इतिहासगहङवाल राजवंशमध्यकालीन भारत

राठौङ शासक चंद्रदेव का इतिहास में योगदान

गहङवाल अथवा राठौङ वंश के शासक चंद्रदेव का इतिहास- प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के बाद उत्तरी भारत में फैली हुयी अव्यवस्था का लाभ उठाकर 1090 ईस्वी में चंद्रदेव नामक व्यक्ति ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। उसके पूर्वजों में महीचंद्र तथा यशोविग्रह के नाम मिलते हैं। इनमें यशोविग्रह इस वंश का प्रथम पुरुष था, जो कलचुरि शासन में कोई अधिकारी था। उसका पुत्र महीचंद्र, चंद्रदेव का पिता था। उसकी उपाधि नृप थी। इस उपाधि से पता चलता है, कि वह एक सामंत शासक था, जो कलचुरियों के अधीन था।

गहङवाल वंश की स्वतंत्रता का जनक चंद्रदेव था। कन्नौज से उसके चार अभिलेख मिलते हैं, जो दानपत्र के रुप में हैं। इनसे पता चलता है, कि उसने वाराणसी, अयोध्या तथा दिल्ली आदि स्थानों पर भी अपना अधिकार कर लिया था। अभिलेखों में उसे परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों से नवाजा गया है।

चंद्रदेव के पुत्र मदनपाल तथा पौत्र गोविन्दचंद्र का बसही लेख मिला है। इस लेख से पता चलता है, कि भोज की मृत्यु हो जाने तथा कर्ण के यशमात्र शेष बच जाने के बाद विपतिग्रस्त पृथ्वी ने चंद्रदेव राजा को अपना रक्षक चुना। इस विवरण से स्पष्ट होता है, कि चंद्रदेव ने कर्ण की मृत्यु (1073 ईस्वी) के बाद ही कन्नौज पर अधिकार किया था। पृथ्वी के विपत्ति में पङने का कारण तुर्क आक्रमण था।

आक्रमणकारी लूटपाट करते हुये आगरा तक आ पहुँचे तथा उन्हें रोकने वाली कोई प्रबल शक्ति दोआब में नहीं रही। इसी आक्रमण से भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी, जिसका लाभ चंद्रदेव को मिला तथा उसने काशी, कन्नौज, कोशल और इंद्रप्रस्थ के ऊपर अधिकार जमा लिया।

चंद्रदेव ने कलचुरि नरेश यशःकर्ण को पराजित कर अंतर्वेदी (गंगा-यमुना दोआब) का प्रदेश जीत लिया था। काशी, कन्नौज,कोशल तथा इंद्रप्रस्थ पर भी अधिकार कर लिया था।

चंद्रदेव ने 1103 ईस्वी तक शासन किया। वह एक शक्तिशाली शासक था, जिसने अनेक राज्यों को जीत कर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया तथा अपने साम्राज्य को शक्ति और सुव्यवस्था प्रदान की।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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