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सालबाई की संधि(Treaty of Salbai)किस-किस के बीच हुई

सालबाई की संधि

सालबाई की संधि

सालबाई की संधि( saalabaee kee sandhi )

गुजरात में कर्नल गॉडर्ड व मराठों के बीच युद्ध चल रहा था।ब्रिटिश सेना के दबाव को कम करने के लिए नाना फङनवीस ने हैदरअली को कर्नाटक पर आक्रमण करने को कहा।इस पर हैदरअली ने कर्नाटक पर धावा बोल दिया।इसके बाद तो अंग्रेजों की निरंतर पराजय होने लगी। ब्रिटिश सेना का मनोबल गिरने लगा।

अतः हेस्टिंग्ज ने एंडरसन को मराठों से बातचीत करने भेजा, बातचीत के दौरान हेस्टिंग्ज ने एंडरसन को तथा नाना फङनवीस को जो पत्र लिखे, उनसे स्पष्ट होता है कि वह संधि के लिए अत्यधिक व्यग्र हो रहा था। 17 मई,1782 को अंग्रेजों और मराठों के बीच साल्बाई की संधि हो गई।

सालबाई की संधि के बारे में जानने से पहले आंग्ल-मराठा संबंधों,सूरत की संधि,आंग्ल-मराठा संघर्ष के बारे में जानना भी आवश्यक है,ताकि सालबाई की संधि को अच्छे से समझा जा सके।

सालबाई की संधि की शर्तें निम्नानुसार थी-

  • इसके अनुसार सालसेट और थाना दुर्ग अंग्रेजों को मिले।
  • अंग्रेजों ने राघोबा का साथ छोङने का आश्वासन दिया तथा मराठों ने रघुनाथराव (राघोबा) को25,000 रुपये मासिक पेंशन देना स्वीकार कर लिया।
  • अंग्रेजों ने माधवराव द्वितीय को पेशवा तथा फतेहसिंह गायकवाङ को बङौदा का शासक स्वीकार कर लिया। बङौदा के जिन भू-भागों पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया था, उन्हें पुनः बङौदा के शासक को लौटा दिया।
  • इस संधि की स्वीकृति के छः माह के अंदर हैदरअली जीते हुए प्रदेश लौटा देगा तथा वह पेशवा, कर्नाटक के नवाब और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित नहीं होगा।
  • यदि हैदरअली समझौते के अनुसार कार्य नहीं करेगा,तो माहदजी, हैदरअली के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ देगा।

सालबाई की संधि पर हस्टिंग्ज ने जून,1782 में हस्ताक्षर करके पुष्टि कर दी। किन्तु महादजी व नाना फङनवीस में मतभेद उत्पन्न हो गये। क्योंकि नाना का सच्चा मित्र व अंग्रेजों का कट्टर शत्रु हैदरअली अभी अंग्रेजों से लङ रहा था।अतः जब तक हैदरअली युद्ध के मैदान में था, अंग्रेजों से संधि करना हैदरअली के साथ विश्वासघात था। अतः जब तक हैदरअली युद्ध के मैदान में था, अंग्रेजों से संधि करना हैदरअली के साथ विश्वासघात था। जब 7 दिसंबर, 1782 को हैदरअली की मृत्यु हो गई, तब नाना फङनवीस ने 20 दिसंबर,1782 को संधि पर हस्ताक्षर कर दिये।

सालबाई की संधि का महत्त्व-

  • अंग्रेजों ने मराठों से संधि करके मैसूर को मराठों से अलग कर दिया।इससे मैसूर का शासक हैदरअली मराठों की सहायता से वंचित हो गया।
  • हैदरअली की मृत्यु के बाद उसके पुत्र टीपू ने युद्ध जारी रखा, लेकिन उसे मराठों की सहायता नहीं मिल सकी।
  • अंग्रेजों ने मैसूर की शक्ति को सरलता से कुचल दिया।मैसूर की शक्ति को कुचलने के बाद अंग्रेज एक बार फिर से मराठों की शक्ति को नष्ट करने की ओर बढे।
  • इस युद्ध से अंग्रेजों को इस बात का पता चल गया कि मराठा शक्ति में आपसी फूट है, जिससे वे कभी एक होकर अंग्रेजों का सामना नहीं कर सकेंगे।

इतिहासकार स्मिथ के अनुसार सालबाई की संधि भारत में अंग्रेजों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई, क्योंकि इसने भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित कर दिया तथा इसके बाद 20 वर्षों तक अंग्रेजों व मराठों के बीच शांति बनी रही। इतिहासकार स्मिथ ने इस संधि का महत्त्व आवश्यकता से अधिक बताया है।

अंग्रेजों ने इस संधि के पूर्व जो कुछ प्राप्त किया था, वह सालसेट को छाङकर सब कुछ खो दिया। इस संधि ने पेशवा की स्थिति को सुदृढ बनाया तथा महादजी का महत्त्व इतना बढ गया कि वह मैसूर पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगा। अंग्रेजों ने शाहआलम के मामले में हस्तक्षेप ने करने का वादा किया। फलस्वरूप शाहआलम पर महादजी का प्रभाव बढ गया और शाहआलम ने महादजी को मुगल साम्राज्य का वकील-ए-मुत्लक नियुक्त किया।

इस प्रकार सालबाई की संधि द्वारा अंग्रेजों का प्रभुत्व नहीं, बल्कि मराठों के प्रभुत्व में वृद्धि हुई। अंग्रेजों व मराठों के बीच 20 वर्षों तक शांति अवश्य रही किन्तु इसका कारण सालबाई की संधि नहीं थी, बल्कि अंग्रेज उत्तर भारत में दूसरी समस्याओं में उलझ गये थे, जिससे वे मराठों की ओर ध्यान नहीं दे सके ।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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