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मुस्लिम अलगाववाद क्या था

मुस्लिम अलगाववाद

मुस्लिम अलगाववाद ( muslim separatism)

मुस्लिम अलगाववाद (muslim alagaavavaad)- आधुनिक भारत के इतिहास में मुस्लिम साम्प्रदायिकता का उदय एवं विकास तथा भारतीय राजनीति में उसकी भूमिका एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है, जिसके अध्ययन के बिना हमारे राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास अधूरा रह जाता है।

अलगाववाद की एक व्यापक परिभाषा यह है कि यह किसी बड़े समूह से सांस्कृतिक, जातीय, आदिवासी, धार्मिक, नस्लीय, सरकारी या लैंगिक अलगाव की स्थिति की माँग है। अतः जो लोग देश के किसी हिस्से को उससे अलग करना चाहते हैं, उन्हें अलगाववादी कहा जाता है, हालाँकि ऐसा जरूरी नहीं है कि वे अलग देश की ही माँग करें।

भारत में अलगाव आम तौर पर एक या एक से अधिक राज्य का भारत से अलग होकर एक अलग देश बनाना संदर्भित करता है।

भारतीय उपमहाद्वीपमें एक विशाल मुस्लिम अल्पसंख्यक जनसंख्या का होना कोई विचित्र बात नहीं है। पश्चिम में भी बहुत से देश अल्पसंख्यकों द्वारा उत्पन्न राजनैतिक समस्याओं से परिचित है। किन्तु भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या का वास्तविक स्वरूप साम्प्रदायिक है। भारत में मुस्लिम साम्प्रदायिकता का उदय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रारंभिक चरण में हुआ था। धीरे-धीरे यह अधिक दृढ और विकसित होती गयी। इसको विकसित एवं जटिल बनाने में एक तीसरी शक्ति ब्रिटिश राज की बङी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की माँग

ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता को अत्यधिक प्रोत्साहित कर हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की प्रगति को अवरुद्ध करने का प्रयास किया। अतः ब्रिटिश शासनकाल के अंतिम तीन दशकों में मुस्लिम साम्प्रदायिकता का अत्यन्त विकसित रूप दिखाई देता है, उसकी अंतिम परिणति द्विराष्ट्र सिद्धांत के जन्म में होती है। इसी द्विराष्ट्रीय सिद्धांत के फलस्वरूप धर्म के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन हुआ।

भारत में साम्प्रदायिकता के उदय के कारण निम्नलिखित कारण थे-

  • मुसलमानों की अधोगति
  • 1857 का विप्लव और मुस्लिम समुदाय
  • अलीगढ आंदोलन
  • उग्र हिन्दू धार्मिक आंदोलन
  • ब्रिटिश नौकरशाही की भूमिका

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