प्राचीन भारतइतिहासगुप्त कालचंद्रगुप्त द्वितीय

चंद्रगुप्त द्वितीय की शासन-व्यवस्था कैसी थी

चंद्रगुप्त द्वितीय एक योग्य एवं कुशल शासक था। गुप्त प्रशासन का निर्मण उसी ने किया था। चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन 40 वर्षों का दीर्घकालीन शासन शांति, सुव्यवस्था एवं समृद्धि का काल रहा। उसे अनेक योग्य तथा अनुभवी मंत्रियों की सेवायें प्राप्त थी।

उसका प्रधान सचिव वीरसेन शाव था। जिसका उल्लेख उदयगिरि गुहाभिलेख में मिलता है। सनकानीक महाराज पूर्वी मालवा प्रदेश का राज्यपाल रहा हुआ था।

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उदयगिरि के लेख में वह अपने आप को चंद्रगुप्त का पादानुध्यात कहता है। आम्रकार्द्दव उसका प्रधान सेनापति था। सांची के लेख में उसके नाम का उल्लेख मिलता है, जहाँ उसे अनेक युद्धों में यश प्राप्त करने वाला कहा गया है। करमदंडा लेख से पता चलता है,कि शिखरस्वामी उसका एक मंत्री था। चंद्रगुप्त द्वितीय का एक पुत्र गोविंदगुप्त तीरभुक्ति प्रदेश का राज्यपाल थआ। बसाढ मुद्रालेख में इस प्रांत का उल्लेख मिलता है। इनके अलावा अन्य निपुण प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारी भी थे। लेखों तथा मुद्राओं में कुछ पदाधिकारियों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • उपरिक-
  • कुमारामात्य-
  • बलाधिकृत-
  • रणभाण्डागाराधिकृत-
  • दंडपाशिक-
  • विनयस्थितिस्थापक-
  • महाप्रतीहार-

चीनी यात्री फाहियान, जो चंद्रगुप्त के समय में भारत आया था, उसके शासन की उच्च शब्दों में प्रशंसा करता है। “वह लिखता है,कि प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी तथा लोग परस्पर सौहार्दपूर्वक रहते थे। उन्हें न तो अपने मकानों की रजिस्ट्री कराना पङती और न ही न्यायालयों में न्याधीशों के सामने जाना पङता था। वे चाहे जहाँ और जिस स्थान पर जा सकते तथा रह सकते थे। राजा बिना दंड के शासन करता था। दंड-विधान अत्यंत मृदु थे तथापि बहुत कम होते थे। मृत्यु-दंड नहीं दिया जाता था। बार-2 विद्रोह के अपराध में दाहिना हाथ काट लिया जाता था।सङकों पर आवागमन पूर्णतया सुरक्षित था। राज्य में बहुत कम कर लगते छे। जो लोग राजकीय भूमि पर खेती करते थे उन्हें अपनी उपज का एक भाग कर के रूप में देना पङता था। चंद्रगुप्त के शासन काल में चतुर्दिक शांति और व्यवस्था व्याप्त थीी। यहाँ तक की फाहियान, जो के एक विदेशी था, को कहीं भी किसी प्रकार की असुरक्षा का सामना नहीं करना पङा। लगता है,कि महाकवि कालिदास ने भी शांति और व्यवस्था की ओर संकेत करते हुये लिखा है- जिस समय वह राजा शासन कर रहा था, उपवनों में मद पीकर सोती हुई सुंदरियों के वस्रों को वायु तक स्पर्श नहीं कर सकती थी, तो फिर उकने आभूषणों को चुराने का साहस कौन कर सकता था?”

चंद्रगुप्त द्वितीय का धर्म-

चंद्रगुप्त एक धर्मनिष्ठ वैष्णव था, जिसने परमभागवत की उपाधि धारण की। मेहरौली लेख के अनुसार उसने विष्णुपद पर्वत पर विष्णुध्वज की स्थापना करवायी थी। परंतु वह अन्य धर्मानुयायियों के प्रति पर्याप्त सहिष्णु था। उसने बिना किसी भेदभाव के अन्य धर्मावलंबियों को प्रशासन के उच्च पदों पर नियुक्त किया तथा दूसरे धर्मों को दानादि दिया। उसका सांधिविग्रहिक सचिव वीरसेन शैव था, जिसने भगवान शिव की पूजा के लिये उदयगिरि पहाङी पर एक गुफा का निर्माण करवाया था। उसका सेनापति आम्रकार्द्दव बौद्ध था।

सांची लेख के अनुसार उसने सांची महाविहार के आर्यसंघ को 25 दीनारें और ईश्वरवासक ग्राम दान में दिया था। यह प्रतिदिन पाँच भिक्षुओं को भोजन कराने एवं रत्नगृह में दीपक जलाने के लिये दिया गया था। इसी प्रकार मथुरा लेख में आर्योदिताचार्य नामक एक शैव का उल्लेख मिलता है, जिसने अपने पुण्यार्जन के लिये दो शिवलिंगों की स्थापना करवायी थी।

विद्या प्रेम-

Reference : https://www.indiaolddays.com

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