इतिहासफ्रांस की क्रांतिविश्व का इतिहास

बास्तील का पतन क्या था

बास्तीन का पतन क्या था

14 जुलाई 1789ई. को पेरिस की उत्तेजित भीङ ने बास्तील (बैस्टिल) नाम से प्राचीन किले पर हमला बोल दिया। पेरिस नगर के पूर्वी छोर पर स्थित इस किले का सैनिक दृष्टिकोण से कोई महत्त्व न था, किन्तु जेल के रूप में वह काफी बदनाम हो गया था और राजा की शक्ति तथा अत्याचार का प्रतीक समझा जाता था।

वाल्तेयर और मीराबो जैसे प्रसिद्ध नेता भी इस जेलखाने में बंद किए गये थे। इस किले पर हमला करके क्रांतिकारी लोगों और राजा जैसे प्रसिद्ध नेताओं को भी जेलखाने में बंद किया गया था। इस पर हमला करके क्रांतिकारी लोग राजा को जनता की शक्ति का परिचय दे देना चाहते थे।

कुछ घंटों की घमासान लङाई और रक्तपात के बाद भीङ ने बास्तील पर अधिकार कर लिया। राजा चाहता तो भीङ को दबा सकता था, परंतु दया और डर के कारण वह कोई कदम नहीं उठा पाया। इस घटना का बहुत बङा राजनीतिक महत्त्व है। दूसरी बार जनता ने निरंकुश शासन पर विजय प्राप्त की। अब संविधान सभा अपने को ज्यादा मजबूत महसूस करने लगी और क्रांति पर पेरिस का नियंत्रण हो गया।

14 जुलाई को राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित कर दिया गया और फ्रांस के बोर्बन राजाओं के पुराने सफेद झंडे के स्थान पर लाल, सफेद तथा नीले रंग का एक नया तिरंगा झंडा अपना लिया गया। तीन दिन बाद लुई सोलहवें ने राजाधानी में प्रवेश किया और उसने इन सब परिवर्तनों को स्वीकार कर लिया।

फ्रांस की क्रांति के कारण बताओ

बास्तीन के पतन ने फ्रांस के विभिन्न हिस्सों में क्रांति की लहरें उठने लगी। शहरों में नई तरह की म्युनिसिपल सरकार और सुरक्षा-दल का संगठन होने लगा। देहातों में किसानों ने कानून अपने हाथ में ले लिया और सामंतों के कागजात जला डाले और जहां – तहां मारपीट मच गई। इस तरह यद्यपि कानूनी सामंत-प्रथा पूरी तरह से समाप्त तो नहीं हुई थी, पर व्यवहार में इसे समाप्त कर दिया गया। जुलाई के अंत तक क्रांतिकारियों का विध्वंसकारी कार्य बढता ही गया। कई जगह अन्न और हथियार के भंडार लूट लिये गये अथवा नष्ट कर दिये गये।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Related Articles

error: Content is protected !!