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देसाई लियाकत समझौता (1945)

देसाई लियाकत समझौता

देसाई-लियाकत समझौता सन 1945 में प्रस्तुत किया गया था। महात्मा गाँधी ये मान चुके थे कि जब तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग देश के भविष्य या अंतरिम सरकार के गठन को लेकर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच जाते, तब तक ब्रिटिश शासक देश को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करेंगे।

इसीलिए महात्मा गांधी ने भूलाभाई जीवनजी देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं को संतुष्ट करने और 1942-1945 के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने का एक और प्रयास करने का निर्देश किया।

देसाई लियाकत समझौता

भूलाभाई देसाई, केंद्रीय सभा में कांग्रेस के नेता और लियाकत अली (मुस्लिम लीग के नेता) के मित्र होने के नाते, ने लियाकत अली से मुलाकात कर जनवरी 1945 में केंद्र में अंतरिम सरकार के गठन से सम्बंधित एक प्रस्ताव सौंपा। देसाई की घोषणा के बाद लियाकत अली ने समझौते को प्रकाशित किया, जिसके प्रमुख बिंदु निम्न थे-

  1. दोनों द्वारा केन्द्रीय कार्यपालिका में समान संख्या में लोगों को नामित करना।
  2. अल्पसंख्यकों, विशेषकर अनुसूचित जाति और सिखों का प्रतिनिधितित्व।
  3. सरकार का गठन करना जो कि उस समय प्रचलित भारत शासन अधिनियम, 1935 के ढ़ांचे के अनुसार कार्य करती।

सारांश

कांग्रेस के नेता भूलाभई जीवनजी देसाई तथा लीग के नेता लियाकत अली खान के बीच वार्ता 1942-45 के राजनैतिक गतिरोध के हल के लिये हुई थी। पेशावर में 22 अप्रैल, 1945 को देसाई की घोषणा के बाद लियाकत अली ने समझौते का मुख्य अंश प्रकाशित किया। इस समझौते को कांग्रेस अथवा लीग ने औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया।

References :
1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

Online References
wikipedia : देसाई लियाकत समझौता

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