हर्षवर्धन के बारे में जानकारी
सम्राट हर्षवर्धन (606-647ई.) महान विजेता एवं साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ एक उच्चप्रतिभा के नाटककार भी थे। हर्ष की विद्वता एवं उसके विद्या प्रेम की प्रशंसा अनेक कवियों ने की है। जयदेव ने उसे कविता कामिनी का हर्ष कहा है। सोड्ढल के शब्दों में वह वाणी का हर्ष (श्रीहर्ष) था।
हर्ष को तीन नाटकों का रचयिता माना जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
रत्नावली
रत्नावली में चार अंक हैं, जिनमें सिंहल देश के राजा की कन्या रत्नावली तथा वत्स (कौशांबी) के राजा उदयन की प्रणयकथा तथा अन्ततोगत्वा दोनों के विवाह की कथा का नाटकीय चित्रण प्रस्तुत किया गया है। यह एक प्रसिद्ध नाटक है, जिसमें हर्ष ने एक आदर्श कथानक को भव्य रूप से प्रस्तुत किया है। चरित्र-चित्रण कुशलतापूर्वक किया गया है। उदयन तथा रत्नावली के चरित्र-चित्रण में लेखक को विशेष निपुणता मिली है।
नागानंद
यह पाँच अंकों का नाटक है, जिसका कथानक बौद्ध धर्म से लिया गया है। इसके प्रथम भाग में विद्याधर कुमार जीमूतवाहन तथा सिद्धकन्या मलयवन्ती के प्रणय का वर्णन है तथा द्वितीय भाग में सर्पों की रक्षा के लिये जीमूतवाहन द्वारा स्वयं को गरुङ के समक्ष खाने के लिये अर्पित करने, उसके पुनरुज्जीवित होने तथा गरुङ द्वारा भविष्य में सर्पभक्षण ने करने की प्रतिज्ञा आदि की घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसका नायक जीमूतवाहन अपने आदर्श चरित्र के लिये प्रसिद्ध है। परोपकार के लिये आत्म-त्याग की भावना का पूर्ण परिपाक हमें यहाँ दिखाई देता है।
प्रयदर्शिका
यह चार अंकों का नाटक है, जिसमें वत्सराज उदयन तथा महाराज दृढवर्मा की कन्या प्रियदर्शिका की प्रणय कथा का नाटकीय चित्रण मिलता है, जिसमें वत्सराज उदयन तथा महाराज दृढवर्मा की कन्या प्रियदर्शिका की प्रणय कथा का नाटकीय चित्रण मिलता है। इस नाटक का कथानक कथासरित्सागर तथा वृहत्कथामंजरी से ग्रहण किया गाय है, किन्तु हर्ष ने अपनी ऊँची कल्पनाओं द्वारा इसे अत्यन्त रमणीय बना दिया है।
हर्ष की काव्य-शैली सरल तथा सुबोध है। उसके वर्णनों में विस्तार मिलता है। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन भी सुन्दर है। प्रणय नाटकों के निर्माता के रूप में हर्ष का नाम अमर रहेगा।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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