, अहंकार तथा मन (बुद्धि) का प्रतिरूप माना गया है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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