शुद्धि आंदोलन (shuddhi aandolan)
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने धर्म-परिवर्तन कर चुके लोगों को पुनः हिंदू धर्म मे प्रवेश करने की प्रेरणा देकर शुद्धि आन्दोलन चलाया था। सामाजिक क्षेत्र में दयानंद सरस्वती का मुख्य कार्य शुद्धि-पर्था थी। इस आन्दोलन के तहत लाखों मुसलमानों तथा ईसाइयों की शुद्धि कराकर सत्य सनातन वैदिक धर्म में वापसी कराई थी। 11 फरवरी 1923 को स्वामी श्रद्धानन्द ने ‘भारतीय शुद्धि सभा’ की स्थापना की और शुद्धि का कार्य आरम्भ किया था।
शुद्धि आंदोलन का उद्देश्य धार्मिक था, न कि राजनैतिक। हिन्दू समाज में समानता उनका लक्ष्य था। अछूतोद्धार, शिक्षा एवं नारी जाति में जागरण कर स्वामी श्रद्धानन्द एक महान समाज की स्थापना करना चाहते थे।
जो व्यक्ति ईसाई धर्म को स्वीकार कर चुके थे, परंतु फिर भी हिन्दू धर्म में सम्मिलित होना चाहते थे, उनकी शुद्धि करके हिन्दू धर्म में सम्मिलित करने का कार्य स्वामी दयानंद ने आरंभ किया था। यह कार्य किसी अन्य धर्म सुधारक ने नहीं किया था। दयानंद ने इस कार्य का समर्थन धर्म और इतिहास के प्रमाण के आधार पर किया।
हिन्दू धर्म ने सर्वदा विदेशियों और विधर्मियों को अपने धर्म में सम्मिलित किया था, इसी कारण विभिन्न आक्रमणकारी हिन्दू समाज में सम्मिलित किये गये थे।
इसी अवसर पर दयानंद ने शुद्धि द्वारा धर्म परिवर्तन के कार्य को आरंभ किया और इस प्रकार हिन्दू धर्म का मार्ग सभी के लिए खोल दिया। वह कार्य हिन्दू धर्म और समाज के लिए अत्यंत लाभदायक था। मुसलमानों और ईसाइयों ने आर्य समाज का विरोध मुख्यतया इसी आधार पर किया था।
‘शुद्धि’, ‘शुद्धीकरण’ नामक प्राचीन हिन्दू रीति का नवीन संस्करण था। सबसे पहली शुद्धि स्वामी दयानन्द ने अपने देहरादून प्रवास के समय एक मुस्लमान युवक की की थी जिसका नाम ‘अलखधारी‘ रखा गया था।
स्वामी के निधन के पश्चात पंजाब में विशेष रूप से मेघ, ओड और रहतिये जैसे निम्न और पिछड़ी समझी जाने वाली जातियों का शुद्धिकरण किया गया। शुद्धि आंदोलन का मुख्य उद्देश्य उनकी पतित, तुच्छ और निकृष्ट अवस्था में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार करना था।