आधुनिक भारतइतिहास

उत्तरकालीन मुगल सम्राट कौन थे ?

उत्तरकालीन मुगल सम्राट

उत्तरकालीन मुगल सम्राट

मार्च 1707 में औरंगजेब की मृत्यु, उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के युद्ध का बिगुल था। मुहम्मद मुअज्जम (शाह आलम), मुहम्मद आजम, कामबख्श में से सबसे बङे पुत्र मुहम्मद मुअज्जम की विजय हुई। उसने जजाओ के स्थान पर 18 जून, 1707 को आजम को और हैदराबाद के समीप 13 जनवरी, 1709 को कामबख्श को हरा कर मार डाला और स्वयं बहादुरशाह प्रथम की उपाधि धारण कर सिंहासन पर बैठ गया। उस समय उसकी आयु 63 वर्ष की थी और वह एक सक्रिय नेता के रूप में कार्य नहीं कर सकता था। मुहम्मद मुअज्जम ने शिवाजी के पौत्र शाहू को जो 1689 से मुगलों के पास कैद था, मुक्त कर दिया और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी। राजपूत राजाओं से भी शांति स्थापित कर ली और उन्हें उनके प्रदेशों में पुनः स्थापित कर दिया। परंतु बहादुरशाह को सिक्खों के विरुद्ध कार्यवाही करनी पङी क्योंकि उनके नेता बंदा बहादुर ने पंजाब में मुसलमानों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान आरंभ कर दिया था। बंदा लोहगढ के स्थान पर हार गया। मुगलों ने सरहिन्द को 1711 में पुनः जीत लिया परंतु यह सब होते हुए भी बहादुरशाह सिक्खों को मित्र नहीं बना सका और न ही कुचल सका।

उत्तरकालीन मुगल सम्राट

27 फरवरी, 1712 को बहादुरशाह की मृत्यु हो गयी। प्रसिद्ध लेखक सर सिडनी ओवन के अनुसार, यह अंतिम मुगल सम्राट था जिसके विषय में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं। इसके बाद मुगल साम्राज्य का तीव्रगामी और पूर्ण पतन, मुगल सम्राटों की राजनैतिक तुच्छता और शक्तिहीनता का द्योतक था।

1712 में बहादुरशाह की मृत्यु के बाद उसके चारों पुत्रों, जहांदरशाह, अजीम-उस-शान, रफी-उस-शान और जहान शाह में उत्तराधिकार का युद्ध आरंभ हो गया। इस उत्तराधिकार के प्रश्न को हल करने में उसके पुत्रों ने इतनी निर्लज्ज शीघ्रता की कि बहादुरशाह का शव एक मास तक दफन भी नहीं किया जा सका। दरबार में ईरानी दल के नेता जुलफिकार खां की सहायता से जहांदरशाह (मार्च, 1712 से फरवरी 1713) सफल हुआ। कृतज्ञ सम्राट ने जुलफिकार खां को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त कर दिया। दस मास के भीतर ही जहांदरशाह को अजीम-उस-शान के पुत्र फर्रुखसीयर ने सैयद बंधुओं की सहायता से चुनौती दी और 11 फरवरी, 1713 को उसे हरा कर मार डाला। कृतज्ञ फर्रुखसीयर (1713-1719) ने अब्दुल्ला खां को वजीर और हुसैन अली को मीर बख्शी नियुक्त कर दिया। परंतु शीघ्र ही सम्राट ने सैयद बंधुओं के जूए को उतार फेंकने की सोची और इस हेतु एक षङयंत्र रचा। परंतु सैयद बंधु सम्राट से अधिक चालाक थे और उन्होंने मराठा सैनिकों की सहायता से 28 अप्रैल, 1719 को सम्राट का गला घोंट दिया। फर्रुखसीयर के राज्यकाल ने मुगलों की सिक्खों पर विजय दुंदुभी बजती देखी। गुरदासपुर के स्थान पर उनका नेता बंदा बहादुर पकङ लिया गया और दिल्ली में 19 जून, 1716 को उसका वध कर दिया गया। 1717 में सम्राट ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत सी व्यापार संबंधी रियायतें दे दी। इन से बिना सीमा शुल्क के बंगाल के रास्ते व्यापार भी किया जा सकता था।

फर्रुखसीयर की मृत्यु के बाद बंधुओं ने शीघ्रताशीघ्र एक के बाद एक सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर बैठाए। इस प्रकार रफी-उद्-दरजात (28 फरवरी से 4 जून, 1719), रफी-उद्-दौला (6 जूनसे 17 सितंबर, 1719) और फिर मुहम्मद शाह (सितंबर 1719 से अप्रैल, 1748) सम्राट रहे। घटना-चक्र ने पूरा चक्कर काट डाला और तूरानी अमीरों के नेतृत्व में 9 अक्टूबर, 1720 को हुसैन अली का वध कर दिया गया और 15 नवम्बर, 1720 को अब्दुल्ला खां बंदी बना लिया गया। इसी मुहम्मदशाह के राज्य काल में निजाम-उल-मुल्क के दक्कन में एक स्वतंत्र राज्य बना लिया। सआदत खां ने अवध में और मुरगशिदकुली खां ने बंगाल, बिहार और उङीसा प्रांतों में लगभग स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। मार्च, 1737 में बाजी राव प्रथम केवल 500 घुङसवार लेकर दिल्ली पर चढ आया। सम्राट डर कर भागने को उद्यत था। 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और मुगल साम्राज्य को औंधा और जख्मी बना कर छोङ गया।

नए मुगल सम्राट अहमद शाह (1748-54) और आलमगीर द्वितीय (1754-59) इतने निर्बल थे कि वे इस पतन को रोक नहीं सके। उत्तर-पश्चिम की ओर से अहमद शाह अब्दाली ने 1748, 1749, 1752, 1756-57 और 1759 में आक्रमण किए और वह अधिकाधिक उद्दंड होता चला गया। शीघ्र ही पंजाब पठानों ने और मालवा और बुंदेलखंड मराठों ने छीन लिए तथा अन्य स्थानों पर भी आक्रमण किए। शाह आलम द्वितीय (1759-1806) और उसके उत्तराधिकारी केवल नाममात्र के ही सम्राट थे और अपने अमीरों, मराठों अथवा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतलियाँ ही थे। 1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली जीत ली। अंग्रेजों ने मुगल साम्राज्य का ढोंग 1858 तक बनाए रखा जब अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को रंगून में निर्वासित कर दिया गया।

Reference Books :
1. पुस्तक – आधुनिक भारत का इतिहास, लेखक – बी.एल.ग्रोवर, अलका मेहता, यशपाल

  

Related Articles

error: Content is protected !!