इतिहासप्राचीन भारत

कल्हण की रचनायें

कल्हण

कश्मीरी कवि कल्हण तथा उनके ग्रंथ राजतरंगिणी का ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्व है। इस ग्रंथ की रचना कश्मीर नरेश जयसिंह (1127-1159ई.) के काल में हुई थी। इसके आठ तरंगों में कश्मीर देश का प्रारंभ से लेकर बारहवीं शती तक का इतिहास वर्णित है। राजतरंगिणी संस्कृत भाषा में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करने का प्रथम स्तुत्य प्रयास है। कल्हण के विवरण में निष्पक्षता एवं यथार्थता है। स्वयं वह अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुये लिखता है – वही गुणवान कवि प्रशंसा का अधिकारी है, जो राग-द्वेष से ऊपर उठकर एकमात्र सत्य के निरूपण में अपनी वाणी का प्रयोग करता है-

श्लाघ्यः स एवं गुणवान रागद्वेष वहिष्कृता।
भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती।।

अतः इसमें संदेह नहीं, कि स्वयं कल्हण ने भी इस आदर्श का पूर्ण पालन किया है। यद्यपि उसका जन्म कुलीन परिवार में हुआ था तथापि वह निर्धन वर्ग का हिमायती था। वह श्रेष्ठ कवि के गुणों से परिचित था। सुकवि की समता वह ब्रह्मा से करता है। उसके वर्णन में सरलता एवं सरसता है। उसमें अलंकृत पदावली तथा शब्द-चमत्कार का पूर्णतया अभाव है। राजाओं का चरित्र-चित्रण उसमें अत्यन्त सफलतापूर्वक किया है। वह न केवल उनके गुणों का वर्णन करता है, अपितु उनके दोषों को उजागर करते हुये उन्हें उनसे दूर रहने का उपदेश देता है। कल्हण का ग्रंथ साहित्य तथा इतिहास दोनों ही दृष्टियों से नितांत सफल है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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