गुर्जर-प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल द्वितीय तथा प्रतिहार साम्राज्य का पतन
गुर्जर-प्रतिहार शासक महीपाल के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल द्वितीय राजा बना, जिसने 945-48 ईस्वी तक शासन किया। राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय के आक्रमण के फलस्वरूप प्रतिहार साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
महेन्द्रपाल द्वितीय के बाद 960 ईस्वी तक प्रतिहार वंश में चार शासक हुये – देवपाल (948-49 ईस्वी), विनायकपाल द्वितीय (953-54 ईस्वी), महीपाल द्वितीय(955ईस्वी), विजयपाल (960ईस्वी) । इन शासकों के समय में प्रतिहार-साम्राज्य का निरंतर हास होता रहा।
देवपाल के समय में चंदेलों ने कालंजर का दुर्ग प्रतिहारों से छीन लिया। खजुराहों लेख में चंदेल यशोवर्मन् को गुर्जरों के लिये जलती हुई अग्नि के समान कहा गया है। इससे यह सूचित होता है, कि अब चंदेल तथा दूसरे सामंत भी सिर उठाने लगे थे। इन लोगों को नियंत्रित करने के लिये कोई भी प्रतिहार शासक योग्य नहीं था।
विजयपाल के समय तक आते-2 प्रतिहार साम्राज्य कई भागों में बँट गया तथा प्रत्येक भाग में स्वतंत्र राजवंश शासन करने लगे। इनमें कन्नौज के गहङवाल, जेजाक-भुक्ति (बुंदेलखंड) के चंदेल, ग्वालियर के कच्छपघात, शाकंभरी के चाहमान, मालवा के परमार, दक्षिणी राजपूताना के गुहिलोत, मध्य भारत के कलचुरिचेदि तथा गुजरात के चालुक्य प्रमुख हैं।
10 वी. शता. के मध्य में प्रतिहार-साम्राज्य पूर्णतया छिन्न-भिन्न हो गया। अब यह कन्नौज के आस-पास ही सीमित रहा।राज्यपाल, जो विजयपाल का पुत्र था, ने 1018 ईस्वी में कन्नौज पर शासन किया। उसने महमूद गजनवी के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया तथा कन्नौज पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।
राज्यपाल अपना शरीर लेकर भाग खङा हुआ तथा महमूद ने कन्नौज को खूब लूटा। राज्यपाल की इस कायरता पर तत्कालीन भारतीय शासक अत्यंत कुपित हुए।
चंदेल नरेश विद्याधर ने राजाओं का एक संघ तैयार कर उसे दंडित करने का निश्चय किया। दूबकुण्ड लेख से पता चलता है, कि विद्याधर के सामंत कछवाहा वंशी अर्जुन ने राज्यपाल पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी थी।
राज्यपाल के दो उत्तराधिकारी – त्रिलोचनपाल तथा यशपाल के नाम मिलते हैं, जिनके शासन-काल के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होती है। 1090 ईस्वी तक वे किसी न किसी रूप में कन्नौज अथवा उसके किसी भाग पर शासन करते रहे। इसके बाद गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य पूर्णरूपेण विलुप्त हो जाता है। तथा कन्नौज में उसके स्थान पर गहङवाल वंश की स्थापना हुई।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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