इतिहासप्राचीन भारतशाकंभरी का चौहान वंश

चौहान शासक पृथ्वीराज प्रथम का इतिहास

चौहान शासक विग्रहराज तृतीय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी पृथ्वीराज प्रथम अपने पिता के बाद गद्दी पर बैठा। एक लेख में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराजपरमेश्वर कहा गया है, जो उसकी शक्ति का परिचायक है। पृथ्वीराजविजय के अनुसार उसने सात सौ चालुक्यों को पराजित कर मार डाला था, जो ब्राह्मणों को लूटने की नियत से पुष्करतीर्थ में घुस आये थे। यह घटना गुजरात के चालुक्त नरेश कर्ण अथवा उसके उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज के समय की है।

तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिये उसने सोमनाथ मंदिर के मार्ग पर एक अन्नसय स्थापित करवाया था। जैन स्रोतों से पता चलता है, कि रणथंभौर पर उसका अधिकार था,जहाँ उसने जैन मंदिरों पर स्वर्णकलश चढाये थे।

राजशेखर के प्रबंधकोश में हमें उसे तुर्क-सेना का विजेता बताया गया है। इस सेना ने सुल्तान बगुलीशाह के नेतृत्व में उसके राज्य पर आक्रमण किया था। यह बगुलीशाह हजीब तुगतिगीन का सेनानायक था। इस प्रकार पृथ्वीराज प्रथम एक शक्तिशाली और धर्म सहिष्णु राजा था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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