प्राचीन भारतइतिहास

नागार्जुनीकोण्ड स्तूप का इतिहास

अमरावती से 95 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में स्थित नागार्जुन पहाङी (कृष्णा नदी के तट पर) पर तीसरी शता.ईस्वी में स्तूपों का निर्माण किया गया था, जिसे नागार्जुनीकोण्ड स्तूप कहा जाता है। यहाँ ईक्ष्वाकुवंशी राजाओं की राजधानी थी, जो सातवाहनों के उत्तराधिकारी थे।

अमरावती का स्तूप कहाँ स्थित है?

नागार्जुनीकोण्ड स्तूप का एक अन्य नाम विजयपुरी है। ईक्ष्वाकु वंशी शासक ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे, किन्तु उनकी रानियों की अनुरक्ति बौद्ध धर्म में थी। इन्हीं की प्रेरणा से यहाँ स्तूपों का निर्माण करवाया गया। ईक्ष्वाकु नरेश मराठी पुत्र वीरपुरुष दत्त के शासनकाल में महास्तूप का निर्माण एवं संवर्धन हुआ। उसकी एक रानी बपिसिरिनिका के एक लेख से महाचैत्य का निर्माण पूरा किये जाने की सूचना मिलती है। महास्तूप के साथ-2 बौद्ध धर्म से संबंधित अन्य स्मारकों एवं मंदिरों का निर्माण भी हुआ। रानियों द्वारा निर्माण कार्य के लिये नवकर्म्मिक नामक अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी।

सर्वप्रथम 1926 ई. में लांगहर्स्ट नामक विद्वान ने यहां के पुरावशेषों को खोज निकाला था। तत्पश्चात् 1927 से 1959 के बीच यहां कई बार उत्खनन कार्य हुए। फलस्वरूप यहां से अनेक स्तूप, चैत्य, विहार, मंदिर आदि प्रकाश में आये हैं।

नागार्जुनीकोण्ड से लांगहर्स्ट को नौ स्तूपों के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए थे, जिनमें से चार पाषाण पटियाओं से जङे गये थे। नागार्जुनीकोण्ड से जो स्तूप मिलते हैं, वे अमरावती के स्तूप से मिलते – जुलते हैं। यहाँ का महास्तूप गोलाकार था। इसका व्यास 106 फुट तथा ऊँचाई लगभग 80 फुट थी। भूतल पर 13 फुट चौङा प्रदक्षिणापथ था, जिसके चारों ओर वेदिका थी। स्तूप के ऊपरी भाग को कालांतर में उत्कीर्ण किया गया है। कुछ दृश्य जातक कथाओं से भी लिये गये हैं।

प्रमुख दृश्यों में बुद्ध के जन्म, महाभिनिष्क्रिमण, संबोधि, धर्मचक्रप्रवर्तन, माया का स्वप्न, मार विजय आदि हैं।नागार्जुनीकोण्ड स्तूप की प्रमुख विशेषता आयकों का निर्माण है।

आयक एक विशेष प्रकार का चबूतरा होता था। स्तूप के आधार को आयताकार रूप में बाहर की ओर चारों दिशाओं में आगे बढाकर बनाया जाता था। नागार्जुनिकोण्ड के आयकों पर अमरावती स्तूप की ही भांति अलंकृत शिलापट्ट का कला-सौन्दर्य दर्शनीय है। तक्षण की ऐसी स्वच्छता, सच्चाई एवं बारीकी, संपुजन की निपुणता, वस्त्राभूषणों का संयम एवं मनोहर रूप आदि अन्यत्र मिलना कठिन है। ये आंध्र शिल्प की चरम परिणति को सूचित करते हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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