गणतंत्र दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है , जो प्रतिवर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। 26 जनवरी के दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था। भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था। इसी दिन भारत सरकार अधिनियम(1935) के स्थान पर हमारा संविधान लागू हुआ था। आजादी के 2 साल 11 माह और 18 दिन बाद हमारी संसद ने संविधान को हरी झंडी दिखाई। देश ने खुद को संप्रभु, गणतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया और 26 जनवरी को बतौर उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुयी।लेकिन यह ऐतिहासिक अवसर प्रयोजनात्मक स्वरूप मात्र तक सीमित है। इस वर्ष इसे प्रयोजनात्मक बनाएं। कुछ संकल्प लें। जिससे देश की धरती पर तिरंगा शान से लहराए।
भारत के संविधान से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी
26 नवम्बर : संविधान दिवस क्यों मनाया जाता है
डॉ.भीमराव अंबेडकर का योगदान
संविधान सभा के राजनैतिक सलाहकार वी.ए.राव द्वारा तैयार किये गये संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त,1947 को एक संकल्प पास करके प्रारूप समिति का गठन किया गया। इसमें अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर को चुना गया।…अधिक जानकारी
कॉन्सिटट्यूशन असेंबली में शामिल महिलायें
- बेगम कुदसिया एजाज रसूल,
- दुर्गा बाई देशमुख,
- हंसा जीवराज मेहता,
- कमला चौधरी,
- मालती चौधरी,
- पूर्णिमा बैनर्जी,
- सराजनी नायडू,
- सुचिता कृपलानी,
- विजयलक्ष्मी पंडित,
- एनी मास्कारेन,
- लीला रॉय– सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी लीला रॉय असम में पैदा हुई थी। बंगाल से चयनित होने वाली वे एकमात्र महिला थी। 1923 में उन्होंने एक संघटन दीपाली संघ की स्थापना की थी। जो महिलाओं को राजनैतिक और सामाजिक तौर पर जागरुक करने का काम करती थी। 9 दिसंबर 1946 को उन्हें असेंबली के लिये चयनित किया गया था। लेकिन उन्होंने ये पद बङी आसानी से छोङ दिया। उन्हें लगता था, कि संविधान तो बन जाएगा। लेकिन देश का बंटवारा नहीं होना चाहिये। पर अफसोस ये बंटवारा रुक न सका।
- दक्षयनी वेलायुद्धन-भारतीय संविधान सभा में शामिल होने वाली दक्षयनी वेलायुद्ध पहली दलित महिला थी। कोच्चि में पैदा हुई दक्षयनी ने पिछङे वर्ग के लिये बहुत काम किये। वे पुलाया जनजाति से जुङी थी। न सिर्फ अपनी जाति की पहली पढी-लिखी महिला बनी, बल्कि ऊपर के विस्र भी अपनी जाति में सबसे पहले उन्होंने ही पहने। 1945 में कोच्चि विधान परिषद में वे चुनी गयी थी। भारत में पिछङी जातियों के लिये उन्होंने बहुत सपने देख रखे थे। कई बार असेंबली में उनके विचार भीमराव अंबेडकर से अलग भी हो जाते थे।
- अम्मू स्वामीनाथन – केरल में पैदा हुई अम्मू स्वामिनाथन बचपन से ही अलग थी। 13 साल की उम्र में जब उनके पति ने उनके साथ शादी करने की इच्छा जाहिर की थी, तब उन्होंने कुछ शर्तें रखी थी। जैसे मद्रास वापस लौटना, अंग्रेजी की शिक्षा लेना साथ ही उनसे यह कभी नहीं पूछा जाएगा कि काम करके घर कि कितने बजे लौटोगी? 1934 में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुई। 24 नवंबर 1949 को संविधान पारित करने के लिये अंबेडकर ने चर्चा का आयोजन किया था। उस दौरान अम्मू ने कहा था, बाहर के लोग कह रहे हैं, कि भारत के लोगों ने अपनी ही महिलाओं को अधिकार नहीं दिये हैं। अब हम कह सकते हैं, कि जब हम भारत के लोग स्वयं संविधान तैयार करते हैं, तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिये हैं। हालांकि बाद में उन्हें संविधान बहुत लंबा भी लगा था।
- रेणुका रे
सम्मान देश की संपत्ति का
यह सच है, कि देश का संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। सही को सही और गलत को गलत कहने का हम माद्दा रखते हैं। पर विरोध के क्रम में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान भला कहां उचित है। करोङो-अरबों की संपत्ति खाक हो जाती है। निर्दोष लोग जान या रोजी-रोटी गंवा देते हैं। जो संविधान हमें अधिकार देता है, उसकी ही भावना इससे त्रस्त होती है। कवि हरिओम पंवार ने संविधान के बाबत ठीक ही कहा है, मेरे भी जज्बात जले हैं, जब दिल्ली गुजरात जले हैं, हिंसा गली-गली देखी है, मैंने रेल जली देखी है, संसद पर हमला देखा है, अक्षरधाम जला देखा है।
मान बोली को सलाम
स्कूल-कॉलेज के परिसर से गुजरते हैं। कानों में गूंजता है, जन गण मन…क्यों नहीं ठिठक जाते 52 सेकंड के लिये उसी जगह हम। राष्ट्रगान के सम्मान में कोई कसर मत छोङिये। यह मांग या विरोध का विषय नहीं है। केवल भावना और सम्मान है। इसी तरह राष्ट्रीय पशु, पक्षी और खेल के प्रति भी मन में सम्मान भाव हो। भाषाएं जितनी सीखें बेहतर हैं। अंग्रेजी ही क्यों, जर्मन, फ्रेंच आदि के भी ज्ञाता बनें। पर हिन्दी बोलने में झिझक न रखें। बैंक व अन्य सरकारी कागजात में जहां तक संभव है, हिन्दी का प्रयोग करें।
अंग्रेजी स्कूल में पढने वाले बच्चों से भी परिजन संवाद की भाषा हिन्दी या मातृभाषा ही रखें। याद रखें कि पारंपरिक परिधान पिछङेपन नहीं बल्कि सम्मान का प्रतीक हैं। इन्हें गर्व से अपनायें।
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