इतिहासराजस्थान का इतिहास

रणकपुर का मंदिर क्यों प्रसिद्ध है

रणकपुर का मंदिर – पश्चिमी रेलवे लाइन पर आबूरोड और अजमेर के बीच फालना स्टेशन से लगभग 22 मील की दूरी पर स्थित रणकपुर का जैन मंदिर उत्तरी भारत के श्वेताम्बर जैन मंदिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस मंदिर की भूमि पोरवाल धना सेठ ने मेवाङ के महाराणा कुम्भा से खरीदी थी और उसी ने मंदिर का निर्माण करवाया था, अतः इसे धरणी विहार भी कहते हैं। इस मंदिर को रणकपुर का चौमुखा मंदिर कहते हैं। किन्तु मेह नामक कवि ने इसे त्रैलोक्य दीपक तथा ज्ञान विमाल सूरी ने इसे नलिनी गुल्म-विमान की सी रचना बताया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर लगे शिलालेख में इसे त्रैलोक्य दीपक तथा श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार कहा गया है। इस मंदिर के चारों ओर द्वार हैं और मंदिर में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित हैं। एक वैष्णव मंदिर सूर्यनारायण का भी है। सबसे सुन्दर और कलापूर्ण चौमुखा मंदिर त्रैलोक्य दीपक है जिसमें राजस्थान की जैन कला और धार्मिक परंपरा का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है।

इस मंदिर की प्रतिष्ठा वि.सं. 1496 (1439ई.) में हुई थी। मंदिर का प्रमुख शिल्पकार सोमपुरा ब्राह्मण देपाक था तथा मंदिर की प्रतिष्ठा सोमसुन्दर सुरि के द्वारा करायी गयी थी। मंदिर का निर्माण 48,000 वर्ग फुट जमीन पर किया गया है। मंदिर के धरातल में सेवाङी का पत्थर तथा दीवारों में सोनाणा का पत्थर का में लिया गया है। शिखर के भीतरी भाग ईंटों के बने हुए हैं तथा मूर्तियाँ भी सोनाणा के पत्थर की बनी हुई हैं। मूलनायक आदिनाथ की भव्य प्रतिमाएँ श्वेत संगमरमर के पत्थर की बनी हुई हैं। एक उच्च पीठिका पर आसीन आदिनाथ की प्रतिमाएँ पाँच फुट ऊँची हैं और एक दूसरे की पीठ से लगी हुई चारों दिशाओं में मुख किये हुए हैं। इसीलिए यह मंदिर चौमुखा कहलाता है। चारों ओर द्वार होने के कारण बाहर से कोई भी श्रद्धालु चारों दिशाओं से मूलनाक के दर्शन कर सकता है।

रणकपुर का मंदिर

चौमुखा मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है। तोरणद्वार में प्रवेश करने के लिये लगभग 25 सीढियाँ चढकर जाना पङता है। तोरणद्वार के बरामदे के मंडप की छत पर अनेक नग्न एवं संभोग के विभिन्न आसनों का प्रदर्शन करती हुई मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, जो मानव की सहज अवस्था बतलायी हैं। मंदिर के प्रत्येक द्वार के सामने सभा मंडप है तथा उसके आगे पूजागृह है। प्रत्येक सभा मंडप के सामने छोटा मंदिर है, जो खूँट का मंदिर कहलाता है। खूँट के मंदिरों के सामने खंभों पर आधारित 4 मंडपों के समूह हैं। सबसे बङा मंडप मुख्य द्वार के सामने है, जिसमें 16 खंभों पर दोहरे शिखर हैं। इस मंडप की छत पर नृत्य करती हुई स्रियों को उत्कीर्ण किया गया है, जिसमें कोई स्री श्रृंगार करती हुई, कोई घुँघरू बाँधती हुई, कोई वीणा और बाँसुरी बजाती हुई और कोई नृत्य मुद्रा में है। खूँट के मंदिर के बाहर उत्तरंग पर नागकन्याओं और जालीयुक्त कमल पुष्प के दृश्य हैं। मंदिर के चारों ओर 80 छोटी व 4 बङी देव कुलिकाएँ हैं। छोटी देव कुलिकाओं का प्राँगण स्तंभ उठाकर छतदार बनाया हुआ है, जबकि बङी देव कुलिकाएँ गुम्बददार हैं। पश्चिमी कोण की देव-कुलिका में महावीर स्वामी और आदिनाथ की मूर्तियाँ हैं। उत्तरी-पूर्वी कोण में पार्श्वनाथ की ध्यान अवस्था में खङी प्रतिमा को नाग की देह ने लपेट रखा है तथा नाग के 108 फन उस पर छाया किये हुए हैं। एक अन्य देव-कुलिका में शांतिनाथ और नेमिनाथ की प्रतिमाएँ हैं।

