इतिहासएरणगुप्त कालप्राचीन भारत

एरण क्यों प्रसिद्ध है

एरण नामक ऐतिहासिक स्थान मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। एरण के बारे में माना जाता है कि यह गुप्तकाल में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नगर था। प्राचीन सिक्कों पर इसका नाम ऐरिकिण लिखा है।

जनरल कनिंघम ने सर्वप्रथम प्राचीन एरिकिण नगर की पहचान एरण से की।

गुप्तकाल में बने एरण के प्रसिद्ध मंदिर-

 गुप्तकाल में निर्मित मंदिरों का प्रारंभिक रूप एरण में मिलता हैं ।

एरण के विष्णु मंदिर का इतिहास।

एरण के ये मंदिर विष्णु व उनके अवतारों से संबंधित हैं। महाविष्णु  मंदिर के अलावा इस स्थल पर महावराह मंदिर एवं नृसिंह मंदिर भी हैं।

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ये गुप्तकालीन तथा हूण काल के प्रारंभिक काल में निर्मित मंदिर साधारण ढंग से निर्मित किये गये थे। इनमें सपाट छत वाला गर्भगृह एवं चार पाषाण स्तंभों पर आधारित लघु मंडप है।

एरण के मंदिर समूह को मंदिर-वास्तु का प्राचीनतम रूप माना जा सकता है।

इन सभी मंदिरों के साज-सज्जा सीमित है। आयताकार गर्भगृह में स्थापित देवमूर्ति के साथ समक्ष थोड़ा नीचा द्वार मंडप है। द्वार व स्तंभों को भाँति-भाँति रूप से अलंकृत किया गया है।  मंदिर समूह के समीप ही केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा एक चबूतरे के ऊपर चार स्तंभ सुरक्षा की दृष्टि से खड़े किये गये हैं। इस चबूतरे पर कृष्णलीला से संबंधित आकृतियाँ वाले पट्ट लगे हैं।

विष्णु मंदिर के सामने बुधगुप्त द्वारा स्थापित गरुड़ स्तंभ सादगीपूर्ण कला का जीता जागता प्रमाण है।

एरण से प्राप्त किये गये अभिलेख-

एरण से अनेकों अभिलेख मिले हैं, जो भग्न शिलापट्टों के रूप में पड़े हैं। यहाँ से प्राप्त इन अभिलेखों में प्रमुख अभिलेख हैं —

एरण से प्राप्त अभिलेखों में मुख्य अभिलेख है, जो 510 ई. का है। इसे ‘भानुगुप्त का अभिलेख’ कहते हैं। यह लेख महाराज भानुगुप्त के अमात्य गोपराज के विषय में जो उस स्थान पर भानुगुप्त के साथ सम्भवतः किसी युद्ध में आया था और वीरगति को प्राप्त हुआ था। गोपराज की पत्नी यहाँ सती हो गई थी। इस अभिलेख को एरण का सती अभिलेख भी कहा जाता है। एरण से प्राप्त एक वराह मूर्ति के अभिलेख में हूण शासक तोरमाण और उसके प्रथम वर्ष का उल्लेख है।

एरण से प्राप्त मुद्रायें

एरण के प्रचीनकाल के इतिहास के बारे में मिले पुरातात्वीय अवशेष हालांकि गुप्तकाल के हैं लेकिन यहां मिले सिक्कों से ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व काल में भी यह स्थान आबाद था।

कनिंघम ने यहाँ से प्राप्त मुद्राओं को तीन भागों में वर्गीकृत किया है-

  • आहत मुद्राएँ,
  • ठप्पांकित मुद्राएँ तथा
  • सांचे द्वारा निर्मित मुद्राएँ।

इन मुद्राओं में हाथी, घोड़ा, वेदिका, वृक्ष, इंद्रध्वज, वज्र (उज्जैन चिन्ह), मत्स्य, कच्छप आदि के चिन्ह प्रमुख हैं।

एरण से प्राप्त मूर्तियाँ

एरण में प्रथम शती ईस्वी से लेकर छठी शती ईस्वी तथा पूर्व मध्यकाल, उत्तर मध्यकाल में मूर्ति निर्माण परंपरा का क्रमशः विकसित रूप परिलक्षित होता है। एरण में वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, गणपात्य बौद्ध धर्म की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

गुप्तकाल में एरण वैष्णव मत के एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। वैष्णव धर्म के मानने वाले कला मर्मज्ञ गुप्त सम्राटों के संरक्षण में यहाँ पर अनेक वैष्णव मंदिरों का निर्माण हुआ। उनमें भगवान विष्णु तथा उनके अवतारों की प्रतिमाएँ शैव, बौद्ध धर्म से संबंधित प्रतिमाएँ जैन प्रतिमाओं का भी निर्माण गुप्तकाल में किया गया।

एरण की भौगोलिक स्थिति

एरण की स्थिति भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। यह एक ओर मालवा का, तो दूसरी ओर बुंदेलखंड का प्रवेश- द्वार माना जा सकता है। पूर्वी मालवा की सीमा-रेखा पर स्थित होने के कारण यह दशार्ण को चेदि जनपद से जोड़ता था। सैनिक नियंत्रण की दृष्टि से भी इस स्थान को गुप्त शासकों ने अच्छा माना।

एरण का महत्त्व

ऐतिहासिक महत्व के इस स्थान का उत्खनन कराने पर यहाँ के टीलों से प्राप्त सामग्री, मृदभांड एवं स्तर विन्यास के आधार पर ज्ञात संस्कृतियाँ ताम्रयुग से लेकर उत्तर मध्यकाल तक क्रमिक इतिहास बनाती है। पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि एक समय यह एक वैभवशाली नगर हुआ करता था। यहाँ की वास्तु तथा मूर्तिकला का हमेशा एक विशेष मान्यता दी गई है।

यहां का सबसे उल्लेखनीय स्मारक एक 47 फुट ऊंचा स्तंभ है जो एक ही शिला से बना है। इसे बुद्धगुप्त के राजकाल में मातृविष्णु और उसके भाई धन्यविष्णु ने खड़ा कराया था।

ये सभी तथ्य इस बात के परिचायक हैं कि तीसरी सदी से छठवीं सदी तक मालवा के पूर्वी सीमांत का यह नगर सामरिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक हलचल का केंद्र बना रहा। लेकिन गुप्तकाल के बाद धीरे-धीरे इस समृद्ध नगर का पतन हो गया। संभवतः हूणों ने नगर और प्राचीन मंदिरों को ध्वस्त कर दिया हो।

हूणों का प्रथम आक्रमण किसके काल में हुआ?

Reference : https://www.indiaolddays.com

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