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हूण शासक तोरमाण का इतिहास

स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद हूणों ने गंगा-घाटी पर पुनः आक्रमण किया। इस दूसरे हूण आक्रमण का नेता तोरमाण था। वह एक शक्तिशाली शासक था। मध्य भारत के एरण नामक स्थान से वाराह प्रतिमा पर खुदा हुआ उसका लेख मिला है, जिससे पता चलता है, कि धन्यविष्णु उसके शासन काल के प्रथम वर्ष में उसका सामंत था।

प्रथम हूण आक्रमण किसके काल में हुआ

ऐसा प्रतीत होता है,कि गुप्त शासक बुधगुप्त की मृत्यु (500 ईस्वी) के बाद ही तोरमाण का इस क्षेत्र पर अधिकार हो गया था, क्योंकि स्वयं बुधगुप्त का एरण से ही प्राप्त लेख (गु.सं.165 अर्थात् 484 ईस्वी) इस बात का सूचक है, कि यहाँ उसका सामंत मातृविष्णु शासन करता था। वह धन्यविष्णु का भाई था। एरण से ही गुप्त शासक भानुगुप्त का एक लेख मिलता है, जिसकी तिथि गुप्त संवत्191 अर्थात् 510 ईस्वी है। इसमें उसके मित्र गोपराज का उल्लेख हुआ है, जो उसकी ओर से युद्ध करता हुआ मारा गया। यह युद्ध तोरमाण के विरुद्ध ही हुआ था।

सती प्रथा का प्रथम बार उल्लेख किस अभिलेख में हुआ है

पंजाब के कूरा नामक स्थान से तोरमाण का एक अन्य लेख मिलता है, जिसमें उसे षाहिजऊब्ल कहा गया है। जऊब्ल तुर्की भाषा का शब्द है, जिसका हिन्दी सूपांतर सामंत होता है।

कौशांबी से तोरमाण की दो मुहरें मिली हैं, प्रथम के ऊपर तोरमाण तथा द्वितीय के ऊपर हूणराज उत्कीर्ण मिलता है। इन उपाधियों से पता चलता है, कि उसने कौशांबी तक का प्रदेश जीत लिया था। उसकी ताम्र मुद्रायें पंजाब एवं सतलज-यमुना के दोआब वाले प्रदेश से मिलती हैं।

अभिलेख एवं सिक्कों से पता चलता है, कि वह पंजाब से एरण तक के क्षेत्र का शासक था, तथा उसने महाजाधिराज की उपाधि धारण की थी। जैन ग्रंथ कुवलयमाला से पता चलता है, कि उसकी राजधानी चंद्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर स्थित पवैया में थी। इसमें उसका नाम तोरराय दिया गया है। जिससे तात्पर्य तोरमाण से ही है।

आर्यमंजूश्रीमूलकल्प से पता चलता है, कि तोरमाण ने मगध का प्रदेश विजित कर लिया था। तथा बनारस और उसके आस-पास के भाग में अपना प्रभाव बढा लिया। तोरमाण के नेतृत्व में हूणसत्ता पवैया, साकल (स्यालकोट), एरण, मालवा आदि में सुदृढ रूप से स्थापित हो गया तथा मगध, काशी और कौशांबी उसके प्रत्यक्ष अधिकार में आ गये। मगध के ऊपर उसके अधिकार की पुष्टि हुएनसांग करता है।

हेनसांग के विवरण से पता चलता है, कि मगध नरेश बालादित्य मिहिरकुल के समय हूणों की सत्ता स्वीकार करता था। अतः स्पष्ट है, कि बालादित्य को तोरमाण ने ही पराजित किया था।

इस प्रकार तोरमाण एक महान विजता और शक्तिशाली राजा था, जिसके नेतृत्व में हूणों ने समस्त उत्तरी भारत तथा पूर्वी भारत के एक बङे भाग को जीत लिया। तोरमाण की राजनैतिक उपलब्धियाँ सिकंदर तथा मेनांडर के समान ही थी।

भारत की विजय करने वाला वह पहला ऐसा विदेशी शासक था, जिसने मध्य एशिया से मध्य भारत तक अपना साम्राज्य स्थापित किया था पूर्वी भारत के एक बङे भाग तक अपना प्रभाव जमा लिया।

तोरमाण की मृत्यु 515 ईस्वी में हुई थी। आर्य-मंजूश्रीमूलकल्प से पता चलता है, कि मृत्यु से पूर्व ही तोरमाण ने अपने पुत्र मिहिरकुल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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