चौमुखा मंदिर के बाहर रंगमंडप में बने तोरण अत्यधिक आकर्षक हैं। ये तोरण एक ही पत्थर से बने हुए हैं तथा बहुत ही बारीकी से खुदाई का काम किया हुआ है। रंगमंडप के गुम्बद के घेरे के चारों ओर नृत्य करती हुई 16 पुतलिकाएँ उत्कीर्ण हैं। रंगमंडप से जुङे चार मंडप और हैं, जिनकी ऊँचाई लगभग 40 फुट है। मंडप के स्तंभ एवं गुम्बज बङे ही नयनाभिराम हैं। मंदिर के चारों भागों में प्रकाश के लिये 4 बङे-बङे खुले चौक हैं। मूलनायक देव कुलिका के जँघा भाग में बनी मूर्तियाँ भी बङी आकर्षक हैं। इनमें स्री मूर्तियाँ नृत्य मुद्रा में हैं और कई नर्तकियाँ तलवार व ढाल लिये प्रदर्शित की गयी हैं, जो उस युग की भावना के अनुकूल हैं। स्री मूर्तियों के साथ देव-प्रतिमाएँ भी बनी हुई हैं। मंदिर के उत्तरी द्वार की ओर एक सहस्रकूट स्तंभ है जिसे राणक स्तंभ कहते हैं। इस स्तंभ के मध्य भाग में कई प्रतिमाएं बनी हुई हैं।

इस मंदिर के कुल 24 मंडप, 84 शिखर और 1444 स्तंभ हैं। स्तंभों को इस प्रकार खङा किया गया है कि मंदिर में कहीं भी खङे होने पर सामने की दिशा की देव कुलिका की प्रतिमा तथा उस दिशा के स्तंभ एक ही कतार में खङे दिखाई देते हैं। किसी भी स्तंभ का अलंकरण दूसरे स्तंभ के अलंकरण से साम्यता नहीं रखता। कई स्तंभों पर तीर्थंकरों के जीवन की प्रसिद्ध घटनाएँ उत्कीर्ण की हुई हैं। मुख्य द्वार की छत पर तीर्थंकर ऋषभदेव की माता मारुदेवी की हाथी पर आसीन प्रतिमा है। मंदिर में कुल 13 शिलालेख लगे हुए हैं जिनसे विभिन्न देव कुलिकाओं, सभा मंडपों आदि के निर्माण व जीर्णोद्धार का पता चलता है। इस प्रकार रणकपुर के त्रैलोक्य दीपक चौमुखा मंदिर अपनी विशालता और कलात्मकता के लिये प्रसिद्ध हैं । प्रसिद्ध वास्तुशास्री फर्ग्युसन ने लिखा है कि, मैं अन्य ऐसा कोई भवन नहीं जानता जो इतना रोचक व प्रभावकारी हो या जो स्तंभों की व्यवस्था में इतनी सुन्दरता व्यक्त करता हो। इस मंदिर की कलात्मकता के लिये लोकोक्ति भी प्रसिद्ध है – देलवाङा की कोतरणी ने रणकपुर की माँडणी अर्थात् उत्कीर्ण सौन्दर्य के लिये दिलवाङा मंदिर और रचना शिल्प के लिये रणकपुर का मंदिर अनुपम है।

चौमुखा मंदिर के निकट ही नेमिनाथ का मंदिर है। इस मंदिर की दीवारों पर नग्न और संभोग करते हुये युगलों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इसीलिए इस मंदिर को पातरियाँ रो देहरो (वेश्याओं का मंदिर) कहते हैं। इन मूर्तियों का अंकन यह उपदेश देने हेतु किया गया है कि जीवन में जो श्रेयष्कर है, उसे प्राप्त करने में सबसे बङी बाधा काम की है। इस बाधा से मुक्त होते ही मनुष्य निःग्रन्थ होकर निर्वाण की ओर बढ सकता है। ऐसी कामुक मूर्तियों के अंकन की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही थी। इसी परंपरा का निर्वाह रणकपुर के नेमिनाथ के मंदिर में भी हुआ है। मंदिर की मुख्य देहरी (देव कुलिका) में नेमिनाथ की श्यामल भव्य मूर्ति है। मंदिर के बाहर की सजावट तथा भीतर का नितान्त सादापन विषय अंतर को प्रकट करता है। वही अंतर माया ग्रसित जीवन और संयमी जीवन में है।

नेमिनाथ के मंदिर के साथ ही पार्श्वनाथ का मंदिर है, जिसका मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है। पार्श्वनाथ के इस मंदिर से थोङी ही दूरी पर सूर्य मंदिर बना हुआ है। प्रारंभ में, सूर्य मंदिर में बरामदा, मंडप व गर्भगृह थे, किन्तु अब इसका बरामदा नष्ट हो गया है और मंडप की छत भी गिर गयी है। गर्भगृह के द्वार के ऊपर गणेश की मूर्तियाँ हैं, जिसके दोनों ओर पाँच-पाँच मूर्तियाँ हैं। प्रथम को छोङकर शेष सभी नवग्रहों की हैं, द्वार के दोनों ओर की ताकों में सूर्य की मूर्तियाँ हैं। चौखट पर शिव तथा उसके दाहिनी ओर एक देवी की (संभवतः पार्वती की) तथा ब्रह्मा की मूर्ति के बाँयी ओर एक देवी (संभवतः लक्ष्मी) सहित विष्णु की प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह में भी दो मूर्तियाँ हैं जिनमें एक सूर्य की तथा उसके बायीं ओर देवी (संभवतः सूर्याणी) की है। सूर्य की मूर्ति सात घोङों वाले रथ पर आधारित है।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
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विकिपिडिया : रणकपुर का मंदिर

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